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हमारे भारत मे अगर गर्व करने का कोई कारण है और सम्पूर्ण विश्व जिसका लोहा मानता है तो वह है भारतीय शिक्षा की वह मूल भावना जो शिक्षित व्यक्तियों को पूर्वाग्रहों से मुक्त करती हैऔर विचारशील,चिंतनशील उदार मानसिकता का निर्माण करती है।पर इन्हीं प्रसिद्ध शिक्षण संस्थानों में जहाँ पूरे देश के विद्यार्थी पढ़ने को लालायित हो राजधानी दिल्ली आते हैं,विद्यार्थियों की मानसिकता दिनानुदिन जिस प्रकार राजनीतिक पूर्वाग्रहों से ग्रस्त और खुली विचार धाराओं के विरूद्ध होती जा रही है वह द्रष्टव्य हैऔर तत्काल तो देश के विश्वविद्यालयों के शैक्षिक वातावरण और शैक्षिक व्यवस्था के प्रति प्रश्नचिह्न खड़ी कर देती है।
अभी पिछले ही वर्ष जे .एन. यू में एक ऐसा कांड हुआ जिसने पूरे देश के बौद्धिक वर्ग को झकझोर दिया था। सामान्य देशभक्ति का दम भरनेवाली जनता के असंयमित आक्रोश का तो कहना ही क्या।निश्चित रूप से देश को अस्थिर करने की यह एक साजिश थी जिसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ा ही।नये सिरे से देश को देशभक्ति के कई पाठ पढ़ाए गए और कई उपाय भी सुझाए गए।पर इन अवांछनीय तत्वों ने कुछ लोगों के प्रति अविश्वास पैदा किया और जे. एन. यू. की व्यवस्था भी अविश्वसनीयता के घेरे में आ गयी।
रामजस कॉलेज के अन्दर और बाहर ,21 फरवरी को फूटे आक्रोश के मूल में पिछली घटना के देशद्रोह केआरोप में फरवरी 2016 में बन्दी बनाए वे विद्यार्थी ही थे।उमर खालिद का अपराध सिद्ध न होने की स्थिति में छोड़ दिया गया था।देशद्रोह अपराध है।देशद्रोह के विरुद्ध सामान्य लोगों का जाग्रत होना भी उपयुक्त है पर कथित और अप्रमाणित देशद्रोहियों के विरुद्ध इस मानसिकता का विद्यार्थियों द्वारा इस प्रकार का प्रदर्शन कदापि उचित नहीं हो सकता।वह अनामंत्रित नहीं था ,विद्यालय के एक विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय सेमिनार में भाग लेने एवं अपनी प्रस्तुति प्रस्तुत करने आया था।उसे अनुमति मिल चुकी थी।ऐसी स्थिति में चप्पलें फेंकना ,थूक फेंकना और पत्थर फेंकने जैसी हरकतें कर दंगे कादृश्य उपस्थित कर देना,ऐसी ओछी हरकतें हैं जो विद्यार्थी वर्ग की मानसिकता के कदापि उपयुक्त नहीं।किन्तु ए बी वी पी के सदस्य विद्यार्थियों ने रामजस कॉलेज के कैम्पस मेंजेएन यू के विद्यार्थियों का सेमिनारमें भाग न हो पाए,अतः ऐसा ही किया। कालेज प्रशासन ने भी निमंत्रण को वापसकर लिया। यह स्थिति भी कम विस्फोटक सिद्ध नहीं हुई होगी।किन्तु अगर यह कदम विद्यार्थियों के आक्रोश एवम् पुलिस की आशंकाओं के मद्देनजर लिया गया तो एक सही कदम था।पर उसके पूर्व और बाद में भी दिल्ली विश्व विद्यालय के छात्रों कानिकृष्ट आचरण सही तो नहीं ही कहा जा सकता।