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शिक्षक जिसने दिखाई समाज को नई दिशा

parvaaz hounsale ki
parvaaz hounsale ki
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सरकारी तंत्र में व्याप्त अव्यवस्था की शिकायत हम सभी करते हैं. अक्सर यह कहते हुए हथियार डाल देते हैं कि इस व्यवस्था में कोई सुधार नही किया जा सकता है.
हमारे बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जो हार मानने की बजाय हालात बदलने का प्रयास करते हैं और उसमें सफल भी होते हैं. ऐसी ही एक मिसाल पेश की है सरकारी शिक्षक अवनीश यादव ने.
गाजीपुर जिले के बभनौली गांव के रहने वाले अवनीश यादव की नियुक्ति प्राथमिक शिक्षक के रूप में 2009 में गौरी बाजार के प्राथमिक विद्यालय पिपराधन्नी गांव में हुई थी. किंतु इस प्राइमरी स्कूल का हाल ऐसा था कि यहाँ न तो बच्चे पढने आते थे और न ही शिक्षक स्कूल में पढ़ाने जाते थे. अवनीश ने ऐसी स्थिति देखी तो स्वयं घर-घर जाकर लोगों से सम्पर्क किया. गांव में मजदूरी करने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक थी. इन लोगों की सोंच थी कि जितने ज्यादा हाथ उतनी ज्यादा कमाई. अतः वह बच्चों को स्कूल नही भेजना चाहते थे. ऐसी स्थिति में गांव वालों को समझाना और बच्चों को स्कूल लेकर आना एक कठिन चुनौती थी. इस कठिन कार्य को करने का निश्चय अवनीश ने कर लिया था. अतः वह गांव वालों को शिक्षा का महत्व समझाते. शनैः शनैः अवनीश की मेहनत रंग लाई और मजदूरों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया.
अवनीश ने अपने पहले प्रयास के सफल होने के बाद बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देना शुरू किया. लेकिन यह शिक्षा केवल पुस्तकों तथा पाठ्यक्रम तक ही सीमित नही थी. बच्चों को देश विदेश में घट रही सभी महत्वपूर्ण घटनाओं की जानकारी दी जाती थी. महज 6 वर्षों में अवनीश ने अपनी लगन से प्राइमरी स्कूल की तस्वीर बदल कर रख दी. अवनीश का उनके छात्रों से एक अनोखा नाता जुड़ गया. गांव के लोग अवनीश को अपने बेटे की तरह मानने लगे.
यह रिश्ता और मजबूत होता जा रहा था. गांव वाले अवनीश में गांव का सुनहरा भविष्य देख रहे थे. तभी उनके तबादले की दुखद खबर ने सबको परेशान कर दिया. इस समाचार ने उनसे उनकी उम्मीद छीन ली. पूरा गांव फफक फफक कर रो पड़ा. अवनीश यादव भी भावुक हो गए. अभिवावकों और स्कूल के बच्चों
ने उनके सम्मान में एक विदाई समारोह का आयोजन किया. इस समारोह में किसी के भी आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. लेकिन सरकारी आदेश था अतः उसका पालन कर अवनीश को जाना पड़ा. कुछ गांव वाले अवनीश को गांव की सीमा तक छोड़ने गए. जाते हुए अवनीश बार-बार मुड़कर पीछे देख रहे थे.
अवनीश का उदाहरण हमें उम्मीद देता है कि सच्चे प्रयास अवश्य सफल होते हैं.

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