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अब तो आखिरी सलाम लिख दे….

सुप्रभात
सुप्रभात
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अब तो आखिरी सलाम लिख दे……….
दिल में गीता और जुबां पे कुरान दिखा देना !
कभी मिले तो कलाम साहब जैसा मुसलमान दिखा देना !!
सिर्फ दो सूटकेस लेकर राष्ट्रपति भवन में गए थे और पांच साल बाद दो सूटकेस लेकर बहार आये थे, अपने मेहमानों व रिश्तेदारों के आने पर राष्ट्रपति भवन की गाड़ी का कभी इस्तेमाल नहीं किया. ऑटो टैक्सी से ही बुलवाया करते थे खुद अपनी जेब से किराया देते थे. ये कहना था राष्ट्रपति भवन के कर्मचारियों का, सादगी पूर्ण जीवन जीने वाले कलाम को शायद इसलिए आम लोगो का राष्ट्रपति कहा गया .
रामेश्वरम में बैरिकेड के पार खड़ी भीड़ की तादाद अब लाखों के करीब पहुंच गई थी. भीड़ नारे लगा रही थी-अब्दुल कलाम अमर रहें…भारत माता की जय। भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी. उधर, कुछ श्रधांजलि देने के लिए पहुंचने की होड़ में रहे, हर हिन्दुस्तानी की जुबान पर एक शब्द ”इंडिया को ऐसा दूसरा आदमी अब कहां मिलेगा? बहुत बड़ा नुकसान हुआ है.” स्टूडेंट्स, साइंटिस्ट्स से लेकर आम आदमी तक में मशहूर रहे पूर्व राष्ट्रपति एपी जे अब्दुल कलाम की जिंदगी की यही है सबसे बड़ी कमाई.
ऐसे लोग कम ही रहे हैं जिन्‍होने अपने लिये कुछ नहीं किया, जो किया जनता के लिये किया , कलाम सर सम्‍पूर्ण भारत को अपना परिवार मानते थे, इसीलिये उन्‍होने सब कुछ दान कर दिया था, उन्‍होने कहा था मुझे इन सबकी जरूरत नहीं, ये जरूरतमन्‍दों के काम आना चाहिये.
रामनाथस्वामी मंदिर से कलाम का रिश्ता
रामेश्वरम के श्री रामनाथस्वामी मंदिर के पश्चिमी दरवाजे के पास स्थित एक छोटी सी दुकान ही वह जगह थी जहां बचपन में कलाम पर उडऩे वाली चीजों के प्रति आकर्षण सबसे पहले यहीं महसूस हुआ था. खिलौनों को देखकर, खास तौर पर हवाई जहाज को देखकर ही उन्हें पहले-पहल उडऩे वाली चीजों में दिलचस्पी हुई थी. इस दुकान के साथ ही साथ उनका रामनाथस्वामी मंदिर से जो रिश्ता बना वह तमाम जिंदगी कायम रहा.
इस मंदिर के संयुक्त कमिश्नर सी सेल्वाराज ने बताया डॉक्टर कलाम की हमेशा ही इस मंदिर में दिलचस्पी बनी रही. वह बताते हैं कि कलाम के पास जब भी समय होता था तब भी मंदिर आया करते थे. सेल्वाराज बताते हैं कि कलाम मंदिर की तीसरी मंजिल तक आ जाया करते थे. कलाम माराकयर मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते थे।
माराकयरों ने निकाला था मूर्ति को
रामनाथपुरम के जिला सचिव ए सरवनन बताते हैं कि पुरानी कहावतों के अनुसार एक बार देवता की मूर्ति मंदिर में बने तालाब में गिर गई थी. तब माराकयर समुदाय के मुस्लिमों ने ही मूर्ति को बाहर निकाला था. उसी समय से मंदिर में आयोजित होने वाले हर त्यौहार और आयोजन में इस समुदाय के लोगों को विशेषाधिकार दिए जाते हैं. इस समुदाय के लोग ही किसी जमाने में मंदिर की चाबी की जिम्मेदारी संभालते थे.
यह मंदिर साल 1960 में हिंदू रिलिजस एंड चैरिटेबल इंडाउमेंट्स बोर्ड में शामिल हुआ था. तब से ही भारत सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारियों के पास मंदिर की चाभी रहती है. बावजूद इसके माराकयर समुदाय को अभी भी मंदिर में विशेष दर्जा मिला हुआ है. हर साल जनवरी मध्य से फरवरी मध्य तक चलने वाले फ्लोट त्यौहार में माराकयर समुदाय के मुस्लिम भी शामिल होते हैं. इन्हें फ्लोट की रस्सी खोलने की इजाजत दी जाती है. इसके बाद इन्हें फल और फूल भी भेंट के तौर पर दिया जाता है.
कलाम साहब की शख्शियत लिखने के लिए जितने भी शब्द ढूढ लूँ हर शब्द में उनका चेहरा उभर आता है. और कहता है अब तो आखिरी सलाम लिख दे………
करोड़ों सलाम के साथ अलविदा कलाम सर ….जय हिन्द

दिल में गीता और जुबां पे कुरान दिखा देना !

