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राम से—

चंद लहरें
चंद लहरें
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था कभी तुम्हारा प्रिय भारत, तेरे ही भावों में रमा

हेभगवन तूने इसे भला, आज क्यों विस्मृत किया!

थे  नये संदेश पाते, तेरी लीला मे मन रमा

मंद हो रहा  आलोक कैसे,  आज फैली क्यों अमा!

भाव थे अध्यात्म के औ, सत्व प्रेरित आस्था के

आज रज ने और तम ने,मन पे शासन क्यूँ किया

तीर्थों में क्यों हो बैठे मन्दिरों में छिपे हुए

आज क्यूँ नहीं दौड़ते नर की असहाय पुकार पर!

मन्दिर और मस्जिद में उलझ रहे हैं भक्त सब

क्या अयोध्या काशी मथुरा  तेरे वश में अब नहीं!

है वहीकाशी परन्तु छटा ज्ञान कीकहाँ गयी

है वही मथुरा पर मोहन की वंशी नहीं कहीं

और तेरी ही अयुध्या राम राम तो जप रही

राम के धनुर्वाण की शक्ति दीखतीहै अब नहीं

हैं वही सब धाम किन्तु आस्था ही खो रही

धर्म धर्म के नाम परवह नित्य अश्रु बो रही

समय के तो दास नहीं तुम पर क्या समय आया नही

धराके अन्तस से तेरे धाम मुक्ति की घड़ी?

क्या  कोई  गहन पीड़ा मार्ग की बाधा बनी

कर रहा सन्तप्त सीता के विरह का भाव ही?

शून्य होगयी थीअयुध्या तेरी विरह की आँच में

आज भीवह प्रिय नहीं  क्या बिन प्रिया के साथ में?

हाँ केवल नहीं राम, हमें सिया भी चाहिए

सियाराम मय ही अयुध्या आज हमको चाहिए

राम प्रिय सीता  बिना तेरा कहीं प्रभुत्व नहीं

भाव में जन जन के बसी तेरी युगल मूर्ति ही

मुक्त करोनिज जन्मभूमि को युगों के शाप से

सात्विक जीवन की महिमा जोड़ दो मन प्राण से

राम हो तुम  श्याम हो तुम है स्वरूप पालक तेरा

मात्र लला बन मत रहो तुम पालते सम्पूर्ण धरा

शत्रु हन्ता!  मन -शत्रु हनन कर मानवता की सीख दो

विश्व तेरी ओर देखता –शान्ति का संदेश दो

सरयू तट क्या प्रिय नहीं अब प्रिया स्मृति की पीर से!

क्यों कहो हो रुष्ट इससे युगों युगों के नीर से!

है तुम्हारे ही तो वश में तुम तुम्हारे गृह रहो

है  कहीं कोई क्या बाधा  तुम अगर इच्छा करो!

भूल रहा कर्तव्य और आदर्श तेरा देश आज

कर सको तो करो स्थापित पुनः निज रामराज्य।

 

आशा सहाय 2 – 4 – 2018

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