Menu
blogid : 535 postid : 765157

हम पर हँसते है गुनहगार !

कानपुर की आवाज़
कानपुर की आवाज़
  • 39 Posts
  • 35 Comments

हम पर हँसते है गुनहगार !

निठारी केस कानपूर का चर्चित दिव्या रेप और हत्या का केस दिल्ली का निर्भया केस बंदायु कांड और अब लखनऊ मर्डर और गैंगरेप केस ये कुछ ही केस है जो एक माँ को रोने और उसे इस बात पर झकझोरने के लिए काफी है की एक लड़की होना अभिशाप है माँ कहती है की जव लोग कहते थे की बेटा चिराग होता है तो समझ न आता था मैने भी कहा जमाने से अलग अपनी बेटी को बेटे के बराबर पड़ा कर प्यार देकर सबकी बातो को झूठा साबित कर दूंगी / लेकिन अब समझ में आता है की बेटे ही चिराग होते है घर के समाज के और देश के ! क्योंकि वो सुरक्षित है गर्भ से लेकर बुडापे तक लेकिन बेटी जिस दिन ही गर्भ में आ जाती है उस दिन समाज की हवा उसे बुझाने पर मजबूर करती है अगर उससे बच निकले तो फिर न जाने कितने तुफानो का सामना करना पड़ता है और बच गई तो ठीक नहीं तो ………

वो जो जानवर है न इन्सान न राक्षस है क्योंकि वो इन जैसा कोई व्यवहार भी तो नहीं करते क्या ये 84 लाख योनियों से बहार है कोई शब्द भी तो न दिया भगवान ने … ये अनजाने साये उसे कब नोच डालेंगे पता ही नहीं होता है एक माँ को !घर से लेकर स्कूल तक और अस्पताल से लेकर आफिस तक और मंदिर से लेकर पार्टियों तक बेटी सुरक्षित कहा है सिर्फ माँ की गोद में बस …रात का अँधियारा हो तो ठीक है ये तो दिन के उजाले में भी बेटी की बोटी बोटी नोच डालते है / इन्हे परम आनंद मिलता है जब कोई बेटी इनसे दया और अपनी इज्जत की भीख मांगती है /

आखिर क्यों पुरानी सोच वाले कहते थे की लड़की मनहूस होती है क्यों उनके पैदा होने पर रोते थे और उसे मारने की बात करते थे क्यों ,क्योंकि इसलिए की उसको बाद में समाज के दरिन्दे ऐसा बना देंगे की अगर वो जिन्दा रही तो जी कर भी मरती रहेगी और अगर मर गई तो उसकी वो मनहूस यादे परिवार वालो को जीने नहीं देंगी /

एक माँ अखबारों में गैंगरेप की खबर और टी वी चैनेल्स में गैंगरेप पर बहस के बीच में खुशियों की सौगाते का विज्ञापन देखकर सुकून से बैठी है की मैं एक बेटे की माँ हूँ लडके की इज्ज़त की क्या फिकर और कुछ हुआ भी तो ये जमाना कुछ ज्यादा नहीं कहेगा लेकिन एक बेटी के जन्म के बारे में सोच कर उसको सिर्फ अपनी आँखों के सामने ही बेटी सुरक्षित लगती है /

जो जिमेदार है वो कहते है की

एक एक लड़की के पीछे एक एक पुलिस वाला तो लगा नहीं देंगे

कोई कहता है की खूंटे से बंधी भैस भी जबरदस्ती किसी के साथ नहीं जाती

और कोई कहता है की बच्चो से गलतिया हो ही जाती है फांसी थोडे ही न दे देंगे !

अब जब जिम्मेदार लोग ही ऐसा कहंगे तो मैं अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए क्या करू क्या मैं उसके साथ स्कूल में एडमिशन ले लू या फिर उसके नौकरी करने के साथ मैं भी नौकरी करू क्या मैं उसके साथ साये की तरह लगी रहू मैं ये कर भी लुंगी क्योंकि मैं एक माँ हु लेकिन वो कैसे करेंगी जिनकी बेटी एक नहीं दो या चार होगी !डर तब और बड जाता है ये सोच कर जब मैं न हुई तब कौन करगा मेरी बेटी की सुरक्षा /

जब ऐसे लोगो को देखती हु जो खबरे पड़ते समय गुस्सा करते है उनका गुस्सा खबर के साथ ही ख़त्म हो जाता है पान की दुकान में सिगरेट पीते हुए और चाय की दुकान में चाय पीते ही लोगो को भी गुस्सा आता है लेकिन वहा भी चाय के साथ गुस्सा ख़त्म हो जाता है गुन्हेगार ऐसे लोगो को देख कर हसता है और छाती ठोक कर कहता है असली मर्द तो मैं हु बाकि तुम सब न मर्द हो क्योंकि किसी ने सही कहा था की माँ का दूध हमेशा लड़की की इज्ज़त पर खौलता है लेकिन ये डब्बा बंद दूध कभी नहीं खौलता है / फोटो की चाहत रखने वाले लोग हाथो में मोमबत्ती और चेहरे में मेकअप लगा कर फोटो खीचने के लिए आवाज़े लगाते है लेकिन कैमरों के फ़्लैश बंद होते ही उनकी आवाजे भी बंद हो जाया करती है तब भी गुनाहगार हसता है की तुम्हारी फोटो की चाहत और उनकी खबर की चाहत क्या जोड़ी है / पुलिस और पब्लिक की लड़ाई में भी गुनाहगार हसता है और कहता है की पुलिस तुम सब पर ही जोर दिखा सकती है हम अपर नहीं / नेता पक्ष और विपक्ष के आरोपों और प्रत्यारोपो पर भी हसता है गुनाहगार की तुम लोगो की कुर्सी और पैसो का प्यार ही जनता को ये दिन दिखाता है वरना जनता का प्यार अगर सच में तुम्हारे दिल में होता तो हम ऐसी वारदाते करने की सोचते ही न /

लखनऊ और दिल्ली कानपूर और बंदायु में लडकिया जब चीख रही थी तो क्या इलाके के लोगो के कान बंद थे या फिर गुनहगारो के हाथ और रसूक इतना लम्बा था की लोगो ने सुनना जरुरी न समझ की इसे कौन सी सजा होगी या फिर कौन सा हमारे घर से आवाजे आ रही है / घटना के बाद मामले के खुलासे और उसकी बाद पुलिस और सरकार अपनी पीठ जितनी चाहे थपथपा ले लेकिन असली वावाही तो तब है जब देश में और प्रदेश में ऐसी रेप की घटनाओ की खबरों की कब्रे बन जाय /

टी वी चैनेल्स में आने वाले कार्यक्रम और अखबारों में छपने वाले विज्ञापन कही रेप कल्चर का निर्माण तो नहीं कर रहे है सिर्फ विज्ञापन और टी आर पी की अंधी दौड़ में कही ये अपना मूल तो नहीं भूल गए /

गुनहगार सिर्फ वो नहीं जिसने गुनाह किया हो गुनहगार वो सब है जो इंतज़ार करते है अखबारों में ऐसी मसालेदार खबरे पडने का और खबरे पड़ कर हम सब शांत बैठ जाते है / आज अगर हमारे आस पास की घटना नहीं है हमारे इलाके की घटना नहीं है तो क्या हम अपनी नाराज़गी जाहिर नहीं कर सकते क्या प्रदर्शन सिर्फ इसलिए ही की हमारी फोटो पेपर में आय और उसकी कटिंग हमारी एन जी ओ के काम आ जाय / हम सब को अपने लिए अपनी बेटियों के सुरक्षित कल के लिए एक एसा आन्दोलन करना चाहिए की सरकार एसा ठोस कानून बनाने पर मजबूर हो जाय की ये गुनाह करने वाले एक बार भी इस बारे में न सोचे / अगर हमे अपनी बेटियों का कल बेहतर करना है तो ऐसे आन्दोलन लगातार जारी रहना चाहिए ना कि उस जानवर की तरह की जब एक चिल्लाता है तो सब चिल्लाने लगते है और जब पहला शांत तो सब शांत / क्योंकि जब तक मीडिया चिल्लाती है तब तक सब को याद रहता है लेकिन बाद में फिर सब भूल जाते है /

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh