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रुबाई

Man ki laharen
Man ki laharen
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रुबाई
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सोचते हो जो…नही है जिंदगी वैसी
अंधता जो भी कहे…ना रौशनी वैसी
रौशनी रौशन हुई ना कह सकी कुछ भी
केहन सुन्ने की ज़रूरत क्या पड़ी वैसी?
– अरुण

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