चंद लहरें
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,वाकये
कड़वे भी होते बहुत
पर यादें
मीठी हो जाती हैं।
आँखों में उनींदी,
झाँकता जो विगत
कतरा जाता कड़वेपन से
उस छोर के,।
सहला जाता
मन के चोटों को
बस चुपके,चुपके
भर देता नीरव शान्ति
तथागत सी,
मोहमुक्त सी,
उलझन,सुलझी हुई सी।
मुँदती आँखों में
तैर जाती कल्पनाएँ,
सुखद एहसासों की,
घुल जाती ,
पीर यादों की,
मधुरायी आगाजों में
गुम जाते
कड़वे अंदेशे
सुख की आहटों में।
वाकये,
थे कड़वे ही
किन्तु,बुन दी उन्होंने
बेसुध बुनकरों सा,
नयी बुनावटें जीवन की
रँग दिया ,
नयी मिठासों के घोल में।
वाकये वाकई
कड़वे थे बहुत,
पर यादें
मीठी हो गयीं अब।
यादें,
मीठी हो गयीं अब
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