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चंद लहरें
चंद लहरें
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पुलवामा मे सी आर पीएफ पर हमला और चालीस जवानों का शहीद हो जाना पूरे देश को झकझोर देने के लिए काफी से भी बहुत अधिक है।  जम्मू कश्मीर के सुरक्षाबलऔर सेना के जवान आतंकियों से लड़ते-लडते नित्य ही शहीद होते रहे हैं पर यह घटना हमारे कश्मीर सुरक्षा प्रयत्नों परलगा एक अत्यन्त बदनुमा धब्बा सा प्रतीत होता है।देश जग गया है , सरकार चौंक गयी है, और जैसा कि सदा ऐसे अवसरों पर होता है आतंक विरोधी कार्वाईयों मे सारे दल सरकार एवं सेना का समर्थन कर रहे हैं ,अभी उनके पास कोई अन्य विकल्प  भी नहीं। जन आक्रोश चरम पर है । अभी विरोध की बातें जनता नहीं सहन कर सकती। व्यवस्था की खामियाँ निकालना भी जनता अभी सह नहीं सकती। चालीस जवान। उनके परिवार । कल्पना करें तो एक पूरा छोटा गाँव । उजड़ गया। बेसहारा हो गया। कारण चाहे जो हो ,उनके क्रंदन का पूरा हिसाब देश करना चाह रहा है।मन में बस एक ही भाव है–बदला। यानि सबक सिखाओ उन्हें जिन्होंने इन आतंकियों को पाल पोस कर रखा है।आतंकी शायद बदला ही ले रहे थे।यह मूलतः धर्मोन्माद का युद्ध दो राष्ट्र के युद्ध में न परिवर्तित हो जाय ,भय इसी का है।

सरकार के द्वारा कुछ कारवाइयाँ त्वरित गति से होने लगी है। लक्ष्य पाकिस्तान ही है।मोस्ट फेवरिट नेशन का दर्जा छीन लिया गया, आयात शुल्क बढ़ा दिया गया।राजनीतिक आर्थिक मोर्चे पर सबक सिखाने की मंशा है। पर भारतीय सामान्य  जनता बस इतने से संतुष्ट होना नहीं चाहती।उसे अपनी सामरिक शक्ति का परिचय देकर देश दंडित करे,  यह वह चाहती है। सेना को कारवाई करने की खुली छूट दे दी गयी है,।यह सब तो सही है ,परप्रश्न यह उठता है किइतने बड़े आतंकी हमले की योजना बनती रही और जम्मू कश्मीर प्रशासन ,अथवा केन्द्र को इसकी खबर नही हुई? ,यह एक आश्चर्य का विषय है।  आतंकी को ढूंढ़ कर मारने और स्वयं शहीद होने मे जुड़ी सेना को आतंक की इतनी बड़ी गतिविधि का पूर्वाभास न होना ही आश्चर्य का विषय है।अवश्य ही जम्मू कश्मीर की वर्तमान गतिविधियों से असन्तुष्टजन समूह या जननायकही अन्दर अन्दर इन आातंकी गतिविधियों को शह देता प्रतीत होता है अन्यथा सीआर पीएफ की भरी बस के जम्मू से श्रीनगर की ओर आने के कार्यक्रम की सम्पूर्ण जानकारी उन्हें कैसे मिलती।

