रुबाई ****** सोचते हो जो…नही है जिंदगी वैसी अंधता जो भी कहे…ना रौशनी वैसी रौशनी रौशन हुई ना कह सकी कुछ भी केहन सुन्ने की ज़रूरत क्या पड़ी वैसी? – अरुण
You must be logged in to post a comment.
Read Comments