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जल -संरक्षण

अनुभूति
अनुभूति
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जल ही जीवन है । जल है तो कल है । जल है तो जहान है। बिना जल के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती । प्रकृति ने मनुष्य को जल के रूप मे अनुपम उपहार प्रदान किया है। प्रत्येक जाति, वर्ग ,धर्म, अमीर,गरीब ,अनपढ़ ,शिक्षित सभी को जल की समान आवश्यकता है । परंतु आज जल प्रदूषित हो रहा है । जनसंख्या मे हो रही वृद्धि और तीव्र औद्युगिकीकरण से नदियो का जल जहर बन चुका है। पुराने जल स्रोत सुख रहे हैं। पृथ्वी पर जीवन के सबसे आवश्यक तत्व जल का हम दुरुपयोग कर रहे हैं।
पर्यावरण वैज्ञानिक बार-बार हमे आगाह कर रहे है की भविषया के भीषन जल संकट की चेतावनी दे रहे हैं। यहा तक कहा जा रहा है की आगामी विश्व युद्ध जल के लिए लड़ा जाएगा।
आज पूरी दुनिया के सामने जल समस्या विकराल मुंह फाड़े खड़ी है ,और हम जानते हुए भी इस विकराल समस्या को अनदेखा कर रहे है,और अपनी आने वाली पीढ़ियो का भविषय खतरे मे डाल रहे हैं।
हमारे पूर्वजो ने प्रकृति के इस अनमोल उपहार जल ,वायु ,जमीन की रक्षा की, इनके संरछन ,शुद्धिकरण के लिए नियम बनाए। यज्ञ ,हवन, वृछारोपन ,वृच्छों को जल देना ,जल पुजा के पीछे उनके यही उद्देश्य था रक्षा ,संरछन, संवर्धन। हमारे पूर्वज प्रकृति पूजक थे। हमारे देवता भी प्रकृति के विभिन्न तत्वो जल, वायु ,पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करते हैं।परंतु आज हम अपने पूर्वजो के धर्म ,पुजा ,कर्मकांड के असली उद्देस्य को नहीं समझ पा रहे हैं। मूर्ति-विशारजन को ही हमने असली धर्म समझ लिया है। परनतु अब युवा शक्ति को चेतना होगा और जल संरक्षण ,वृछारोपन ,प्रकृति की रक्षा का संकल्प लेना होगा । कैसे जल संरछन होगा ?कैसे जल की शुद्धिकरण किया जाएगा?हमारी नदिया किस प्रकार से साफ सुथरी होंगी ?इन विषयो पर हमे चिंतन करना होगा । हमे स्वयं भी जल संरक्षण करना होगा और अन्य को भी प्रेरित करना होगा तभी जाकर हम भविष्य के संभावित खतरे से बच सकते हैं और अपनी आने वाली पीढ़ियो का भविषय सुरक्शित कर सकते हैं।

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