Menu
blogid : 21361 postid : 882920

मैं माँ हूँ यह अधिकार न छीन

चंद लहरें
चंद लहरें
  • 180 Posts
  • 343 Comments

हूँ मैं अशक्त माना जग मे

पर शक्तमति अभ्यंतर में।
दुर्बलता मेरी काम्य नहीं,
यह काल प्रदत्त जीवन –विष है
है शेष सत्व इस जीवन में,
अपने बच्चों की जननी हूँ ।

अधिकार बोध इसी से है,,
जीवनका मोह इसी से है,
है यही शेष अस्तित्वभार
इस भावजगत में रमकर ही
जी ले सकती हूँ इस जग में
जीनेका यह अधिकार न छीन,
मैं माँ हूँ यह अधिकार न छीन ।

मेरीशक्ति की गूँञ सुनेगा.
यह जग समग्र कालांतर में,
पर घायल हो जाती प्रतिपल
अपने शिशुओं के घावों से।
है पूर्ण समर्पित जीव मेरा
मेरे इन भावों पर ऐ जग ,
अभिमान तो कर।
आघात न कर।
तेरे लिए हूँ ,यह भाव न छीन।
मैं माँ हूँ ,यह अधिकार न छीन
में हाध बाँध चुपचाप खड़ी,
दृष्टि भविष्य में झाँक रही,
अपने अतीत के अनुभव से,
मैं उनको प्रतिपल जाँच रही,।
मेरी सन्तानों के सपने अक्षुण्ण रहें,
इस आशा से ऊर्जस्वित मन,
विघ्नों केभय से अन-आगत,
किंचित मैं थर-थर काँप रही,
में चेतन हूँ, अवचेतन में
तेरे स्वप्नों को जाँच रही।
यह सत्य चिरंतन, जान ले तू।

मेरा है यह अधिकार-बोध,
छोटे-छोटे व्याघातों से गर बिखर गया,
बस शून्य शेष रह जाएगा,
मेरा बल यह ,मेरे बल का एहसास न छीन ।
मैं माँ हूँ यह अधिकार न छीन।

जड़ जंगम और यह जीव-जगत,
माँ की शक्ति ही तिरती है
यह शक्ति सदा संपूज्य मनुज,
अनुकूल बने तेरे हित यह,।
प्रतिकूल भंगिमा इसकी ही
जग प्रयत्नों को ढूह करे,
उसकी ममता पहचान ले तू,,
उसकी महीयसी शक्ति का,,
अपने बल से अभिमान न छीन।
मैं माँ हूँ, यह अधिकार न छीन….।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh