Menu
blogid : 21361 postid : 1195384

ये सकारात्मक प्रयत्न

चंद लहरें
चंद लहरें
  • 180 Posts
  • 343 Comments

।अखबार के कुछ खबरों पर मेरी दृष्टि पड़ते ही दृष्टि और सोच की सकारात्मकतासे सम्बद्ध विचार फिर से गहन अंतर में उठने लगे।सकारात्मक प्रयासों की सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।इस देश में,आज के मध्यम वर्ग के युवा और प्रौढ़ नये विचारों को लेकर कुछ ज्यादा ही उत्तेजित एवम् आन्दोलित होते हैं।उत्तेजित होने के लिए उनमें ऊर्जा की कमी नहीं होती और न ही प्रौढ़ों के पास चिन्तन की।कमी होती है तो बस प्रयासों की।आज तक सम्पूर्ण विश्व मेंहुए विकास कार्यों के पीछे इन्ही सकारात्मक प्रयासों की भूमिका रहीहै।
आज सम्पूर्ण विश्व नारी समस्याओं के प्रति जागरुक है।नारी कीमहत्ता को स्थापित करने के लिए,उसके हर रूप को संरक्षित एवम् विकसित करने के ठोस प्रयास किए जा रहे हैं।जन्म से लेकर पूर्ण विकसित अवस्था तक उनके मान सम्मान के रक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं।उसके जन्म का सम्मान ,उसके किशोरावस्था का सही संतुलित विकास,युवावस्था का सम्मान ,पुरुष की समतुल्यता का आग्रह और उसके लिए किये गए ठोस उपाय।विकसित देशों में तो कदम कदम पर उसके सम्मान की रक्षा के उपाय किए जारहे हैं।समाज की पारंपरिक सोच के कारण तिरस्कृत और बहिष्कृत नारी की हर संभव सहायता का प्रयत्न किया जा रहा है।मैंने उन अकेली माताओं को देखा है जो पतियों द्वारा परित्यक्त हैं अथवाअन्य किसी भी कारण से कुछ बच्चों के पालन की सम्पूर्णजिम्मेवारी जिनके कन्धों पर है,वे परिस्थितिवश पूरी मजबूती सेइस कर्तव्य का निर्वहन कर सकें ,इस हेतु सरकार इनके सम्मान की रक्षा के लिए प्रयत्नशील रहती है।साथ ही बौद्धिक समाज भी कदम कदम पर इनकी सहायता करता है।यह एक अच्छी बात है।
आज नारियाँ पुरुषों की जीवनशैली में रंचमात्र हस्तक्षेप करने पर पिट जाया करती हैं।नारियों पर इस तरह के अत्याचार आज एक वैश्विक समस्या है।विशेषकर भारत में यह समस्या विकट है।जबकि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,रमन्ति तत्र देवता कहकर इन्हें सम्मानित करने की पौराणिक वकालत की गयी है,पुरुष दम्भ,अहं और शारीरिक शक्ति उन्हें हमेशा प्रताड़ित और अपमानित करती आई है।शिक्षा धीरे धीरे अब एक वातावरण बनाने की कोशिश कर रही है कि हम उनके सम्मान और समस्याओं के प्रति जागरूक हों।यह सम्मान और समृद्धि उन्हें दानस्वरूप देना समस्या का कदापि समाधान नहीं ।इसका समाधान तो उस विचारधारा में परिवर्तन लाने से ही हो सकता है,जिसके तहत उनकी दुर्दशा होती है,शोषण होता है।और इस परिवर्तन को लाने के लिए कुछ सकारात्मक संकल्पों की आवश्यकता है।सामाजिक परिवर्तन का आह्वान करना है।समाज की सम्पूर्ण व्यवस्था की भावनात्मक समीक्षा करने को लोगों को विवश करना है।आंतरिक परिवर्तन के लिये क्रांतिकारी संकल्पों की आवश्यकता है।समाज में लोगों को , बच्चों को,युवाओं को,प्रौढ़ों और वृद्धों कोउनके अपने सम्मानित स्थान के प्रति जागरुक करना है।अपने देश के पिछड़े राज्यों मेंमहिलाओं केप्रति सम्पोषित नज़रियाको बदलनेकी नितांत आवश्यकता है।आज अल्प,अर्धअथवा पूर्ण शिक्षित महिलाएँभी इस रवैये की जाने अनजाने शिकार हैं, समाज की परम्परागत सोच इसके लिये सर्वथा जिम्मेवार है जो उन्हें हर स्थिति में पुरुषों से कमकर आँकता है।
एक ऐसा ही प्रयास जिसमें इस नजरिये को बदलने के लिए कोई व्यक्ति अपनी आजीविका का भी परित्याग कर मात्र साईकिल पर भारत यात्रा पर घर घर की सोच बदलने निकल पड़े,एक सकारात्मक प्रयास है।घर घर की सोच को बदलना इतना आसान नहीं।निश्चय ही यह कल्पना करना कठिन है कि इतने अल्प अवधि यथा दो ,दस ,या बीस सालों में इस नजरिये में कोई क्रान्तिकारी परिवर्तन ला सकता है।पर यह प्रयास तो है।बूँद बूँद से सागर भरने जैसा प्रयास।ऐसे सकारात्मक प्रयासों के साथ अगर अन्य लोग भी जुड़ते हैं, घर घर ,व्यक्ति व्यक्ति , नुक्कड़ सभाओं ,कठपुतलियों के नाट्यआदि के द्वारा विचार धाराएँ बदलने की कोशिश करते हैं,तो अवश्य ही घर घर का दृष्टिकोण बदलेगा,और सामाजिक हिंसा की शिकार होने से स्त्रियाँ बच सकेंगी।उनसे सम्बन्धित आपराधिक घटनाओं में कमी आ सकेगी।समाचार पत्र के अनुसार बिहार के एक राकेश सिंह ने ऐसा प्रयास आरम्भ किया है ।अगर उद्येश्य पवित्र हो तो अवश्य अन्यों को भी प्रेरणा मिली होगी।उनका दावा है हर जगह उन्हें अच्छी प्रतिक्रिया मिली है।यह तो निजी स्तर पर किया गया प्रयत्न है। स्वयंसेवी संस्थाओं एवम सरकारी स्तरपर भी ऐसे प्रयास अपेक्षित हैं।
समाचारपत्र के एक अन्य खबर ने भी मन को आश्वस्त किया कि लोग अब शिक्षा के वास्तविक उद्येश्य के प्रति भी जागरुक हो रहे हैं।बिहार के टॉपर घोटाले ने तो वहाँ के ही क्यों ,सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था के बेईमानी जनित कमजोर पक्ष को उजागर कर दियाहै। विश्व विद्यालय के भीतर पलनेवाले ऐसे घिनौने कांडों के पीछे समाज की वह मानसिकता छिपी है जो शिक्षा को मात्र नौकरी पाने का साधन समझ बैठी है। और आरम्भ से ही इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अनैतिकता और चरित्रहीनता का आश्रय लेने में नहीं हिचकती। शिक्षा मूलतः ज्ञान प्राप्ति का साधन है और वही भविष्य की सफलता के द्वार की कुंजी भी ,यह विस्मृत होता जारहा है।
नकल करना, परीक्षार्थियों के बदले किसी और का परीक्षा भवन में बैठ परीक्षा दे देने मे,कॉपी बदलवा देने में शिक्षक ,छात्रों प्रशासन आदि की किस प्रकार भागीदारी होतीहै ,यह एक स्वतंत्र चिंतन का विषय है, वर्तमान सन्दर्भ मे हम उन जागरुकता भरे प्रयत्नों की बात करना चाहते हैं जोइससे संघर्ष करना चाहते हैं।इन सारी अनियमितताऔं केपीछे बस एक ही कारण निहित है ,,वह है चरित्रहीनता।भारतीय समाज के अन्दर गहराई सेप्रविष्ट इस पतनशील प्रकृति नेमानव को खोखला कर दिया है।चरित्र नहीं तो मनुष्य पूर्णतःअविश्वसनीय है।एक विद्यार्थी का चरित्रहीन हो जाना आरम्भ से ही शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रश्नचिह्न खड़े कर देता है।इस चरित्रहीनता का मूल आरम्भिक शिक्षा एवं घर परिवार के वातावरण में खोजा जा सकता है।सारी अनैतिकता की जड़ भी वहीं है।यह भावनागत विकृति हैजिसे नष्ट करने के लिए मात्र दंडात्मक व्यवस्था ही काफी नहींबल्कि चरित्र सुधार के प्रयत्नों पर बल देना आवश्यक है।समाचार ने एक स्टूडेंट आक्सीजन मूवमेंट काउल्लेख किया है जो हजारों विद्यार्थियों द्वारा संचालित हो रहा है। इस बैनर तले जुड़कर वेशिक्षा, संस्कार,और चरित्र निर्माण के लिए रचनात्मक कार्यक्रम बनाकर सुदूर गाँवोंमे जाते हैं,उनकी कलात्मकता को प्रेरितएवं प्रोत्साहित करते हैं साथ ही उन्हें शिक्षा के लिए प्रेरित करतेहैं उनकेप्रति सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक दिन का सामूहिक उपवास भी रखते हैं।बच्चों की यह भागीदारी समाज और राष्ट्र के प्रतिउनकी ईमानदार संवेदनशीलता प्रदर्शित करती है।यह कार्यक्रम एक लघु प्रयत्न हैपर समस्याके समाधान का एक सार्थक सकारात्मक प्रयास।
आशासहाय।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh