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भोर-कार्तिक का

चंद लहरें
चंद लहरें
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छाँव तारों से भरी
उजास मेघों की
बैठकी-पीपल के तले
भोर की शान्त मन्द वायु
कथाएँ नारायण की
गले मेंबँधी पड़ीअधगीली साड़ी
छोरों का ऊँगलियों से स्पर्श
जुड़े हाथों का प्रणमन
कार्तिक की पवित्र सुगन्ध से भरी धूम
स्निग्ध होता मानस
कृतज्ञता-
प्रकृति के अनछुए रहस्यों के प्रति
आशाएँ-
ज्ञात,अज्ञात जीवन की
सुलभ सरल सरसता से जुड़ी
ताल तलैया गंगा नदिया-
लौटते भींगे थके पैर
देहरी पर,
विश्राम की उसाँस।

—आशा सहाय –३० १० 2015

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