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रुबाई

Man ki laharen
Man ki laharen
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रुबाई
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जहांपर पाँव रख्खा है वहीं पर ‘वो’ खड़ा है
प्रयासों से मिले …..ऐसी न कोई संपदा है
नज़ारे जी रहें हैं …हो नज़र सोयी या जागी
सभी मारग सभी खोजें समझ की मूढ़ता है
– अरुण

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