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2016 के लिए गए पैरालिंपिक्स दल के सदस्यों ने देश का नाम रौशन कर दिया. जहाँ ग्रीष्मकालीन ओलंपिक्स में भारत के कुल 117 प्रतिस्पर्धियों ने भाग लिया किंतु हम केवल दो पदक (एक रजत एवं एक कांस्य) ही जीत पाए. वहीं पैरालिंपिक्स में गए 18 खिलाड़ियों ने कुल चार पदक (दो स्वर्ण, एक रजत तथा एक कांस़्य) जीत कर साबित कर दिखाया कि शारीरिक अक्षमता के बावजूद वह किसी से कम नही हैं. यदि उचित अवसर मिले तो वह भी देश की शान बढ़ा सकते हैं.
आइए उन खिलाड़ियों के जीवन तथा उनके संघर्ष पर एक नज़र डालते है.
मरियप्पन थंगावेलू
पुरुषों की हई जम्प T-42 प्रतियोगिता में 1.89 मी. की छलांग लगा कर मरियप्पन ने भारत को 2016 पैरालिंपिक्स में पहला स्वर्ण पदक दिलाया.
पाँच वर्ष की आयु में मरियप्पन का पैर बस के नीचे आकर कट गया.
अपने पीटी शिक्षक की सलाह पर इन्होंने हाई जम्प को खेल के रूप में स्वीकार किया. इस साल मार्च में
1.60 मी. की निर्धारित सीमा से कहीं अधिक 1.78 मी. की जम्प लगाकर मरियप्पन ने पैरालिंपिक्स के लिए क्वालीफाई किया था. तब से उनका आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया था. जिसके कारण वह स्वर्ण पदक जीत पाए.
वरुण सिंह भाटी
21 साल के वरुण ने हाई जम्प में 1.86 मी. की जम्प लगा कर भारत के लिए कांस्य पदक जीता. वरुण Poliomyelitis नामक रोग का शिकार हैं जिसमें एक पैर विकृत होकर कमज़ोर हो जाता है. यह Polio का ही एक प्रकार है.
वरुण ने 2016 में दोहा में आयोजित IPC Athletics Asia-Oceania Championship में 1.82 मी. की जम्प लगा कर स्वर्ण पदक जीतने की संभावना जगाई थी.
वरुण St Joseph’s School ग्रेटर नोएडा में B Sc Math (Hons) के छात्र हैं.
दीपा मलिक
दीपा हिम्मत व हौंसले की जीती मिसाल हैं. 30 September 1970 को इनका जन्म सोनीपत में हुआ था. 2016 के पैरालिंपिक्स में शॉटपुट मुकाबले में रजत पदक जीत कर वह पैरालिंपिक्स में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं. दीपा ने शॉटपुट के F-53 श्रेणि में 4.61 मी. गोला फेंक कर द्वितीय स्थान पाया. दीपा कई प्रकार के Adventures Sports से संबंध रखने के कारण प्रसिद्ध हैं. गोला फेंकने के अलावा भाला फेंकने, तैराकी, कार रेसिंग में भी माहिर हैं.
2012 में दीपा अर्जुन अवार्ड प्राप्त कर चुकी हैं. पक्षाघात की शिकार 45 वर्षीय दीपा एक ज़िंदादिल व्यक्ति है.
देवेंद्र झझरिया
राजस्थान चुरु के निवासी देवेंद्र ने 63.97 मी. भाला फेंक कर विश्व रिकार्ड बनाते हुए स्वर्ण पदक जीता. 2004 ऐथेंस पैरालिंपिक्स में भी देवेंद्र ने भाला फेंक प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता था.
बचपन में पेंड़ पर चढ़ते हुए 11000 वोल्ट के बिजली के तार से हाथ टकरा जाने के कारण इनका एक हाथ बेकार हो गया. आर्थिक तंगी से गुजरते हुए भी इन्होंने हार नही मानी. रेलवे के पूर्व कर्मचारी देवेंद्र अब स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के साथ काम करते हैं.
2012 में इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
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