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सर्दियाँ मत जाना अभी

चंद लहरें
चंद लहरें
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सर्दियाँ–
नही बीतीं अभी,
पर अचानक जो कल
उठ रहे बगूले
धूल के —
डराती हैं,
सर्द हवाएँ –
रूठो नहीं अभी
अभी तो-
एहसास बाकी है
संकुचन का,
सर्द गातों के।

अभी तो एहसास शेष है,
जलते हुए अलावों का
ग्राम झोपड़ियों के
कोने में सुलगती
अँगीठियों के ताप का,।
अधूरी न रह जाए कहीं
अनुभूतियाँ
बदलते मौसमों के
अनूठे सौन्दर्य का।
रँग विरँगे
परिधानों,
स्वेटरों ,शालों
नरम नरम कम्बलों रजाईयों का।

अनूठा होता है
एहसास गर्वित
कान तक ढँके मफलरों,
ऊनी टोपियों,हाथों से फँसे
गर्म कोटों का,
रह न जाएँ वे टँगे
घर की खूँटियों पर
या सजी हुई आल्मारियों में।

एहसास हर मौसम का,
बदलते मिजाजों
अँदाजों का
पिटारों में बन्द,
अनुभवों के,
स्मरण कराते हैं
प्रकृति की अनूठी सौगात—।
तुम मत छीनो उन्हें।

महलों में,
झुग्गी झोपड़ियों में
मैदानों, पहाड़ों में,
सघन बाजारों में,
बर्फके फाहों से
मत भूलो दस्तक देना।

मत जाओ अभी,

हतप्रभ न रह जाएँ कहीं,
भोले भाले ,
व्यापारी,राजपुरुष,
सरकारी तंत्र,
औ,व्यवस्थाएं सारी,
मत करो निराश उन्हें।

सर्दियाँ!
,मत जाओ अभी
सर्द हवाओं के
काटते स्पर्श का
शेष हैअभी
आनन्द भी तो—
ले लेने दो,

अभी तो शेष है
गर्म मीठी धूप में,
सिंकना सिंकाना,
ताप में दुपहरिया के
मीठे बोल
सुनना सुनाना,
बतियाना ,
हवा के सी सी से।

उड़ने लगे हैं धूल के बगूले,
लग रहा भय
ठग तो नहीं रहे तुम?
सर्दियाँ—
मत जाना अभी।

अभी बाकी है जिन्दगी,
बर्फ की शिलाओं मेंकैद
थरथराती कँपाती
,फरियाद करती
अकुलाती
अभी तो शेष हैं
तम्हारी चुनौतियाँ
हम सहें न सहें
लड़ने का जज्बा
मन का मन में ही न रहे,
सर्दियाँ
जाना मत अभी।—–आशा सहाय

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