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अब हम वास्तव में बदलना चाहते हैं

khushiyan
khushiyan
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आज का भारतीय समाज वास्तव में जागरूक होने को उद्वेलित है ।जिस प्रकार से आज महिलाओं के अधिकारों और समाज में उनकी मानवीय स्थिति के लिए आवाजें उठ रहीं हैं उसका सबसे बड़ा कारण है स्वयं महिलाओं का इस दिशा में मुखर होकर आवाज उठाना ।हालाँकि अभी यह सिर्फ एक शुरुआत भर है सारे परिद्रश्य में सक्रियता से अधिक शोर की उपस्थिति है ।परन्तु जिस प्रकार से दम्भी पुरुषत्व की दोषपूर्ण मानसिकता से ग्रस्त कुछ प्रभावशाली पुरुषों ने अपने विचारों में अकुलाहट और असंवेदनशीलता प्रकट की है उससे स्पष्ट है की यह शोर व्यर्थ नहीं है ।कोई भी समाज यकायक नहीं बदलता ।बदलाव की शुरुआत सदैव ही विचारों से होती है ।विचार पनपते हैं और रुढियों से ग्रस्त मानसिकता उनमें रुकावटें पैदा करते हैं ।आज का समाज भी इसी प्रकार की संक्रमणकालिता से गुजर रहा है ।यह शोर ,यह आक्रोश अति आवश्यक है क्योंकि हमारा समाज जिस प्रकार के दोहरे मानदंडों के जिन दुष्चक्रों में उलझ हुआ है वहां किसी भी तर्क को अपना स्थान बनाने के लिये बहुत श्रम ,प्रयत्न और समय की आवश्यकता है ।यह हमारे समाज की विडम्बना ही तो है कि यह धर्म प्रधान होते हुए भी अधर्म पर चलता है(इसे सिद्ध करने की जरुरत नहीं है),स्त्री पूजक होते हुए भी स्त्रिओं को दोयम समझता है ,प्रेम प्रधान दर्शन रखते हुए भी अनगिनत वर्गों में विभाजित होकर संकुचित जीवन जीता है ।
यह आक्रोश सिर्फ आज के लिए ही नहीं है यह तो तय है ।आज एक दामिनी कारण बनी है तो कल कोई और भी उद्दीपक की भूमिका में होगा ।हमारे समाज में अत्याचारों की कमी थोड़ी है ।इसलिए कोई आश्चर्य नहीं होगा की कल सुबह कोई नवप्रसूता अपनी मार दी गई नवजात कन्या के लिए सड़कों प् खड़ी हो और अब तक तमाशा देखने के आदी रहे भारतीय के नए उभर रहे साहसी समाज के अग्रदूत उसका साथ दे रहे हों या झूठी शान के शिकार हुए प्रेमियों के लिए भी कैंडिल मार्च निकाल दिए जाएँ ।
जी हाँ विचार आकार ले रहे हैं , हम बदलना चाहते हैं ,हम अब अधिक मानवीय हो रहे हैं ।हम बदलना चाहते हैं उन तमाम संकीर्णताओं को जिन्होने हमारे समाज में अत्याचारों को सुरक्षित कर रखा है ,जिन्होने प्रेम को नफरत के पिंजरों में कैद कर के रखा है ,जिन्होंने कर्म को धर्म के तले दबा के रखा है ।
तो विचार करें ,विचार जरूर करें ।विचार आवश्यक हैं ।विचार ही हमें रास्ता दिखायेंगे ,विचार ही हमें सक्रिय बनायेंगे , विचार ही हमारे बच्चों को एक प्रगतिशील और सुरक्षित समाज देंगे ।

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