Menu
blogid : 13187 postid : 870333

कुछ सच्ची बातें

Man ki laharen
Man ki laharen
  • 593 Posts
  • 120 Comments

सच्ची बात
**********
कोईभी रचाता नही है जगत ये
है रचना जो खुदसे रची जा रही है
जिसे ये समझ आ गई बात गहरी
उसे हर जटिलता सुलभ लग रही है
– अरुण
सच्ची बात
**********
न किसी की मेहरबानियों के लिए
हूँ झुकता….. जमीं चूमने के लिए
है कुदरत में घुलना.. सही जिंदगी
नही उससे……कुछ माँगने के लिए
अरुण
सच्ची बात
************
सृष्टि की न भाषा कोई.. न है बोलना उसे
सृष्टि बनकर रहना और फिर .भोगना उसे
संवाद विवाद न चक्कलस न चर्चा ज़रूरी
जिओ केवल उसमें समाए, न परखना उसे
अरुण
सच्ची बात
**********
जिंदगी हाँ.. ना……में दिया जबाब नही
हिसाब रखनेवालों का ……हिसाब नही
अनगिनत अक्षर हैं ….नये नये तजुर्बों के
कुछ जानेपहचाने अक्षरों की किताब नही
अरुण
सच्ची बात
***********
डर नही है मौत का.. है जिंदगी खोने का डर
जी नही पूरीतरह से ..अधुर रह जाने का डर
लम्हा लम्हा जिंदगी का जो जिया पूरी तरह
मर रहा लम्हे में उसको खाक मर जाने का डर
अरुण
सच्ची बात
************
सत्य और शांति की तलाश में
हिमालय जैसे निर्जन
(जहाँ कोई जन न हो)
स्थलों पर जाना भी ठीक होगा,
अगर तलाश करनेवाला अपनी
‘जन’ ता को यही दुनिया में
छोड़कर जा सके
-अरुण
सच्ची बात
***********
समय यानि स्मृति
एक अजीबसा कारागृह है..
जहाँ आदमी पहुँचने से पहले ही
पहुँच जाता है और…
जहाँ से निकलने के बाद भी
निकल नही पाता
-अरुण
सच्ची बात
**************
सत्य के पटल पर ही असत्य का जन्म होता है,
ऐसे असत्य को.. न पकड़ना है और
न ही उससे भागना है,
असत्य के पीछे छुपे सत्य पर…
सिर्फ जागना है,
उसको जानना भी नही
क्योंकि उसे जाना ही नहीं जा सकता
-अरुण

सच्ची बात
***********
जो ‘है’ उससे सटा नहीं- …..पूरा का पूरा
जो ‘है नहीं’ उससे हटा नहीं-..पूरा का पूरा
जिंदगी खिलती नही- ………पूरी की पूरी
न माया मुरझाई कभी-………पूरी की पूरी
-अरुण

सच्ची बात
***********
शून्य है शून्य के भीतर,
शून्य ही शून्य के बाहर
कितना ही गिन लो या
कितना ही नाप लो इसे
शून्य के गणित का उत्तर
शून्य के अलावा,
और क्या होगा?
-अरुण

सच्ची बात
************
विकास की संभावनाओं से युक्त हुए एक यंत्र (शरीर )
जन्म लेता है
समाज का मंत्र (संस्कार) उस पर पड़ते ही
उसमे मन जागता है…….. और शरीर को
एक कामचलाऊ स्व-तंत्र प्रदान करता है।
परन्तु अगर ‘जागरण’ (तंत्र) आ जाए ……
तो फिर शरीर
अपने पर डाले गए मंत्र से
मुक्त होकर अपने स्वभाव में लौट जाता है,
अन्यथा अपनी मृत्यु तक
मंत्र के बंधन में बंधा रहता है
-अरुण

एक शेर
*********
‘प्यास’ जतलाई ही थी हमने वे आबदार बन गये
अब हम उनकी नसीहत के तलबगार बन गये
अरुण

आबदार = in charge of water

सच्ची बात
*************
धूप पसरी हुई है चहुँओर….
नीचे जल उठी भ्रममय मशाल
कि जिसने फैला दिया अपना उजाला
कि जिसमें खुद गयी है…..वो उलझ,
न रखते हुए धूप का कोई खयाल
—-
धूप = स्वयं (Real Self)
मशाल = मै (Substitute Self)
उजाला = मन (Mind/Thoughts)
-अरुण

सच्ची बात
************
दबा है खजाना नीचे…..भीतर
सच्ची निर्मल जिंदगी का,
रख्खा है ऊपर एक पत्थर
वासनाओं की काल्पनिक जिंदगी का…..
आदमी इसी काल्पनिक बस्ती में,
इसी को सच्ची जिंदगी
समझते हुए जी रहा है
– अरुण

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply