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क्या वाकई में मंत्रो में चमत्कारिक शक्ति होती है क्या मंत्रो से हम अपने अनिष्ट को बदल सकते है?
क्या मंत्र वाकई में इतनी उर्जा वान होते है की प्राचीन काल में ऋषि मुनि श्राप से लोगो को जैसा चाहे बना सकते थे क्या उनमे इतना तप था की वो कुछ भी कर सकते थे/ बारिश करा सकते थे अग्नि प्रजवलित कर सकते थे / आखिर मंत्रो में इतनी शक्ति आती कहा से है /इसको जानने ले लिए आवश्यक है इसकी गहरे को जानना /
पहला की मंत्रो को सैकड़ो और लाखो साल पहले ऋषियों के द्वारा ईश्वर उपासना के लिए तैयार किया गया / इन मंत्रो को इस प्रकार क्रम बद्ध किया गया जिससे की मंत्र जाप करने वाले के शारीर में एक उर्जा उत्पन्न होने लगती है /
दूसरा की मंत्र संस्कृत में होते है और संस्कृत को योग का व्यवाहरिक रूप भी कहते है संस्कृत हमारी या इस दुनिया की पहली पुस्तक की भाषा होने का भी जिक्र कई जगह मिलता है / संस्कृत एक ऐसी भाषा है जो बोलने मात्र से कई बीमारियों से आपको दूर रखती है संस्कृत एक योग की भाषा है संस्कृत से संस्कार आते है! संस्कृत से मस्तिष्क के कई बंद छिद्र खुल जाते है /
यानि सभी भाषाओ का उद्भव ही संस्कृत से हुआ है /
हम बात कर रहे थे की मंत्रो में शक्ति होती है की नहीं वो मंत्र जिन्हे हम बोलते है सभी संस्कृत से ही है और सभी का अपना महत्व है वो मंत्र एक प्रकार की योग क्रिया हमसे करवाते है जो की हमे मालूम ही नहीं पड़ता है की कब हमने योग कर लिया हम मंत्र जाप और पूजा पाठ करने से पहले कहते है की हमे तो योग करने का समय ही नहीं मिलता है / लेकिन बहूत कम लोग ये जानते है की कुछ श्लोक और मंत्र करने मात्र से से कई योग क्रिया हम अनजाने में कर लेते है जिससे की हमारा शरीर तो स्वस्थ रहता है साथ में सकारात्मक उर्जा में शरीर के अन्दर उत्पन्न होने लगती है साथ में कई ऐसे शरीर के भाग जो निष्क्रिय से होते है मंत्रो का उच्चारण करने से सक्रिय हो जाते है / कभी कभार अपने कहते सुना होगा की गलत मंत्र बोलने से गलत हो सकता है यानि उस मंत्र का उच्चारण करने से / उनका कहना सही है लेकिन वो इसका सटीक कारण नहीं बता पाते कारण है की हम मंत्र बोलते वक्त जिन उर्जाओ को उत्त्पन्न कर रहे होते है वो सकारत्मक उर्जा गलत उच्चारण करने से चली जाती है बस और न ही हमारी देवी रुष्ट होती है और न ही देवता /
क्या आप में से किसी से उस ईश्वर ने आ कर कहा की मैं आपकी पूजा से खुश नहीं हु शायद नहीं या मैं आपकी पूजा से खुश हु , नहीं लेकिन वो ढोंगी पंडित और बाबा हमे बताते है आपसे देवी या देवता रुष्ट हो गए है अब आपको ये पूजा करवानी पड़ेगी और वो ही हमे ये भी बताते है की देवी खुश हो गई , जो गलत है/ अगर हम नित्य पूजा पाठ ब्रह्म मुहूर्त यानि सुबह करते है सूर्य उदय से पहले तो हमारे जीवन में कभी समस्या आएँगी ही नहीं /
मंत्रो में ऊर्जा किस प्रकार उत्पन्न होती है इसको समझते है /
जब भी हम कोई मंत्र बोलते है एक विशेषप्रकार की ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती है जो उस प्रकार की उर्जा तरंगो को वातावरण में ढूंढ़ कर हमारे अन्दर उर्जा उत्पन्न करती है / जिसे उस पराशक्ति से समायोजित सा कर देता है जिससे ये श्रष्टि चल रही है ,ऐसा भी समझ सकते है / ये मंत्र एक अक्षर ॐ ओम भी हो सकता है और पूरा शब्द समूह ” ॐ नमः शिवाय ” भी /
वैज्ञानिक अनुसंधानों से भी ये सिद्ध हो चूका है मंत्रो की शक्ति प्रायः उनके नादो और उत्पन्न ध्वनि तरंगो में होती है मंत्रो का सम्बन्ध परामनोविज्ञान और ध्वनि तरंगो से है /हम सभी जानते है की मंत्रो की रचना ऋषि और मुनियों ने की है जो पराशक्तियो से युक्त थे उनके पास वो विद्या थी की वो जो कह दे वो सत्य ही होता था /उन्होने सभी मंत्रो में अक्षरों का इस प्रकार चयन किया की उन मंत्रो से निकालने वाली उर्जा वातावरण में जाकर उससे सम्बंधित उर्जाव को आपके अन्दर समाहित कर दे /इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है ,
जब कोई किसी मन्त्र विशेष का जप करता है अर्थात बार-बार उच्चारण करता है तो उस मन्त्र के नादों से ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती है जो एक उर्जा समूह का निर्माण करती है ,यह उर्जा समूह ब्रह्माण्ड में उपस्थित अपने ही प्रकार की उर्जा को आकर्षित करती है और उससे मिल कर एक विशिष्ट शक्ति में परिवर्तित हो जाती है और जप करने वाले व्यक्ति से जुड जाती है और उसके मानसिक तरंगों के दिशा निर्देशों के अनुसार कार्य करने लगती है/ ,यही उस मन्त्र की दैवीय या पराशक्ति होती है |
जब आप अपने जीवन में थक गए होते है समस्याओ से परेशान हो गए होते है और जब कुछ समझ में नहीं आता है तब मंत्र हमे उस प्रकार ही शांति प्रदान करते जब हम थक गए होते और हमे विश्राम करना होता है , जब हम प्यासे होते और कोई हमे पानी दे देता है और जब हमे धुप लगती है और कोई हमे छाव प्रदान करता है उस समय जो आन्नद का अनुभव होता है ठीक उस प्रकार का अनुभव मन्त्रो को उच्चारित करने पर यानि बोलने पर होता इतना आनंद आता है की हम खो जाते है इसके लिए सिर्फ मन का पवित्र होना और हमारे शारीर को उस ईश्वर के ध्यान में लगाना मात्र होता है /
दूसरा की मंत्रो से योग क्रिया कैसे होती है इसके लिए हमे संस्कृत को समझना आवश्यक होगा …
संस्कृत भाषा एक भाषा मात्र न हो कर व साधारण बोल चाल की भाषा न होकर मनुष्य के विकास में भी सहायक होती है इस छुपे हुए रहस्य को जानने वाले महान लोगो ने इसे देवताओ की भाषा कहा है अमृत वाणी कहा है ये संस्कारित भाषा है इसलिए ही इसे संस्कृत कहते है / संस्कृत को संस्कारित करने वाले भी कोई सामान्य मनुष्य नहीं थे अपितु वो महान ऋषि थे जिन्होने अक्षरों और शब्दों का ऐसा चयन करके हमे एक संस्कृत के रूप में औषधि दे दी की हम खुद नहीं जानते की हम औषधि पी रहे और हम निरोग भी होते जा रहे है / इन महान ऋषि , मुनि और योग शास्त्र के ज्ञाताओ ने योग क्रियाओ को संस्कृत के श्लोक और मंत्रो में इस [प्रकार समाहित किया है की जैसे हमारी माँ कडवी औषधि में मीठी वस्तु मिलाकर हमे बडे प्यार से वो कडवी औषधि खिला देती है और हम खा भी लेते है और हमे जरा सा भी भान नहीं होता है की हमने निरोग होने के लिए कडवी औषधि खा ली है / हम मीठी वस्तु का आनंद लेते लेते कडवी औषधि अनायास ही खा लेते है /और ठीक ऐसा ही संस्कृत या संस्कारित भाषा में भी है की हम मंत्र बोलते बोलते न जाने कितने बार योग क्रिया कर लेते है और हमे पता भी नहीं चलता है /
संस्कृत भाषा में वे औषधीय तत्व क्या है ? यह जानने के लिए विश्व की तमाम भाषाओं से संस्कृत भाषा का तुलनात्मक अध्ययन करने से स्पष्ट हो जाता है।
संस्कृत में निम्नलिखित चार विशेषताएँ हैं जो उसे अन्य सभी भाषाओं से अलग और विशिष्ट बनाती हैं।
अनुस्वार (अं ) और विसर्ग (अ:)
संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण और लाभप्रद व्यवस्था है, अनुस्वार और विसर्ग। पुल्लिंग के अधिकांश शब्द विसर्गान्त होते हैं —
जैसे – राम:, बालक: ,हरि: ,भानु: ,आदि।
और
नपुंसक लिंग के अधिकांश शब्द अनुस्वारान्त होते हैं—
जैसे – जलं, वनं, फलं, पुष्पं ,आदि।
