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श्री अनिल शूर आज़ाद का लेखन जीवन के बहुत करीब है. ग्रामीण परिवेश में बचपन व्यतीत होने का असर है कि जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण बहुत खुला हुआ है. गांव की सादगी आपके जीवन के साथ साथ लेखन में भी झलकती है.
अनिल जी के लेखन की शुरुआत एक रोचक प्रसंग से हुई. बात वर्ष 1978 के अंतिम दिनों की है जब अनिल जी रेवाड़ी(हरियाणा) के निकट रामपुरा गांव के बलबीर सिंह अहीर हायर सेकेंडरी स्कूल की नवीं कक्षा का विद्यार्थी थे. एक बार इनके अध्यापक श्री बंशीधर जी ने ‘छात्र-असंतोष’ विषय पर निबंध याद करने के लिए कहा. लेकिन अनिल जी ने निबंध याद नहीं किया. अपनी घोषणानुसार मास्टर जी ने लिखित परीक्षा ली. मास्टर जी पिटाई करने में कोई कसर नहीं रखते थे. अतः अनिल जी ने अपनी समझ से जोड़-जाड़कर दो पेज का निबंध तो लिख दिया किंतु डर था कि ज्यादा नहीं तो दो चार डंडे तो खाने ही पड़ेंगे. परंतु अगले दिन आप को बेहद आश्चर्य हुआ जब मास्टर जी ने पिटाई करने की बजाय अपने पास बुलाकर आपके मौलिक लेखन की पूरी कक्षा के समक्ष तारीफ की व लेख पढ़कर भी सुनाया. बस इस प्रोत्साहन ने इनके लेखन की प्रतिभा को फलने फूलने का अवसर प्रदान किया. यही लेखन एवं पठन-पाठन मुख्य अभिरुचि बनकर जीवन का अहम हिस्सा बन गया. निकटवर्ती लोग एवं परिवेश आपके लेखन के प्रेरक-तत्व रहे हैं. आसपास घटित होने वाली घटनाओं से आप अपने लेखन के लिए विषय का चुनाव करते हैं.
अनिल जी का जन्म 26जून 1965 वर्तमान हरियाणा के रेवाड़ी जिले में स्थित रामपुरा गांव में हुआ था. आपके पिता का नाम प्रोफेसर सुखदेवराज शूर एवं माता का नाम श्रीमती पुष्पा रानी था. आपका परिवार धर्मपरायण एवं सुशिक्षित-सुसंस्कृत था. इस परिवेश का गहरा प्रभाव आपके व्यक्तित्व पर पड़ा.
आपने इतिहास व हिंदी में एम.ए. किया. इसके अलावा एमएड, एल.एल.बी. वैध विशारद तथा पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की.
आपका संबंध लघुकथा, कविता, व्यंग्य, कहानी, हाइकू जैसी लेखन की विधाओं से है. इसके अलावा आप सम्पादन-कार्य से भी जुड़े हैं. आपकी प्रकाशित पुस्तकें निम्न हैं
लघुकथा-संग्रह :- सरहद के इस ओर, क्रांति मर गया
कविता संग्रह :- पत्थर पर खुदे नाम, रोटी के लिए ज़िद मत कर
व्यंग्य-संग्रह :- मेरे प्रिय हास्य व्यंग
कहानी-संग्रह :- मेरी सात कहानियां
विविध रचना-संग्रह :- अंजुरी भर साहित्य
इसके अलावा दो बालोपयोगी पुस्तकें, छः सम्पादित लघुकथा संकलन तथा दो समालोचनात्मक पुस्तकों सहित अब तक कुल सत्रह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं.
पूर्व में आपके सम्पादन में रविज्योति, हलाहल तथा ‘प्रशिक्षित अध्यापक’ नामक पत्रिकाएं निकलती थीं. साथ ही ‘लघुकथा में लघुवाद’ पर केंद्रित अंक निकाला गया..
आपको अनेक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं.
दिल्ली सरकार द्वारा सर्वोच्च ‘राज्य शिक्षक पुरस्कार (2005)
सांपला(हरियाणा) का प्रतिष्ठित प्रज्ञा शिक्षक सम्मान
गायत्री परिवार एवं राष्ट्रकिंकर के द्वारा संस्कृति सम्मान (2005)
विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ से मानद डॉक्टरेट ‘विद्यावाचस्पति’, मानद डी-लिट् ‘विद्यासागर’ तथा सर्वप्रमुख ‘भारत गौरव’
स्टेट एंड नेशनल एवार्डी टीचर्स एसोसिएशन दिल्ली द्वारा विशेष सम्मान
राजपूत एसोसिएशन दिल्ली की हीरक जयंती के अवसर पर विशिष्ट सम्मान
हरियाणा प्रादेशिक साहित्य सम्मेलन सिरसा द्वारा ‘रमेशचंद्र शालिहास स्मृति सम्मान’ तथा आर्यसमाज विकासपुरी सहित देशभर की सौ से अधिक संस्थाओं द्वारा अब तक आपको सम्मानित किया जा चुका है.
वर्तमान में आप दिल्ली शिक्षा निदेशालय के तहत बतौर ‘लेक्चरर इतिहास’ सेवारत हैं. पठन-पाठन एवं लेखन के अतिरिक्त आपको शतरंज खेलना, नए नए स्थानों का भ्रमण करना तथा परिवार के साथ अधिकाधिक समय बिताना पसंद है.
परिवार में आदर्श जीवनसंगिनी इंदु वर्मा हैं जो स्वयं एक अच्छी कवियत्री हैं. इसके अतिरिक्त दो सुयोग्य-मेधावी बेटियां सौम्या तथा स्वर्णिमा हैं. बेटियों को पढ़ा लिखा कर योग्य बनाना आपकी अभिलाषा है.
हम सब स्वस्थचित्त बने रहें तथा सुखी रहें यही आपके जीवन का फलसफा है.
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