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विकास में ईमानदारी और नैतिकता की आवश्यकता—?

चंद लहरें
चंद लहरें
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दूरदर्शन के जी न्यूज चैनल पर एक कार्यक्रम में डॉ सुभाष चन्द्रा से किये गये इस प्रश्न को सुन मन चौंक गया। यह कैसा प्रश्न?और आज के युवा वर्ग के मन में उत्पन्न यह कैसा संशय!उन्होंने क्या उत्तर दिया,इससे मुझे लेश प्रयोजन नहीं पर मन ने जो उत्तर दिया वह यह कि अगर आगे बढ़ने के लिए ईमानदारी और नैतिकता की आवश्यकता नहीं है,ये मानवीय गुण मानव विकास के सोपान नहीं बन सकते,अर्थात् इनके विपरीत गुण यानि बेईमानी और अनैतिकता उसकी सीढ़ी बन सकती है,तो सामाजिक और राजनीतिक न्याय की हम खोज क्यों करते हैं?किसी अपराधी के अपराथ को न्याय के तराजू पर तौलने की क्या आवश्यकता है? क्या न्याय प्रत्येक व्यक्ति से ईमानदारी और नैतिकता कीअपेक्षा नहीं करता?तब,बड़ी-बड़ी कंपनियाँ,संस्थाएँ,पार्टियाँ जन शिकायतों के कारण न्याय के कठघरे में पहुँच जाती हैं तो हम उनसे अचानक ईमानदारी और नैतिकता की अपेक्षा करने लगते है-ऐसा क्यों? समाज का यह सारा असंतोष,सारा वर्गभेद मानव में इन्हीं दो मूल्यों के अवमूल्यन का परिणाम है।यह समाज जो निर्बलों को दबाता है,जिसकी चक्की तले मध्यवर्ग और निम्नवर्ग के लोग पिसते रहते हैं,वह इन्ही अवमूल्यित मूल्यों के सहारे चलता है। अगर समाज में शान्ति और अराजकहीनता के माहौल का सृजन करना है तो अपने विकास के लिए उपरोक्त दोनों मानवीय गुणों को अपने जीवन में उतारना ही होगा। हो सकता है,इससे औद्योगिक विकास के दर में थोड़ी कमी आयेपर इसका दूरगामी परिणाम स्थायित्व भी अवश्य ही होगा।अनिश्चयता का माहौल दूर होगा और निश्चय ही बहुत सारी सामाजिक समस्याओं का भी समाधान संभव हो सकेगा।

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