Menu
blogid : 12641 postid : 8

रावणराज्य में रामराज्य के पाठ्यक्रम

khushiyan
khushiyan
  • 9 Posts
  • 19 Comments

रानीबिटिया चली घूमने दिल्ली से चंडीगढ़ ………….उत्तर प्रदेश के सरकारी विद्यालयों की कक्षा तीन की हिंदी भाषा की पाठ्य पुस्तक ‘ कलरव ‘ में संकलित यह कविता बाल मन को यह बोध कराती है कि सारा भारत उसका घर है और वह भारत के किसी भी हिस्से में पूर्णतः सुरक्षित है।इतनी सुरक्षित कि वह अपनी माँ की अनुमति के बिना भी जा सकती है ।परन्तु वह रानी बिटिया नहीं जानती कि यदि उसे पुस्तक से निकालकर आज की दुनिया में लाया जाये , तो उसका अपना मोहल्ला यहाँ तक कि पड़ोस भी सुरक्षित नहीं है । छोटी कक्षा में स्वतंत्र भ्रमण का जो सब्जबाग दिखाया जाता है , बढ़ती कक्षाओं की एक भी पंक्ति रानिबिटिया को उसकी बढती उम्र के साथ बदलते बाहरी मनोभावों के प्रति जरा भी सचेत नहीं करती । और रानीबिटिया प्राकृति प्रदत्त चंचलता के साथ अपने गली-कूचों और पगडंडियों में अपने दिल्ली-चंडीगढ़ को खोजती रहती है , जहाँ उसी का कोई विश्वसनीय उसकी मासूमियत का शत्रु बन जाता है ।
एक से लेकर बारहवीं तक के पाठ्यक्रम पर नजर डालने पर बालिका सुरक्षा के प्रति खतरनाक उदासीनता स्पष्ट दिखती है । उत्तर प्रदेश में महिलाओं , विशेष रूप से कम उम्र की लड़कियों के प्रति बढ़ते अपराधों में कहीं ना कहीं उनकी शिक्षा में इस जागरूकता की कमी का भी अहम् योगदान है।
—पाठ्यक्रम की पड़ताल —-
अनिवार्य नैतिक शिक्षा , शारीरिक शिक्षा , सामाजिक विषयों में भी बालिकाओं को आज के परिवेश में उनकी स्व-सुरक्षा के बारे में नहीं बताया जाता है। काफी चिंतन की बाद पूर्व माध्यमिक एवं माध्यमिक कक्षाओं में काफी संकोच पूर्वक यौन शिक्षा की कुछ सामग्री जोड़ी गई है, परन्तु वह भी सिर्फ गुप्तांगों की , गुप्त रोगों की , एड्स और परिवार नियोजन की अति संक्षिप्त जानकारी तक ही सीमित है । परन्तु इससे बालिकाओं की सामाजिक सुरक्षा कहाँ तय हो पाती है ?पाठ्यक्रमों में शामिल होना तो दूर , बिडम्बना तो यह है कि विद्यालयों में बालिका सुरक्षा पर चर्चाओं का भी माहौल और इच्छाशक्ति ही नहीं है। सच तो यह है कि आज का पाठ्यक्रम और शिक्षा प्रणाली बालिका सुरक्षा के प्रति पूर्णतः उदासीन है ।
——क्यों है खतरनाक —–
नई सदी के पहले वर्ष से ही विविध पाठ्यक्रमों में बदलावों का दौर जारी है ।कई पाठ्यक्रम तो कई बार संशोधित हो चुके हैं । सर्वशिक्षा अभियान के प्रसार के साथ ही , शिक्षा गारंटी अधिनियम और साथ में नकद राशि , साईकिल , स्कोंलर , ड्रेस , पुस्तकें , बैग , भोजन जैसी तमाम सुबिधाओं ने शिक्षा का स्वरुप , तरीका और लक्ष्य ही बदल दिया है । परिणाम स्वरुप बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित से वंचित हैं । शिक्षा महज कोरे कागज भरने और कक्षोन्नति तक ही सीमित हो गई है । बदलते सामाजिक-परिवेश से तारतम्य और आधुनिक आवश्यकताओं से रहित शिक्षा-पाठ्यक्रम बालिकाओं को लड़का-लड़की एक सामान जैसे जुमलों में उलझाते हुए उन्हें स्व-सुरक्षा के प्रति असावधान कर रहे हैं ।