चंद लहरें
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ये पुरानी डालें
कँटीली
मलिन भी हैं कुछ अधिक
“स्याह हैं माँ”
हैं पड़ी कोने में इक
सुन्दर भी नहीं
“चुभती हैं माँ”
अनदेखी कर
मैने साध ली चुप्पी
देखा था
कुछ फूट रहा उससे।
एक दिन प्रातः चकित
प्रथम प्रभा में
सूरज की किरणों की;
बच्चे आए।
“माँ फूल !”
हाथ पकड़ लेगए वहाँ..
देखो माँ ,
“यह फूल !”
कैक्टस में?
सुन्दर-ताल में खिले
प्रातः कमल सा
कितना सुन्दर !
झिलमिल करता
स्मित नयनों में भर
कहा मैने
हाँ, प्रकृति-सत्य यह
फूल खिलते हैं
हृदय में कैक्टस के भी।
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