चंद लहरें
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कदम्ब फूल गए।
हो गयी आगाज
रास की,
चरम उल्लास की,
कृष्ण के पदचाप की।
बिहँसउठी राधिकाएँ
निर्बन्ध,
छनक गए नूपुर,
दहक उठी यमुना,
उछल रही तरंगें,
जगमगा उठी आस
गोपिकाओं की ।
उमगा उमँग
फूल गए कदम्ब ।।
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चूका महुआ
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महुआ कब का चूका
रोटियाँ पक गयी
भट्ठियाँ अभी भी सुलगी हैं
कुल्हडें छलक गयीं
मदिर आंखों में
फिर भरी महक मद की
उमँग पर है मदहोशी
चहक रहे गाँव में
आबालवृद्ध।।
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>सावन पूजन<
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एक बार फिर
चढ़ गए कांवर
कन्धों पर।
एक बार फिर
घनघना रहीं घंटिया,
मंदरों में ।
लुटियों के साथ!
लोग खड़े मन में लिए
जाने कितने
जीवंत आस।
दूध,दधि,जल
याकि बेलपत्र!
कैसे बुझेगी
महाकाल की प्यास।।
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