अब जरा ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है। अर्थात् जितनी बार विसर्ग का उच्चारण करेंगे उतनी बार कपालभाति प्रणायाम अपने आप ही हो जाता है। जो लाभ कपालभाति प्रणायाम से होते हैं, वे केवल संस्कृत के विसर्ग उच्चारण से प्राप्त हो जाते हैं।
उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही क्रिया है ।भ्रामरीप्राणायामकरतेसमयभ्रमरअर्थातभंवरेजैसीगुंजनहोतीहै, इसीकारणइसेभ्रामरीप्राणायामकहतेहैं।भ्रामरीप्राणायामसेजहांमनशांतहोताहैवहींइसकेनियमितअभ्याससेऔरभीबहुतसेलाभप्राप्तकिएजासकतेहैं। और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है। अत: जितनी बार अनुस्वार का उच्चारण होगा , उतनी बार भ्रामरी प्राणायाम स्वत: हो जावेगा।
कपालभातिप्राणायाम प्राणायाम की एक विधि है। कपाल का अर्थ संस्कृत में होता है माथा या ललाट, और भाति का अर्थ है तेज। इस प्राणायम का नियमित अभ्यास करने से मुख पर आंतरिक प्रभा (चमक) से उत्पन्न तेज रहता है। कपाल भाति बहुत ऊर्जावान उच्च उदर श्वास व्यायाम है। कपाल अर्थात मस्तिष्क और भाति यानी स्वच्छता। अर्थात ‘कपाल भाति’ वह प्राणायाम है जिससे मस्तिष्क स्वच्छ होता है और इस स्थिति में मस्तिष्क की कार्यप्रणाली सुचारु रूप से संचालित होती है। वैसे इस प्राणायाम के अन्य लाभ भी है।इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर की अनावश्यक चर्बी घटती है। हाजमा ठीक रहता है। भविष्य में कफ से संबंधित रोग व सांस के रोग नहीं होते। प्राय: दिन भर सक्रियता बनी रहती है। रात को नींद भी अच्छी आती है।
भ्रामरी प्राणायाम से मन शांत होकर तनाव दूर होता है। इस ध्वनि के कारण मन इस ध्वनि के साथ बंध सा जाता है, जिससे मन की चंचलता समाप्त होकर एकाग्रता बढ़ने लगती है। यह मस्तिष्क के अन्य रोगों में भी लाभदायक है। इससे हृदय और फेफड़े सशक्त बनते हैं। उच्च-रक्तचाप सामान्य होता है। हकलाहट तथा तुतलाहट भी इसके नियमित अभ्यास से दूर होती है। योगाचार्यों अनुसार पर्किन्सन, लकवा, इत्यादि स्नायुओं से संबंधी सभी रोगों में भी लाभ पाया जा सकता है।
अब अगर हम सिर्फ ‘ॐ मात्र का उच्चारण करते है तो ये योग स्वतः ही हो जाते है अनुसंधानों से भी सिद्ध हो चूका है की गायत्री मंत्र में सबसे ज्यादा कम्पन्न होता है / संस्कृत भाषा में एक भी वाक्य ऐसा नहीं होता जिसमें अनुस्वार और विसर्ग न हों। अत: कहा जा सकता है कि संस्कृत बोलना अर्थात् चलते फिरते योग साधना करना।
संस्कृत भाषा में ऐसे ही न जाने कितने लाभ छुपे हुए है जो सुबह सुबह मंत्रोचारण करने मात्र से वो लाभ हमे मिल जाते है / संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। ये संस्कृत में जब दो शब्द पास में आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है। उस बदले हुए उच्चारण में जिह्वा आदि को कुछ विशेष प्रयत्न करना पड़ता है।ऐंसे सभी प्रयत्न एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति के प्रयोग हैं। जैसे त्र्यम्बकं बलोनी से हमारी जीभ में काफी मुड़ेगी जो भी एक एक्यूप्रेशर है /और पूरा मंत्र ” ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !! में कितने योग कर लेंगे की हमे मृत्यु का भय ही ख़त्म हो जाता है मतलब की सारी योग क्रियाए तो हो गई अब हम बीमार कहा से होंगे जब बीमार नहीं होंगे तो मृत्यु का भय कहा से आयेगा /
इसलिए ही संस्कृत को देव भाषा संस्कारित भाषा और अमृत वाणी कहा गया है /
इसलिए मंत्रो में शक्ति निहित है बस हमे मन से उस ईश्वर उस पराशक्ति को ध्यान कर के मंत्रो का उच्चारण करना है / जिससे की हमारे समस्त दुःख और दर्द दूर हो जायेंगे /
ASHISH TRIPATHI
KANPUR
UTTER PRADESH
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