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प्रकृति से जुड़कर ही पर्यावरण संरक्षण संभव

Ashish Arya
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विभिन्न सोशल साइट्स के माध्यम से कल केरल में कुछ शरारती तत्वों द्वारा एक गर्भवती हाथी को विस्फोटक पदार्थों से भरा अनानास खिलाने की घटना ने मन को झकझोर रख दिया। अनानास को खाने के पश्चात उस हाथी के मुंह पूरी तरह जख्मी हो गया जिसके कारण वह अगले 5 दिनों तक वह कुछ नहीं खा सकी और गर्भ में पल रहे बच्चे भी भोजन न मिल सका। उसने असहनीय पीड़ा को सहते हुए अपने प्राण त्याग दिए।

 

 

अब यहां प्रश्न यह उठता है कि क्या हाथी ने वास्तव में आपसे कुछ खाने के लिए मांगा था और यदि अब उसको कुछ खाने को नहीं दे सकते थे तो आपको यह अधिकार भी किसी ने नहीं दिया कि आप एक क्रूर मजाक के द्वारा किसी जीव मृत्यु के मुंह में धकेल धकेल दें। जो देश प्राचीन काल से ही जीवो के प्रति अपनी सहानुभूति एवं संवेदाओ लिए जाना जाता रहा हो उस देश मे इस प्रकार की घटना हमारी मार्मिक संवेदनाओ पर प्रश्न चिह्न लगाती है।

 

 

जिस राज्य में घटना घटी वह देश का सर्वाधिक शिक्षित राज्य माना जाता है। अतः यहां यह प्रश्न भी होना लाजमी है क्या हमारी शिक्षा हमें संवेदनहीनता की ओर ले जा रही है। कहीं हम शिक्षित होने के साथ-साथ कुशिक्षित होने के मार्ग पर तो नहीं बढ़ चले। क्योंकि जिस देश की प्राचीन वैदिक गुरुकुलीय यह प्रणाली में वन्य जीव और मनुष्य एक सहचर के समान साथ रहकर के जीवन व्यतीत करते थे उस देश में इस घटना का होना उस देश की शिक्षा व्यवस्था पर भी प्रश्न खड़े करता है।

 

 

जब से यह घटना मेरे संज्ञान में आई तब से बार-बार मन में मार्मिक संवेदनाओं का एक समुद्र उमड़ आता है । उस बेजुबान जीव का क्या कसूर था जिसको हमने क्रूर मनोरंजन के द्वारा मरने के लिए विवश कर दिया। परंतु कुछ समय सोचने के बाद एक अन्य प्रश्न मेरे दिमाग में आया मस्तिष्क में आया कि ऐसी घटनाएं होती क्यों ऐसी घटनाओं के होने के पीछे कारण क्या है क्या हमने ऐसा सोचने की कोशिश की है मैंने जब थोड़ा सोचा तो मैंने पाया कि मनुष्य आज भौतिक विकास की दौड़ में इतना व्यस्त हो चुका है कि उसने अपने आसपास सुंदर प्राकृतिक चीजों पर ध्यान देना ही छोड़ दिया है। उसे केवल भौतिक संपदा से प्यार हो गया।

 

 

देखा जाए तो हम प्रकृति से बहुत दूर होते चले जा रहे है और यही कारण है कि हमने प्रकृति की महत्ता को समझने की कोशिश ही नहीं ।जब तक हम प्रकृति के महत्व को नहीं समझेंगे शायद इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी होती रहेगी क्योंकि मेरा ऐसा मानना है कि जब तक हम प्रकृति के साथ जुड़कर उसको समझने का प्रयास नहीं करेंगे तब तक हम यह नहीं समझ पाएंगे कि उसका महत्व हमारे लिए क्या है? प्रकृति हमारे लिए किस प्रकार महत्वपूर्ण है? जब हम प्रकृति से नहीं जुड़ेंगे प्रकृति के विभिन्न अवयवों के महत्व को नहीं जानेगे और उनको अध्ययन करने की कोशिश करेंगे तब हम प्रकृति का संरक्षण भी नहीं कर पायेंगे।

 

 

 

हमारे पूर्वज तो प्रकृति से हमेशा जुडाव रखते थे।  हमारे विभिन्न शास्त्रों मे प्राकृतिक अवयवों को पूजनीय माना गया है। हमारे देश पीपल के वृक्ष से लेकर सर्प तक को हमारे पूर्वजो ने पूजनीय माना है। क्योंकि हमारे पूर्वजों को इस प्राकृतिक संपदा के महत्व का भली भांति ज्ञान था। हमारे प्राचीन शास्त्रों मे बहुत पशु पक्षियों को भगवान के चिह्नो के रुप मे वर्णन करते हुये संरक्षण की बात की गयी है।

 

 

 

इन सब बातो ये सिद्ध होता कि प्राचीन काल मे हम प्रकृति जुडकर अपना जीवन यापन करते थे और व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक दोहन नहीं करते थे। परन्तु के आज के इस आधुनिक युग मे हमने जिस तरह प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक दोहन प्रारम्भ किया , इससे हम अपने ही अस्तित्व को खतरे मे डालते चले जा रहे है। हमे चाहिए कि हम प्रकृति से जुडकर उसके प्रत्येक अवयव की महत्ता को समझे, वास्तविक रुप से तभी हम प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने मे सक्षम होगें।

 

 

नोट : इन विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं।

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