इसी प्रवृति ने एक विद्यार्थी कन्हैया को नेता बना दिया। इस तरह के विवादों का लाभ राजनीति लेती ही है।अखिल भारतीय विद्यार्थियों का यह कृत्य इसलिए भी अपराध कीश्रेणी में आसकता हैक्योंकि जिन छात्रों को चोटें पहुँचायी गयी उनकी छवि देशद्रोही की होगी यह तो कहा नहीं जा सकता।कुछेक को हॉस्पिटल की राह भी देखनी पड़ी।यह अमानवीय कृत्य है।विद्यार्थियों का हर कृत्य अनुशासन के दायरे में होना चाहिए ।वे उनका विरोध सेमिनार के दौरान, शान्तिपूर्वक करते,कल्चर आफ प्रोटेस्ट के अन्तर्गत उमर खा लिद की प्रस्तुति– द वार इन आदिवासी एरिया – केदौरान उनकी स्थापनाओं का तर्कपूर्ण विरोध अथवा खंडन करते तो यह शायद सही कदम होता।
विचारधारा का विरोध विचारधारा से होना चाहिए न कि ऐसे अशोभन कृत्यों से।
पुलिस की भूमिका के विषय में संदेह करना बेमानी है।आज की स्थितियों में यह कहना अदूरदर्शिता ही है क्योंकि उनका विशेष बलप्रयोग दोनों ही गुटों कोकदापि सहन नहीं होता।
आज के विद्यार्थी इतना अनुशासनहीन हो गए हैं कि वे विचार प्रदर्शन की स्वतंत्रता जैसे मूलभूत अधिकार को भी मान्यता नहीं देना चाहते। विचारों को किसी भी हद तक सुनना पहला कर्तव्य होना चाहिए तब विरोध करने की स्थिति उत्पन्न हो ही सकती है पर यहाँ तो विचार प्रस्तुत करनेवाले से ही विरोध को अंजाम देना था।देशभक्ति अच्छी चीज है पर उसकी आड़ में गुंडातत्वों का हावी हो जाना उचित नहीं।अवसर का लाभ उठाकर अराजकता पैदा करने के सदृश है।कैम्पस के भीतर और बाहर के इस टकराव में कितने विद्यार्थी थे और कितने अराजक तत्व इसका विश्लेषण अभी शेष है।
जे. एन. यू. राष्ट्र विरोधी तत्वों में लिप्त विद्यार्थियों के लिएअथवा क्रांतिकारी विचारधारा वाली छवि के रूप में प्रतिस्थापित हो चुका है।कोई शक नहीं कि वहाँ के विद्यार्थियों मे स्वच्छन्द प्रतिभा है,वे अच्छे वक्ता एवम् विश्लेषक हैं।पर स्वतंत्र विचारों को देशहित से जोड़कर रखने में शायद उसने अपनी विश्वसनीयता खो दी है।
वर्तमान स्थिति में यह विचारों की उन्मुक्तता के विरोध में बंदिशों की एक साजिश भी हो सकती है।एक तीसरी स्थिति भी तब बनती है जब ए. बी. वी. पी. और ए.आई.एस.ए.दोनों अपनी निर्दोषिता की वकालत करते हुए एक दूसरे पर पत्थर फेंकने का आरोप लगाते हैं।कॉलेज के छात्र तो यह भी कहते हैं कि उन्होंने सेमिनार के आयोजन का समर्थन ही किया है ,किसी का भी विरोध नहीं किया।–यह इस बात की ओर सहज ही ईंगित करता हुआ प्रतीत होता है किकिसी पार्टी विशेष को अराजकता फैलाने का आरोपी सिद्ध करने के लिए ही ऐसे अवसर का लाभ उठाया गयाहोगा।इन शंकाओं का निवारण तो पूर्ण जाँच के द्वारा ही संभव है।
सामान्य स्थितियों मेंइस तरह की घटनाएँ विश्विद्यालयों के शैक्षिक माहौल की उत्कृष्टता के मार्ग की बाधाए ही मानी जाएँगी।
आशा सहाय –23 -2– 2017 -।
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