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हम सोचते थे

चंद लहरें
चंद लहरें
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हम सोचते थे
है छुपा
पौरुष घना
तो है युवाओं मे
इस देश के ही,
क्यों फँस गया
पौरुष भला
उस जाल में
छल औ प्रपंच के,

हम सोचते थे
सत्य है गर शेष
तो वह है
युवाओं में अभी,
क्यों हो गया आवृत भला
आवरण में
असत्य के निष्ठुर,
निर्मित हुआ जो
मात्र सिद्धि स्वार्थ के हेतु
हर काल के
काले पटल पर?

हम सोचते थे
है शेष अब भी
कद्र भावनाओं की अगर
ईमानदार,
है वह युवाओं मे अभी ,
पर टूटता है भ्रम
पलायित वह हुआ
क्षण में तुरत,
हो जरा संघर्ष गर
जटिलता देख जीवन की,
बदलता बार बार
व्यक्तित्व जीवन का

स्वार्थ क्या इतना प्रबल
कि रोज हम बदलें तुलाएँ
नित्य ही निज भावना का
मोल खुद हम
कर न पाएँ

कौन है वह आज
जो अब
हाथ में ले सूत्र इनका
कौन है वह बुद्ध
जो बुद्धत्व दे
कौन है वह राम
जो रामत्व दे
कौन है वह कृष्ण
पाठ नीति का पढ़ाये
कौन तुलसी और रहीम
कौन है फक्कड़ कबीर
सत्य से जो भय न खाये
कौन वह चाणक्य
जीवन दिशा दे
मूल्य को छोड़े बिना?
सोचते थे हम।

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