शिक्षा में बढ चुके सरकारी हस्तक्षेपों और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के प्रयासों के बजाय बच्चों के अभिभावकों को खुश करने वाली नीतियों के कारण अभिभावक भी प्रायः बच्चों की मूल्यपरक शिक्षा के प्रति बेखबर रहने लगे हैं ।
——अपराधों का कड़वा सच——-
अपराध अनायास नहीं होते हैं । वे मानसिक कुप्रवृत्तियों के कुपरिणाम होते हैं । परन्तु यदि समय रहते इन कुप्रवृत्तियों को पहचान लिया जाये , तो अधिकाँश अपराध होंगे ही नहीं । यौन अपराधों के अधीकांश सजायाफ्ता कैदी स्वीकारते हैं की पीड़िता पर उनकी नजर पहले से ही थी । कई मामलों में तो वे दूसरी या तीसरी बार में घटना को अंजाम दे पाए । जाहिर है की उनके पूर्व मनोभावों और प्रयासों को या तो नजरअंदाज किया गया होगा या फिर पहचानने में गलती हो गई हो । दोनों ही बैटन का एक ही कारण है- जानकारी व जागरूकता का अभाव ।
—–क्या अपेक्षित है —–
पाठ्यक्रमों को वर्तमान के तकनीकी और मुक्त समाज से जोड़ना ही होगा । विशेषकर छात्राओं को उनकी स्व-सुरक्षा के प्रति जागरूक करने वाली सामग्री की नितांत आवश्यकता है । बालिकाओं को उनके प्रति असामान्य व्यवहार , संकेत , स्पर्श के तरीके , प्रकार एवं स्थान और अनैतिक आचरण जैसे मुद्दों की समझ और जागरूकता के लिए कोई अन्य नहीं , वरन शिक्षा ही प्रभावी माध्यम है । बालिकाओं को यह बताना ही होगा की अनैतिक क्या है ? उन्हें यह समझाना ही होगा कि उन्हें छूने का अधिकार किसी को नहीं है । किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा उनके सिर पर और पीठ पर हाथ रखने की असामान्यता की जानकारी उन्हें जरूरी है । अकेले , अलग से बुलाये जाने की असामान्यता , बाहरी व्यक्ति द्वारा सहेलियों की अपेक्षा खुद पर अधिक ध्यान दिए जाने की असामान्यता का ज्ञान भी जरूरी है । कई बार अपराधों में नासमझ-नादान बच्चियों की रजामंदी भी कारण होती है ।तो इसके लिए क्या आवश्यक नहीं कि उन्हें किसी प्रकार उनके अच्छे-बुरे से परिचित कराया जाये , उन्हें सचेत किया जाये , शिक्षा में संस्कारों को समाहित किया जाये ? हालाँकि निश्चित यह जिम्मेदारी परिवारों और अभिभावकों की ही है , परन्तु आजके इस आपाधापी के माहौल में जहाँ छात्र-छात्राएँ अपने निर्णय स्वयं लेने लगे हैं , वे अपने माता-पिटा की नज़रों से अधिकतम दूर रहने लगे हैं , इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया समाज में खुलापन भरते जा रहे हैं और तकनीक के रूप में उनके पास 24*7आवर्स एक्टिव जिन्न आ चुका है , पाठ्यक्रमों की लिखित सामग्री ही उन्हें स्व-सुरक्षा के प्रति समझदार बना पाएगी ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply