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रुबाई

Man ki laharen
Man ki laharen
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रुबाई
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पेड़ जंगल में समाजिक नही….एकांत में है
भीड़ से हट के भी हर शख़्स खड़ा भीड़ में है
भीड़ में पला बढ़ा भीड़ का ही एक रूप हुआ
आसमां सब का एक ही न किसी भीड़ में है
– अरुण

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