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तेलंगाना राज्य के गठन के लिए केन्द्र सरकार की सहमति के बाद तेलंगाना समर्थक विजयी मुद्रा मेँ है और तेलंगाना राज्य के विरोधी इस कदम का पुरजोर विरोध कर रहे है।अनशन ,आगजनी ,उपद्रव ,उग्र प्रदर्शन ,इस्तीफे की घटना से यह दिखता है कि छोटे राज्योँ की माँग विकास के लिए नहीँ बल्कि अपनी राजनैतिक महत्वकांक्षाओँ की पूर्ति के लिए हो रही है ।एक पक्ष को तेलगांना के गठन से अपना हित सधता दिख रहा है वहीँ दूसरे पक्ष को संयुक्त आँध्र प्रदेश मेँ ही अपनी राजनैतिक जमीन मजबूत दिख रही है।
तेलंगाना की मांग काफी पुरानी है और बहुत सी जिँदगीया भी इसके लिए कुर्बान हो चुकी हैँ परन्तु इसके गठन के लिए स्वीकृति भी ऐन चुनावोँ के पहले प्रदान की गई है जिसके पीछे भी विकास की भावना कम राजनीतिक समीकरणोँ को मजबूत करने की मंशा साफ साफ दिख रही है।
आजादी के समय धर्म के नाम पर देश का बँटवारा किया गया और आजादी के बाद से ही विकास का बहाना बनाकर धर्म ,जाति ,भाषा और क्षेत्र के नाम पर छोटे छोटे राज्योँ की माँग उठने लगी। भाषाई आधार पर आंध्र प्रदेश का गठन किया गया ।आज फिर आंध्र प्रदेश का भाषा और विकास के नाम पर बँटवारा किया जा रहा है ।विकास का राग अलापकर बदली हुई राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियोँ का फिर से दोहन करने की कोशिश की जा रही है।
राज्योँ के बँटवारे से गुजरात ,पंजाब ,हरियाणा ,झारखंड,उत्तराखंड ,छत्तीसगढ़ जैसे छोटे छोटे राज्य बनाये गये ।इनमेँ से कुछ राज्योँ मेँ तीव्र विकास हुआ जो राज्योँ के छोटे स्वरुप के कारण नहीँ बल्कि नेतृत्व की दृढ इच्छाशक्ति के कारण ।दूसरे इन राज्योँ मे प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा मेँ थे ।वहीँ झारखंड राज्य मेँ खनिज संसाधनोँ के भरपूर मात्रा मेँ होने के बावजूद ,बँटवारे से पूर्व वाली स्थिति मेँ है ।झारखंड का बँटवारा भी इसी तर्क पर किया गया था कि बिहार एक बड़ा राज्य है जिसमेँ झारखण्ड का विकास नहीँ हो सकता परन्तु बँटवारे के बाद झारखँड के हालात तो जस के तस है वहीँ बिहार जो अपनी बदहाली और जंगलराज के लिए बदनाम था अपने बड़े स्वरुप के साथ ,नेतृत्व परिवर्तन के बाद तीव्र गति से विकास कर रहा है।मध्य प्रदेश भी प्रत्येक क्षेत्र मेँ विकास कर रहा है। विकास के लिए क्षेत्र का बड़ा या छोटा स्वरुप नहीँ बल्कि कुशल नेतृत्व महत्व रखता है ।
