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काव्य-

चंद लहरें
चंद लहरें
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फूटा क्यों अन्तस से प्रवाह…
यह किन भावों का महाज्वार…
शब्दों ध्वनियों का लय-प्रवाह..?
या व्रण का अन्तस के महा भार…
इतना ही सा था मनःविकार..?
जीवन के महासमर के इस
वैचारिक मंथन का तत्व-सार…?
यह भी इतना क्या प्रबल आह।
यह प्रेम विरह का कथा –सार..

या प्राप्ति त्याग का मिलन –काव्य…
यह हृदय क्षोभ का चरम भाव..।
मन-कोनों को यह मथित,व्यथित,
उत्थित कर मन के चरम भाव
फूटा ज्यों सात्विक मनः विकार…।
यह मन की यात्रा है महार्ध,
मन –महाज्वार का लय-प्रवाह…।.।

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