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हैवानियत के क्रूर चेहरे ने आज तीसरी बार झकझोरा। सुबह से रात तक खबरों के बीच रहते हुए खुशी-गम एक रूटीन की तरह हो चले हैं। पर, कभी-कभी कोई वाकया वाकई झकझोर कर रख देता है। आज ऐसा ही हुआ।
दो परिवारों के नौ सदस्यों की हत्या। नरसंहार! हत्यारों ने मौत के लिए गोली नहीं, कुल्हाड़ी चुनी। एक-एक को काट डाला। यह घटना है झारखंड के गुमला जिले की। उग्रवाद-अपराध के लिए कुछ ज्यादा ही चर्चित है यह इलाका। पर, जिस तरीके से ढाई किलोमीटर के फासले पर दो परिवारों का नरसंहार किया गया वह किसी को भी विचलित कर दे।
इंसान इस हद तक क्रूर हो सकता है! शायद हिंसक जानवर भी मासूम बच्चों को थोड़ी देर के लिए बख्श दें, लेकिन ये ‘इंसान…।Ó साठ साल की बूढ़ी महिला को भी नहीं छोड़ा। और तो और दो साल के बच्चे को किस तरह कुल्हाड़ी से काटा होगा। खून के धब्बे, खून सनी कुल्हाड़ी इन सबकी गवाही दे रही थी। चारों तरफ पसरा सन्नाटा। जिन घरों से पांच-पांच, चार-चार लोगों का जनाजा निकल रहा हो वहां आंसू भी तो बर्फ में तब्दील हो जाते हैं। ओह! खून सना वह घर। किसी युद्ध के मैदान में गिरी लाशें देख हृदय नहीं कांपेगी, पर जहां निहत्थे निर्दोषों के खून से धरती सनी हो…। खेत में पड़ी मासूम की लाश। दो साल का अबोध क्या यह भी समझ पाया होगा कि उसे अब मारा जाएगा।
इससे पहले दो और घटनाएं थीं, जिसे देख रोंगटे खड़े हो गए थे। दो-ढाई साल पहले लोहरदगा में इसी तरह एक ही परिवार के पांच लोगों की घसीट-घसीट कर हत्या। एक की तो हत्या तब की गई, जब वह मस्जिद में झुक कर नमाज अदा कर रहा था। इससे पहले की एक सामूहिक आत्महत्या की घटना ने भी झकझोरा था। आर्थिक बोझ से दबा पूरा परिवार फांसी के फंदे से झूलता हुआ। पति-पत्नी और तीन मासूम बच्चे। निश्चित तौर पर खुद को फांसी चढ़ाने से पहले बाप ने तीन मासूमों की फांसी लटका हत्या कर दी थी। बाद में खुद भी झूल गया। आखिर ऐसा क्यों? क्रूरता की यह पराकाष्ठा! इंसानी जिंदगी क्या कीड़े-मकोड़े से भी बदतर। जहां दो साल के मासूम को कुल्हाड़ी से काटकर फेंक दिया जाता हो। शोध करने वाले समाजशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों के लिए यह बहुत बड़ी चुनौती है, वे बताएं कि आखिर लोग नीचता की इस हद तक क्यों गिर रहे। समाज कहां जा रहा है? ऐसा ही चलता रहा तो आने वाला कल क्या होगा?
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