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अविश्वास प्रस्ताव का लाया जाना

चंद लहरें
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यह दृष्टिकोण किसी राजनीतिक विश्लेषक अथवा उसके दाँव पेंचों से सुपरिचित व्यक्ति का नहीं अपितु सामान्य से मस्तिष्क का है जो दिन प्रतिदिन की सरकार  राज्य और जनता के मन की हलचलों से पत्र पत्रिकाओं और टी वी चैनलों के माध्यम से यत्किंचित अवगत होता रहता एवम अपनी राय बनाता है। यह कितना सही है कहा नहीं जा सकता पर कुछ प्रासंगिक तो अवश्य है  । अचानक एक खबर जो ध्यान आकर्षित कर रही है वह यह कि वर्तमान केन्द्र सरकार पर एक संकट प्रस्तुत हो गया है,और वह है विरोधी दलों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत किये जाने का।प्रस्ताव पेश किया जा चुका है।यह अविश्वसनीय है कि यह सरकार के पतन का कारण बन जाएगा ,किन्तु इस प्रस्ताव से यह तो स्पष्ट होगा कि वर्तमान स्थितियों में केन्द्र सरकार कितने पानी में है।कौन से दल, कितने वर्ग किसी न किसी कारण से नाराज चल रहे हैंजिनकी नाराजगी का खामियाजा  2019 के चुनावों में सरकार को भुगतना पड़ सकता है।यह एक चौंकाने वाली स्थिति हो सकती है जिसके बलबूते विपक्ष चुनावी समर में विजयी होने की इच्छा रखता है।

अबतक निर्द्वन्व बढ़ते भाजपा के विजय रथ को एक हद  तक गुजरात  परिणामों ने हल्का सा झटका दिया  और संभलने का प्रयास करते करते अचानक उत्तर प्रदेश के बाई इलेक्शन में दोनो सीटों का हार जाना , बिहार के अररिया सीट पर पकड़ नहीं बना सकना बी जे पी के लिए महाचिंतन का विषय अवश्य बन गया  होगा । यू  पी  के दोनों ही मुख्यमंत्री एवं उप  मुख्यमंत्री द्ववारा खाली की  गयी सीटों का बिल्कुल ही छिन जाना, मतदान के प्रतिशत मे भारी कमी आदि गिरती साख को संकेतित करती है अथवा अतिरिक्त विश्वास और भरोसे की निश्चिंतता  की ओर।बेमेल गठबंधन मे उस क्षेत्र विशेष की जनता को कुछ परिवर्तन की आशा दिखायी पड़ी।इस स्थिति में प्रदेश सरकार से उनकी रूष्टता नजर आती है  जिसे प्रगट करने का  तत्काल उपाय उन्हें नजर आ गया।वे मुख्यतः  दलित और किसान वर्ग  के लोग  थे जिन्हें सामाजिक न्याय दिलाने का वादा,विकास एवम समस्याओं के निराकरण का वादाउत्तर प्रदेश सरकार ने  किया था ,उनकी पूर्ति के लिए दूरदर्शी बनकर अधिक प्रतीक्षा वे नहीं करसकते।उन्हें तो तुरत फुरत परिणाम चाहिए।विकास के प्रलोभन से जिस बी  जे पी को गले लगा कर रखा था उसने सबका साथ , सबका विकास को  एक थोथा नारा करार दे दिया। वस्तुतः दलित कहे जाने वाले लोग और मध्यवर्गीय किसानअभी इस मानसिकता से नहीं उबरे हैं कि वे पिछड़े हैं, सदैव से उपेक्षा के शिकार भीहैं।.शिक्षा ,स्वच्छता, सामाजिक और स्थानीय सुरक्षाउनकी मौलिक आवश्यकता नहीं। सरकार उन्हें पैसा किसी बहाने देती रहे। उनके खातों में पैसा आता रहे,  अशिक्षा उनकी योग्यता का पैमाना न हो, उनकीमजदूरी ही इतनी हो कि जीवन की तमाम सुविधाएँ उन्हें मिलें। फसल उगाएँ या नहीं खेती के नाम से लिए सारे कर्जे माफ होतेजाएँ।बहुत दिनों से पोषित इस मानसिकता के वे शिकार हैंऔर आगे भी इसका पोषण वे चाहते हैं।स्वास्थ्य ,सफाई ,चिकित्सा आदि सब सरकार की जिम्मेदारी है।अगर ये प्रयासहीन समाधान सरकारी स्तर पर नहीं हो तो उनके पास शिकायतो  का पुलिन्दा होगा और जिसका लाभ विरोधी दल लेंगे ही। ऐसा प्रतीत होता है कि स्थान विशेष की जनता ने तद्जनित मापदंडों पर ही वर्तमान सरकार को नकार कर उनको अपना लिया जो कम से कम उनके मन के विरोध को समय समय पर हवा तो देते रहते हैं।वस्तुतः दो विरोधी दलों का एक हो जाना सुखद आश्चर्य भरा प्रलोभन था उनके लिए।इस स्थिति ने विरोधी दलों की रुकी हुई गति में नवजीवन का संचार कर दिया।राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा सरकार को टक्कर देने की मुहिम को बल प्रदान कर दिया। इस स्थिति के लिए भाजपा की शुष्क योजनाएँ भी जिम्मेवार हैं जो विकासमूलक होते हुए भी तुरत सकारात्मक परिणाम नहीं दे पा रहीं ।दूरदर्शी योजनाएँ सामान्य जनता की पहुँच से बाहर होतीहैं और उन्हें सहज आकर्षित करने में असमर्थ भी।

