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मनाई गई. डॉ. अंबेदकर ने हमें एक ऐसा संविधान दिया है जहाँ धर्म जाति लिंग किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना सभी भारतीय नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं.
मेरे लिए बाबासाहेब भीमराव अंबेदकर वह आवाज हैं जिसने सदियों से शोषित व उपेक्षित लोगों को झझकोर कर रख दिया जिन्हें हिंदू समाज की जातिगत व्यवस्था में सबसे नीचे स्थान दिया गया है. वह आवाज जिसने उनके भीतर आत्मसम्मान से जीने की ज्वाला पैदा की. बाबासाहेब ने ना सिर्फ दलितों के सामाजिक हितों वरन् उनके राजनैतिक अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी. दलित समाज की अस्मिता की लड़ाई का बिगुल ना केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बजाया. सामाजिक तथा राजनैतिक आलोचना, तिरस्कार एवं भेद भाव पूर्ण रवैये की परवाह किए बिना दलितों को उनके अधिकार दिलाने के अपने लक्ष्य पर डटे रहे. दलितों के मुद्दों को धैर्य, साहस और ईमानदारी के साथ उठाते रहे.
उनकी लड़ाई सामाजिक स्वतंत्रता, राजनैतिक तथा आर्थिक सशक्तिकरण के साथ साथ दलित समाज में सम्मान की उस भावना को जागाने के लिए थी जो सदियों के शोषण द्वारा बुरी तरह कुचल दी गई थी. बाबासाहब ने दलितों का आवाहन किया कि वह संगठित हों, शिक्षित बनें और अपनी लड़ाई लड़े.
सामाजिक एवं राजनैतिक बहिष्कार के बावजूद भी उन्होंने कभी हार नही मानी. यह उनके चरित्र की दृढ़ता थी कि आखिरकार विरोधियों को झुकना पड़ा. भारत जैसे विशाल तथा विविधताओं से भरे राष्ट्र के संविधान निर्माण का महत्वपूर्ण दायित्व उन्हें सौंपा गया. इस काम के लिए इस देश के भूगोल यहाँ की सांस्कृतिक विरासत इतिहास आदि के वृहद ज्ञान की आवश्यक्ता थी. बाबासाहब का ज्ञान इस विषय में बहुत अधिक था. अपने विवेक तथा धैर्य से उन्होंने एक ऐसा संविधान बनाया जो कई राष्ट्रों के लिए आदर्श है.
भले ही आज वह जीवित नहीं हैं किंतु सामाजिक समरसता स्थापित करने की मशाल जो उन्होंने जलाई थी वह आज भी प्रज्वलित है. एक मार्गदर्शक के तौर पर वह आज भी कई लोगों को अपने अधिकार के लिए संघर्ष करने को प्रेरित कर रहे हैं.
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