चंद लहरें
- 180 Posts
- 343 Comments
संस्कारों के बीज थे बोये
अंकुर फूटे
ज्ञान पौध के,
विश्व विजयिनी आर्य संस्कृति,
ओरों से क्या लेना देना।
मदहोशी में बन्द नयन थे
अपनी संस्कृति
है उदार अति
नए विचारों को आने दो
मन के द्वार खुले रहने दो
होने दो जो कुछ है होना।
आई आँधी
द्वार खुले थे
घना अँधेरा
टिड्डे छाए
काले काले घन बनकर
फैल गये
आवृत कर डाला।
ज्ञान-पौध थे
विकल हो गये
बदली वाणी
भूषा बदली
नये नये विचारों ने अब
मन पर शासन करना ठाना।
छूट गए गीता रामायण
नारद की अब छूटी वीणा
सस्कृति की खेती को तो अब
चाट गई टिड्डों की सेना–।
आशा सहाय—
Read Comments