आज देश मेँ जिस तरह छोटे छोटे राज्योँ की माँग हो रही है लोग क्षेत्र,जाति और भाषा के नाम पर अराजक होते जा रहे हैँ ।अपनी जायज नाजायज माँगोँ को मनवाने के लिए आमरण अनशन ,आत्महत्या .उग्रवाद ,आगजनी ,उपद्रव का सहारा ले रहे हैँ यह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीँ है ।इस तरह की माँग देश की एकता और संप्रभुता के लिए खतरा है ।गोरखालैँड ,बोडोलैंड ,विदर्भ .बुंदेलखंड ,हरित प्रदेश जैसे छोटे छोटे राज्योँ की माँग तूल पकड़ती जा रही है ।इन राज्योँ के समर्थको द्वारा किया जा रहा आंदोलन कभी कभी हिंसक और उग्र रुप पकड़ लेता है ।अगर इन सभी की माँगोँ को मान लिया जाय तो प्रत्येक जिले को एक राज्य बनाना पड़ेगा फिर भी हर किसी को संतुष्ट कर पाना संभव नहीँ है।
जो लोग छोटे छोटे राज्योँ का मुद्दा उठा रहे हैँ वे विकास के लिए नहीँ बल्कि राज्य के गठन के बाद सत्ता की चाबी अपने हाथ मेँ रखने के लिए लोगोँ को विकास का ख्वाब दिखा रहे हैँ ।यह सत्य है कि कुछ क्षेत्र काफी पिछड़े और गरीब हैँ और उनके साथ अन्य क्षेत्रीय समस्यायेँ भी है परन्तु इन समस्यायोँ का समाधान बँटवारा बिल्कुल नहीँ है इन क्षेत्रोँ मेँ असमानता की खाई को पाटने के लिए सरकार द्वारा विशेष योजनाओँ और कार्यक्रमोँ का ईमानदारी पूर्वक क्रियान्वन किये जाने की आवश्यकता है।
उत्तर प्रदेश के पिछली सरकार की मुखिया सुश्री मायावती ने उत्तर प्रदेश को चार हिस्सोँ मेँ बाँटने का बयान दिया था ।उनके बयान के बाद विरोध की राजनीति शुरु हो गई।राज्य गठन के पूर्व ही पूर्वाँचल राज्य की राजधानी को लेकर सियासी सूरमाओँ के बीच जँग छिड़ गई।राजधानी के नाम पर जनता को उकसाने की कोशिश की गई।बँटवारे और उसके विरोध मेँ सभी दलोँ द्वारा अपना उल्लू सीधा करने की भरसक कोशिश की गई ।
देश के पिछड़े क्षेत्रोँ मेँ आज भी जातिवाद ,धर्मवाद,भाषावाद अपने चरम पर है ।बेरोजगारी ,तस्करी ,क्षेत्रीय माफियाओँ और अपराधियोँ का विशाल साम्राज्य ,अशिक्षा ,बूथ कैप्चरिँग ,रंगदारी .जैसी समस्यायेँ आम है जो सभी दलोँ के बड़े राजनेताओँ द्वारा पोषित है ।वे इन समस्याओँ के खिलाफ आवाज नहीँ उठाते बल्कि अपने राजनैतिक लाभ के लिए बँटवारे की राजनीति का उपयोग करते है।परन्तु नये राज्य के गठन के बाद ये समस्यायेँ वहाँ भी विकास की राह मेँ अड़चनेँ पैदा करती है।किसी भी क्षेत्र का विकास इन बुराइयोँ को समाप्त करके किया जा सकता है बँटवारे से नहीँ।
छोटे राज्योँ के राजनैतिक दल अक्सर अपने क्षेत्रीय स्वार्थ के लिए केन्द्रीय सत्ता को चुनौती देते रहते हैँ और समर्थन के नाम पर केन्द्रीय सरकारोँ से सौदेबाजी भी करते हैँ जो उनके क्षेत्रीय हितोँ के लिए तो मुफीद होती है परन्तु राष्ट्रीय हितोँ के लिए घातक होती है।
नये राज्य बनने से जनता का विकास हो ना हो पर कुछ नेताओँ का विकास अवश्य होता है और अर्थव्यवस्था पर अनावश्यक बोझ बढ जाता है ।और इसी लिए कुछ लोग छोटे राज्यो का मुद्दा उठाते रहते हैँ जिसके पीछे विकास की भावना नहीँ बल्कि राजनैतिक महत्वाकांक्षाओँ की पूर्ति की प्रबल इच्छा होती है।
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