वे, जिन्होंने भाजपा के बढ़ते हुए प्रभाव को देख एन डी ए की ओर रुख किया था , चन्द्रबाबू नायडू जैसे व्यक्तित्वों का  शामिल होना, रा ज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने जैसे उद्येश्यों का पूर्ण नहो पाना  राजनीतिक  सम्बन्ध को समाप्त करने के लिए पर्याप्त था।समर्थन वापसी की धीमी गति से उन्होंने इसे अंजाम दे दिया । इस तरह विरोधी दलों को भरोसे योग्य एक और दल का साथ मिला ।

कहा जा सकता है कि विरोधी दल नयी उर्जा से भरकर सक्रिय हो सकते हैं।ऐसे प्रलोभनवश  एन डी ए में शामिल दलों,व्यक्तियों में सुगबुगाहट भर रही है।अगर एक प्रतिशत भी केन्द्र सरकार के हिलने की आशंका उन्हें होती हैतो अपने भूले बिसरे मुद्दों के साथ सारेआपस के विरोधों को ताक पर रख वे एकजुट होने का यत्न कर सकते हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमारकी स्वच्छ छवि इसलिए दीखती है कि वे तहेदिल से बिहार का विकास चाहते हैं। वे अपनी भ्रष्टाचारहीन छवि को भी बचाकररखना चाहते हैं।पर, भाजपा के सभी सिद्धांत उन्हें भी प्रिय नहीं हैं ।उस ओर उनकी शंकित दृष्टि बनी हुई है।बिहार के लिए विशेष दर्जे की माँग उन्होंने नहीं छोड़ी हैऔर जैसा कि उन्होंने धीमे स्वरों में व्यक्त किया है, सामाजिक समरसता के मुद्दे पर उन्होंने अपने विकल्प खुले रखे हैं।उन्होंने लालू यादव का साथ जिस नाटकीय ढंग से छोड़ाउसके प्रति बिहार की जनता के मन में अविश्वास और आक्रोश का पनपना जायज हैचाहे उद्येश्य बिहार का विकास ही क्यों न हो। निती श कुमार ऐसे अप्रत्याशित और अविश्वसनीय कदम उठा सकते ही हैं।हलाकि अब ऐसा करना उनके लिए छवि  संकट का कारण बन सकता है।नितीश कुमार को हिंदुत्व से कोई लेना देना नहीं राम जन्मभूमि संकट ,गो हत्या जैसं मुद्दे उन्हें प्रिय नहीं।जबकि भाजपा अपने मुख्य मुद्दे सबका विकास के साथ साथ लटके हिन्दुत्व ,लव जिहाद,गो हत्या जैसे मुद्दों मे फँसती, निकलती जनता को भटकाती रहती है।हो सकता है वह सीधी तरह इनमें लिप्त न भी हो पर उससे जुड़े दल और संस्थाएँ भ्रम पैदा करने के लिए काफी होती हैंजो सबको एक साथ बाँधने की उसकी चेष्टा पर भारी पड़ जाती हैं।