सीमा पर खड़ा यह प्रदेश अभी भी भारत या पाकिस्तान के प्रति सम्पूर्ण निष्ठाके प्रति हृदय से निष्ठावान नही है।थोड़ी सी परेशानियों में ही इसका मन डाँवाडोल होने लगता है।.इतने प्रयासों के पश्चात कुछ सामान्य अवस्था में आये इसप्रदेश मेंअब वोट की राजनीति विशेष सक्रिय हो गयीहै। मुस्लिम बहुल जनता का वोट पाने के लिय वह कभी पाकिस्तान की शरण ले लेती है और कभी उसके समर्थकों की ।इस देश के प्रति नेताओं की सम्पूर्ण वफादारी यहीं खंडित दीखती है।. बाहर के हर प्रलोभन परइसका मन विचलित होता रहता है।.प्रलोभन चाहे पैसों का हो अथवा धर्म का ,यह फिसल जाया करता है। बेरोजगारी की स्थिति ने प्रस्तुत स्थिति को और विकट बना दिया है।  अन्दर अन्दर ही पल रहे आतंकियों  ने  जन सामान्य का जीवन दूभर कर दिया है।हर नेता अवसरवादी सा दीखता है।हर तथाकथित बुद्धिजीवियों की  सोच ऐसी वैश्विक है कि उससे स्वराष्ट्र भक्ति के लिए कोई स्थायी स्थान नहीं है।सीमा पर के प्रदेशों के लिए ये बुद्धिजीवी भी कम घातक नहीं जो मानवतावादी सिद्धांतो के नाम पर पृथकतावादी सिद्धांतों का पोषण करते हैं और अपने वास्तविक राष्ट्र विरोधी चेहरों को छिपा लेते हैं। अनजान स्रोतों सेआए पैसों से बड़ी बड़ी बिल्डिंगों में रहकर सामान्य जनता को दिग्भ्रमित करने को वे निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं।वोट की राजनीति ने उच्चपदस्थ नेताओं ,महबूबा मुफ्ती ,फारुख अब्दुल्ला जैसे व्यक्तित्वों को भी संशय के घेरे में डाल दिया है।अभी दिनांक 17-2-2018–के विजुउल मीडिया समाचारों के अनुसार जम्मू कश्मीर के पाँच अलगाववादयों की सुरक्षा सरकार ने वापस  ले ली है। बहुत दिनों के पश्चात यह एक सही कदम उठाया गया है। वर्तमान परिस्थितियों में इसके विरुद्ध विरोधी स्वर उठाने का साहस शायद कोई नहीं कर सकेगा।बदले की भावना के तहत हाफिज सईद के दो भतीजों की मृत्यु का बदला अगर इस तरह लिया जा सकता है तो चालीस जवानों को उड़ा देने के बदले कुछ भी अकरणीय नहीं हो सकता।

स्पष्ट ही हमारे अंदरूनी विद्रोहियों के द्वारा यह काँड आहूत है.।वे जो कुछ विश्वविद्यालयों में भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाते हैं,देश का झंडामार्च नहीं निकालने देना चाहते, आतंकियों केलिए शोक दिवस मनाते हैं, देशद्रोही की श्रेणी में ही तो हैं। ऐसे लोगों को अवश्य ही दंडित करना चाहिए।  वाक्स्वातंत्र्य के तहत कुछ भी बोलना विदेशों में विशेषकर निकटस्थ देशों में गलत संदेश ही तो देता है। हम अपनीवाणी परभी नियंत्रण खो चुके हैं।

पाकिस्तान ने बार बार अमेरिका और अन्य देशों की चेतावनी के बाद भी आतंकियों को संरक्षण देना बंद नहीं किया है।मसूद अजहर  को अन्तर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करने में चीन अभी भी बाधक बना खड़ा है। अतः चीन हमारे देश का सबसे बड़ा शत्रु है। इस प्रकार पाकिस्तान  को समर्थन देते रहना उसकी स्वार्थपूर्ण व्यापारिक नीति का हिस्सा है। इन सारी स्थितियों से संग्राम करना हमारी भविष्य की योजना होनी चाहिए।

उपरोक्त स्थितियाँ अन्दरुनी ही कही जाएँगी। वैसे अवश्य ही आतंक की ये लड़ाइयाँ विश्वव्यापी आतंक के हिस्से भी हैं।वाह्य आतंकी संगठन अब इस देश मेंयुद्ध फैलाने के अवसर ढूढ़ते से प्रतीत होते हैं।धर्म के नाम पर किए गए युद्ध देश को नेस्तनाबूद करने पर उतारू हैं।पर वर्तमान हमले कोउस परिप्रेक्ष्य मेंदेखने के अवसर अभी परिपक्व नहीं हैं।इसे भारतपाक सम्बन्धों के तहत देखकर ही सही कारवाई कर सकते हैं।इतने बड़े हमले के बाद देश  मे उठे आक्रोश और विद्रोह को दबाकर बातचीत का रास्ता अख्तियार करना,एक प्रकार से कायरता का परिचायक होगा। अतःकुछ अन्य ठोस कदम उठा इन संगठनों और पाकिस्तान को सबक सिखाने की तत्काल आवश्यकता है। कुछ दूरगामी फल देनेवाले प्रयत्नों पर तो सदैव कार्यरत रह कश्मीरियों मे देश के प्रति विश्वास और श्रद्धा पैदा करने  की कोशिश करनी ही होगी।

आशा सहाय–17-2-2018

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