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प्रतीक्षा का वृहद् अनुभव मुझे भी हुआ है.
प्रेम का इक विरल अनुभव मुझे भी हुआ है.
जिसके खुले केशों से झरती
और घुलकर के अनिल में बिखर जाती वो महक….
या, पर्वतों की ओट से चुपचाप कोई बलखाती हुई नदिया की जैसी
अटखेलियाँ करती हुई;और फिर सहसा!
लाज से,छुपकर के सीने से लिपट जाती हुई
उस अप्सरा के सानिध्य का वो सुखद अनुभव मुझे भी हुआ है….
उस रात की थी श्रांत छवि जिसने बनाया पाश वो,
अधखुले ओठों पे फैली सुरमई मुस्कान वो –
और, व्यक्त करती नयन से अनकही बातें कई…
उस रात की वीरानी को हरते, दग्ध इच्छाएं लिए ह्रदय में
मधुमास के भ्रमपूर्ण पल में,
झींगुरों के मस्त कोलाहल का वो मधुर अनुभव मुझे भी हुआ है.
दुष्प्राप्य है ये जानता हूँ,
और कंटक हैं डगर में सह्श्रों ये मानता हूँ
पर, भावना का मर्म ऐसा
प्रेम की है नियति इतनी
युगों तक की चिर प्रतीक्षा, अनवरत चलती तपस्या….
कुपित ऋषि की उस परीक्षा
और उस अभिशप्त त्यक्ता (शकुंतला) के विरह की वेदना सा
करुण अनुभव मुझे भी हुआ है.
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