Menu
blogid : 15450 postid : 1294514

गौ गंगा और गाव

अनुभूति
अनुभूति
  • 38 Posts
  • 35 Comments

गाय
गाय को भारतीय संस्कृति मे माता का दर्जा दिया गया है। ऋग्वेदिक काल से ही आर्य गाय की पुजा करते थे। गाय के दूध ,गोबर, मूत्र को हमारी संस्कृति मे अत्यंत पवित्र माना जाता है। गाय का दूध शरीर को निरोगी व मजबूत बनाता है,हमारी रोग प्रतिरोधक छमता ,मे वृद्धि करता है। गोबर से घर की सफाई व ईंधन के रूप मे प्रयुक्त किया जाता है। गौ मूत्र से अनेकों बीमारियो का इलाज संभव है। अनेकों लाइलाज बीमारियो की दावा गौ मूत्र से तैयार करने पर सोध कार्य चल रहा है।

गंगा
देवनदी गंगा ,जिसे भागीरथी सुरसरिता जैसे नमो से भी जाना जाता है। पुरानो के अनुसार गंगा भगवान शिव की जटा मे विराजमान रहती है ,जिनहे राजा भागीरथ अपने पूर्वजो के उद्धार के लिए धरती पर लाये। गंगा के जल को अमृत के समान गुणकारी माना गया है । वैज्ञानिक शोधो मे भी यह बात सामने आई है की गंगा के जल मे इस प्रकार के बैक्टीरिया पाये जाते है जो रोगाणुओ को विनास्ट करने की छमता रखते हैं । गंगा को पतितपावनी अर्थात पापियो के तन और मन को पवित्र करने वाला बताया गया है । सुरसरिता ,देवनदी ,भागीरथी, काही जाने वाली गंगा का जल भारत मे बहुत बड़े भूभाग पर सिंचाई के लिए प्रयुक्त होता हैं । गंगा जल को बांधो मे इकट्ठा करके बिजली भी बनाई जाती है ।

गाँव
भारत गावों का देश है ,शायद इसीलिए महात्मा गांधी ने कहा था की भारत की आत्मा गावों मे बस्ती है। आज भी हमारे देश की अर्थव्यवस्था गावों की कृषि पर आधारित है। गावों के किसान अपने खून पसीने से अन्न उगाकर पूरे देश के लिए भोजन की व्यवस्था करते हैं। पशुपालन द्वारा दुग्ध उत्पादन करके पूरे देश के लिए दूध दहि ,घी ,की व्यवस्था करते हैं। बड़े शहरो मे चलने वाले उद्योग धंधे को चलाने वाले मजदूर गावों के ही होते हैं । भारतीय गावों मे संयुक्त परिवारों की व्यवस्था बंधुताव ,भतृभाव ,एक दूसरे के सुख दुख मे साथ देने का भाव ,पूरे विश्व के लिए खोज का बिषय हैं।

परंतु आज हमारे देश से गौ ,गंगा ,और गाँव समाप्त हो रहे हैं, मूर्तियो और पत्थरो मे भगवान का दर्शन करने वाले देश मे खुद को आधुनिक कहलवाने के लिए गाय का मांस खाया और खिलाया जा रहा है। गाय हत्या ,गाय तस्करी ,जैसे जघन्य कृत्यो को तर्को कुतर्को से उचित ठहराया जा रहा है। पतितपावनी माँ गंगा पापियो के पाप धोते धोते इस कदर अपवित्र हो चुकी है की उनका अस्तित्व ही खतरे मे पद चुका है। गांवो और शहरो के नाबदान का गंदा पानी ,कंपनियो से निकलता कूड़ा कर्कट हार साल गंगा मे बहाई जा रही मूर्तियो से गंगा का जल प्रदूषित और अपवित्र होता जा रहा है।
अब गावों मे भी पहले जैसी वह बात नहीं रह गयी, गावों मे भी राजनीत हावी हो चुकी है। एक दूसरे को नीचा दिखाने व स्वयं को ष्रेसठ साबित करने की होड मची हुई है। अब हम आसानी से गौ ,गंगा और गाव की स्थिति से वर्तमान मे देश की हालत का अंदाजा लगा सकते हैं।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh