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तीन रुबाईयां

Man ki laharen
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रुबाई
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बैद मन का.. मर्ज़ को अच्छा नही करता
टेढ़ को सीधा करे …..अच्छा नही करता
सबके सब सीधे से पागल.. ऐसे सीधों से
वह कभी मिलता नही …चर्चा नही करता
– अरुण
रुबाई
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ठहराव नही है ……है बहाव जिंदगी
न रुका कुछ भी, न पड़ाव है जिंदगी
न चीज़, न शख़्स, न जगह है कोई
‘है’ का न वजूद यहाँ, बदलाव है जिंदगी
– अरुण

रुबाई
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सिक्के के पहलुओं में दिखता विरोध गहरा
भीतर से दोनों हिलमिल आपस में स्नेह गहरा
ऊपर से दिख रही हो आपस की खींचातानी
भीतर में बैरियों के … बहता है प्रेम गहरा
– अरुण

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