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सूखेपत्ते झर रहे तरू के
नव पत्रों के मर्मर मे फिर
गूँजी मधुरिम सी ध्वनि
अहा!नव-वर्ष आ गया।
–
खिल गए पुष्प नीले पीले
अब हरित गात में मद भरकर
पौधों की नव खुशबू भीनी
भर नव उमँग, उल्लास नया
गुन गुन भँवरों का राग अमंद
अब अहो अहा,!
नव वर्ष आ गया!
—
नव वर्ष,बहुत कल्पना मधुर
भयमुक्त अगर स्वागत करते
बीती पीड़ाओं के प्रभाव
तन मन को दग्ध नहीं करते
है नया वर्ष पर राग वही
रोटी सब्जी और दाल वही
हैं वही कृषक है वही समाज
उत्पीड़न काश! कि कम होता
निज राष्ट्र पटल के साजों पर
नूतन स्वर भी गुंजित होता।
—
वीणा ए –विश्व केतारों पर
कुछ नयी रागिनी भी सजती
तब खुले हृदय और मुक्त स्वर
हम बाँह बढ़ा स्वागत करते
नव वर्ष आ गया ,अहो,अहो,!
नव वर्ष आ गया!
—
आशा है कि मिटती ही नहीं,
होगा, कुछ अच्छा ही होगा,
सतरंगी आशाएँ मन की,
इस बरस अवश्य पूरी होंगी
मन में यह भाव भरा जैसे,
मन उमग उठाफिर त्वरित अहो,
नव वर्ष आ गया है अब तो!
नव वर्ष आ गया है यह लो!!
आशा सहाय
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