Man ki laharen
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रुबाई
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ज़रूरत को सयाना ठीक से परखे
ज़रूरी जानकारी को टिकी रख्खे
निरा मूरख पढत-पंडित गलत दोनों
गिरे कोई तो कोई ज्ञान को लटके
– अरुण
रुबाई
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दुनिया में नही होती कुई बात कभी पूरी
दिन रात जुड़े इतने …..छूटी न कहीं दूरी
हर रंग दूसरे से कहीं ज़्यादा कहीं फीका
इंसा ना समझ पाए क़ुदरत की समझ पूरी
– अरुण
रुबाई
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यह जगत टूटा हुआ तो है नही…..”लगता” ज़रूर
और फिर आते निकल.. ….स्वार्थ भय ईर्षा ग़रूर
इसतरह मायानगर आता नज़र.. ….बनता बवाल
“लगना” ऐसा जो निहारे….जगत उसका शांतिरूप
– अरुण
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