नितीश कुमार इन मुद्दों पर चुप अवश्य हैं किन्तु सन्तुष्ट नहीं।भाजपा  भारतीयता ,राष्ट्रीयताऔर हिन्दुत्व को गड्डमड्ड कर जिन निष्कर्षों पर पहुँचने का मंतव्य रखती हैवह सबके मनोनुकूल तो नहीं वरन एक प्रश्न चिह्न खड़ा करता सा प्रतीत होता है।उगते और तपते सूरज को सभी नमन करते हैं पर तेज के कम होनेकी भी कुछ तत्व प्रतीक्षा करते ही हैं।मायावती सपा के साथ मिल नये स्वप्न देखना चाहती है। सैद्धान्तिक वैर   को भूलकर भी अपनी जमीन सुदृढ़ करना चाहती है।आज की राजनीति में सिद्धांत अस्तित्वहीन होते जा रहे हैं ।

ममता बनर्जी एक तीसरे गठबंधन के प्रति उत्सुक दीखती है। इन सबों में काँग्रेस की स्थिति क्या होगी कहा नहीं जा सकता। बदलते तेवर के साथ राहुल गाँधी के नेतृत्व तले कौन कौन होंगे ,कहा नहीं जा सकता।

लालू यादव कानून के पंजे में फँस चुके हैं जेल की अवधि बढ़ती ही जा रही है। पर राजद की महत्वाकांक्षाएँ कम नहीं हुई हैं।बौद्धिक जगत को ,राष्ट्रीय वैचारिक जगत को यह सही लग सकता है  पर उनसे पोषित वर्गों का पुत्र तेजस्वी यादव के नेतृत्व मे विरोधी गुट का सशक्त साथ देना सहज संभव है।

महाराष्ट्र में शिवसेना के तेवर अनुकूल नहीं ।वह सदैव आँखें दिखाने को प्रस्तुत है। वह अविश्वास प्रस्ताव के समय वह सरकार के पक्ष में खड़ी नहीं रहेगी।

सभी विरोधी दलों का एक हो जाना स्वाभाविक है । यह केन्द्र सरकार के शक्ति परीक्षण के साथ विरोधी दलों का शक्तिपरीक्षण भी होगा।विरोधी दलों की आँखें बन्द नहीं हैं ।वे जानते हैं कि यह निष्प्रयोजन तो नहीं पर मनोनुकूल निर्णायक परिणाम देनेवाला भी नहीं होगा।पर आँखें बी जेपी की खुलनी हैं।रंगमंच पर जो कुछ होगा ,देखनेयोग्य होगा नेपथ्य में भी बहुत कुछ है जो इस शक्तिपरीक्षण के बाद मुखर होकर सामने आएगा।बहुदलीय सरकार की तरह की समस्याएँ वर्तमान सरकार के सम्मुख हैं हलाकि इस बाधा को पार करनें बीजे पी स्वयं सक्षम है।बस 2019 के चुनाव ही दृष्टिपथ में रखने की आवश्यकता है।

 

आशा सहाय 24- 3 -2018

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