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जन गण मन

चंद लहरें
चंद लहरें
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हाँ यही वह स्थिति है ,जिसके उत्पन्न होने की आशंका थी।यह भी एक परिणाम हैजिसका उल्लेख एक प्रसिद्ध समाचारपत्र टाइम्स आफ ईन्डिया में प्रकाशित एक समाचार में हुआ कि चेन्नई में बीस व्यक्तियों ने मिलकर नौ उन व्यक्तियों की पिटाई कर दी जिन्होंने पिक्चर आरंभ होने से पहले राष्ट्रगान की ध्वनि सुन खड़े होने की आवश्यकता महसूस नहीं की थी।बेहतर यह होता कि उनके नामऔर फोटो स्थानीय समाचारपत्रों मे प्रकाशित कर दिये जाते ताकि सामाजिक स्तर परजनता के सामने हुए अपमान बोध की शुरुआत होती।शायद कुछ दिनों तक चलनेवाला यह सिलसिला उद्देश्यपूर्ति में सफल होता।पर इतना सोचने तक धैर्य धारण करनेकी शक्ति शायद सामान्य जनता में नहीं है।
–यह एक स्थिति इस सोद्देश्य विधान पर कई प्रश्न खड़े कर देती है।पिटनेवाले और पीटने वाले दोनों की राष्ट्रभक्ति और उसकी मात्रा संदेह के घेरे में आ जाती है।तत्सम्बन्धित उनके व्यक्तित्व का सम्पूर्ण आकलन कर लेना इतना भी सहज नहीं।पिट जानेवाले लोग युवा, छात्र या समाज के किसी भी वर्ग से सम्बद्ध क्यों न हों , क्या वे राष्ट्रविरोधी व्यक्तियों की श्रेणी में आनेवाले लोग थे अथवा यों ही आलस्य से पीड़ित ,शुद्ध मनोरंजन की मनोदशा से आक्राँत लोग।सिनेमा हॉल में,किसी अन्य मनोभावना को हावी होने देने को वे तत्पर नहीं थे। यों भी सिनेमा देखने हेतु पिक्चरहॉल जाने वाले प्रत्येक कोटि के लोगों से हम स्थितप्रज्ञता की अपेक्षा नहीं कर सकते।हो सकता है कि समाज के बहुत अधिक तहजीब प्रेमी लोग भी ये नहीं हों। पर क्या सचमुच देशभक्ति से हीन ये देशद्रोही की श्रेणी में रखे जाने योग्य ही होसकते हैं?होसकता है,ये वैसे लोग हों जो सिनेमाहॉल केबाहर किसी की देशद्रोही बातों को बर्दाश्त नहीं करपाते !होसकता है येऐसे लोग हों जो आवश्यकता पड़ने पर देश की सुरक्षा के लिए जान की बाजी लगाने कोभी तत्पर हो जा सकते।
—निर्णय करना कठिन है।
— और वे,जिन्होंने उन्हें पीटा,क्या वे सचमुच राष्ट्र भक्त थे? क्या वे अराजक तत्व नही थे? प्रथम नौ व्यक्तियों से कम या अधिक?।ऐसे निर्णयों के फलस्वरूप उत्पन्न होनेवाली यह इस देश में एक अत्यन्त स्वाभाविक स्थिति होनी चाहिए।
—प्रश्न यह है कि ऐसे लोगों को आप किस प्रकार दंडित करॆंगे।इस बात का पूर्व निर्णय कर लेना समुचित होता।न्यायालय के किसी आदेश की अवमानना के लिए दंड विधान आवश्यक होना चाहिए।
—-कोर्ट का यह निर्णय देश मे देशप्रेम विकसित करने अथवा देशप्रेम प्रदर्शित करने की एक स्वस्थ आदत विकसित करने की सोच से प्रभावित तो है ही और यह किसी भी प्रकार गलत भी नहीं।जब हम बड़े-बड़े अवसरों पर,राष्ट्रीय महत्व या राष्ट्रीय पहचान से जुड़े अवसरों पर तन्मय होकर राष्ट्रगान गा सकते हैं ,विजयों के जश्न से उसे जोड़ सकते हैं तो सिनेमाहॉल में क्यों नहीं उसके सम्मान में खड़े हो सकतेहैं। किन्तु यह निर्णय सिनेमाहॉल में जुटने वाले समूह की गुणात्मक समीक्षा करने मेंपूर्णतःअसमर्थ प्रतीत होता है।साथही प्रदर्शित होनेवाली पिक्चरों की गुणवत्ता से भी पूर्णतःअपरिचित। परिणामतः माहौल की सही सही कल्पना नही की जा सकती।हाँ अगर हर पिक्चर केआरम्भ में किसी देशभक्त ,किसी शहीद,स्वातंत्र्य –संघर्ष के किसी नायक की कथा अर्धकथा अथवा सांकेतिक कथांश दिखा दिया जाय तो शायद वह उद्देश्य सिद्ध हो, जिसके लिए राष्ट्र गान का चयन हमने किया है।
—देशभक्ति का उन्मेष कोई मशीनी प्रक्रिया नहीं,और न ही किसी विशेष शारीरिक भंगिमा का प्राकट्य ही।यह आन्तरिक भावना है जिसे जाग्रत करने के लिए विभिन्न माध्यमों का उपयोग करना आवश्यक है।लाठी के जोर पर भय उत्पन्न होता है देशभक्ति नहीं।
— स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कुछ दशकों पूर्व एक बार ऐसा ही प्रयोग किया गया था।सिनेमाहॉल से निकलते वक्त राष्ट्रगान।यह वहसमय था जब लोगोंके मन से स्वतंत्रता संघर्ष पूरी तरह विस्मृत नहीं हुआ था।दो पीढ़ियाँ उन गाथाओं ,कथाओं को सुनते सुनाते आगे बढ़ रही थीं।सँग्राम की स्थितियाँ,कुरबानियाँ मन को देशप्रेम से आन्दोलित करती थीं।साहित्य और इतिहास में उसके चर्चे थे। परिणामतः सम्मान की भावना स्वतः उत्पन्न होती थी ।पर धीरे धीरे पाश्चात्य सभ्यता, उपभोगवादी संस्कृति और व्यक्तिवादिता की स्वार्थी सोचों नेइस ओर विशेष ध्यान देना आवश्यक नहीं समझा।परिणामतःराष्ट्रगान की अवमानना से अच्छा उसे अनुकूल और अनिवार्य स्थितियों में गाना ही समझा गया।
—इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि नयी पीढ़ी मे राष्ट्र के प्रति भक्ति उत्पन्न करने में राय़्ट्रगान के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने की आदत डालनी होगी।शिशुओं के विद्यालय से लेकर बड़ी-बड़ी शैक्षणिक संस्थाओं मे इसकी अनिवार्यता होनी चाहिए।वहाँ इसकी अवमानना न हो –इसका ध्यान रखना आवश्यक है।
— राष्ट्रगान देश के प्रति भक्ति का सशक्त आंतरिक निवेदन है।यह वह अभिनंदन मंत्र हैजिसके आगे पीछे सात्विक देशप्रेम का जज़्बा अनिवार्य रूप से जुड़ा हो।इसकी अवमानना कदापि न हो,नियम ऐसे ही बनने चाहिए।—-
बस—
आशा सहाय।

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