कभी मिले तो कलाम साहब जैसा मुसलमान दिखा देना !!

aaसिर्फ दो सूटकेस लेकर राष्ट्रपति भवन में गए थे और पांच साल बाद दो सूटकेस लेकर बहार आये थे, अपने मेहमानों व रिश्ते

दारों के आने पर राष्ट्रपति भवन की गाड़ी का कभी इस्तेमाल नहीं किया. ऑटो टैक्सी से ही बुलवाया करते थे खुद अपनी जेब से किराया देते थे. ये कहना था राष्ट्रपति भवन के कर्मचारियों का, सादगी पूर्ण जीवन जीने वाले कलाम को शायद इसलिए आम लोगो का राष्ट्रपति कहा गया .

रामेश्वरम में बैरिकेड के पार खड़ी भीड़ की तादाद अब लाखों के करीब पहुंच गई थी. भीड़ नारे लगा रही थी-अब्दुल कलाम अमर रहें…भारत माता की जय। भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी. उधर, कुछ श्रधांजलि देने के लिए पहुंचने की होड़ में रहे, हर हिन्दुस्तानी की जुबान पर एक शब्द ”इंडिया को ऐसा दूसरा आदमी अब कहां मिलेगा? बहुत बड़ा नुकसान हुआ है.” स्टूडेंट्स, साइंटिस्ट्स से लेकर आम आदमी तक में मशहूर रहे पूर्व राष्ट्रपति एपी जे अब्दुल कलाम की जिंदगी की यही है सबसे बड़ी कमाई.

ऐसे लोग कम ही रहे हैं जिन्‍होने अपने लिये कुछ नहीं किया, जो किया जनता के लिये किया , कलाम सर सम्‍पूर्ण भारत को अपना परिवार मानते थे, इसीलिये उन्‍होने सब कुछ दान कर दिया था, उन्‍होने कहा था मुझे इन सबकी जरूरत नहीं, ये जरूरतमन्‍दों के काम आना चाहिये.

रामनाथस्वामी मंदिर से कलाम का रिश्ता

rameरामेश्वरम के श्री रामनाथस्वामी मंदिर के पश्चिमी दरवाजे के पास स्थित एक छोटी सी दुकान ही वह जगह थी जहां बचपन में कलाम पर उडऩे वाली चीजों के प्रति आकर्षण सबसे पहले यहीं महसूस हुआ था. खिलौनों को देखकर, खास तौर पर हवाई जहाज को देखकर ही उन्हें पहले-पहल उडऩे वाली चीजों में दिलचस्पी हुई थी. इस दुकान के साथ ही साथ उनका रामनाथस्वामी मंदिर से जो रिश्ता बना वह तमाम जिंदगी कायम रहा.

इस मंदिर के संयुक्त कमिश्नर सी सेल्वाराज ने बताया डॉक्टर कलाम की हमेशा ही इस मंदिर में दिलचस्पी बनी रही. वह बताते हैं कि कलाम के पास जब भी समय होता था तब भी मंदिर आया करते थे. सेल्वाराज बताते हैं कि कलाम मंदिर की तीसरी मंजिल तक आ जाया करते थे. कलाम माराकयर मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते थे।

माराकयरों ने निकाला था मूर्ति को

रामनाथपुरम के जिला सचिव ए सरवनन बताते हैं कि पुरानी कहावतों के अनुसार एक बार देवता की मूर्ति मंदिर में बने तालाब में गिर गई थी. तब माराकयर समुदाय के मुस्लिमों ने ही मूर्ति को बाह

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र निकाला था. उसी समय से मंदिर में आयोजित होने वाले हर त्यौहार और आयोजन में इस समुदाय के लोगों को विशेषाधिकार दिए जाते हैं. इस समुदाय के लोग ही किसी जमाने में मंदिर की चाबी की जिम्मेदारी संभालते थे.

यह मंदिर साल 1960 में हिंदू रिलिजस एंड चैरिटेबल इंडाउमेंट्स बोर्ड में शामिल हुआ था. तब से ही भारत सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारियों के पास मंदिर की चाभी रहती है. बावजूद इसके माराकयर समुदाय को अभी भी मंदिर में विशेष दर्जा मिला हुआ है. हर साल जनवरी मध्य से फरवरी मध्य तक चलने वाले फ्लोट त्यौहार में माराकयर समुदाय के मुस्लिम भी शामिल होते हैं. इन्हें फ्लोट की रस्सी खोलने की इजाजत दी जाती है. इसके बाद इन्हें फल और फूल भी भेंट के तौर पर दिया जाता है.

कलाम साहब की शख्शियत लिखने के लिए जितने भी शब्द ढूढ लूँ हर शब्द में उनका चेहरा उभर आता है. और कहता है अब तो आखिरी सलाम लिख दे………

करोड़ों सलाम के साथ अलविदा कलाम सर ….जय हिन्द

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