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तीन रुबाईयां

Man ki laharen
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रुबाई १
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हकीकत को नजरअंदाज करना ही नशा है
असल में होश खोता आदमी ही….दुर्दशा है
तरीके मानसिक सब,…होश खोने के यहांपर
ललक भी कम नही, बेहोश होना ही नशा है
– अरुण
रुबाई २
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बैसाखी के बल लँगड़ा …चल पाता है
अंधा हर हांथ का भरोसा..कर लेता है
होश को चलना नही होता..ये अच्छा है
बिन चले जागी निगाहों से पहुँच जाता है
– अरुण
रुबाई ३
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ये बस्ती ये जमघट हैं सुनसान मेले
सभी रह रहे साथ.. फिर भी अकेले
जुड़े दिख रहे…..बाहरी आवरण ही
परंतु..ह्रदय धाग …. ……टूटे उधेडे

– अरुण

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