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क्या चुनाव लड़ने का मुख्य आधार है प्रोपेगंडा…….?

सुप्रभात
सुप्रभात
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मित्रों जैसा की आप सबने देखा कि बिहार चुनाव के अप्रत्याशित नतीजों ने बड़े बड़े विशेषज्ञों को चौंका दिया है, नतीजों से बीजेपी खेमे में सन्नाटा फैल गया है. बिहार के जनादेश का दिल्ली में मोदी सरकार पर क्या असर पड़ेगा, विश्लेषक इसका अनुमान लगाने में लगे हैं. खैर लालू & कंपनी ने ‘अच्छे दिन’ , आरक्षण, असहिष्णुता आदि मुद्दोपर बहुत ही चतुरता से मोदीजी को घेरकर ये जीत हासिल की है. अब लालू & कंपनी को बिहार के लिये अच्छे दिन लाने का शिव धनुष उठाने का बहुत कठीन काम करना होगा वरना ऊनकी हालत केजरीवाल जैसी हो सकती है.

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मोदी जी को या किसी को हतास होने कि आवश्यकता नही क्योंकि हार के बाद तो जीत ही होती है बस जरुरत है थोडा मंथन की. मोदी जी से अनुरोध कि कुछ समय देश के अन्दर दे. जनता मोदी जी के विकास को नहीं समाझ पा रही है और दूसरी बात यहाँ humility की भी कमी देखी गई है, इसके आलावा कुछ सडयंत्र भी लगता है बीफ पर प्रतिबंध, फिर नैताओं की गलत बयानबाजी इस इलेक्शन से पहले मुस्लमान और दलित करीब करीब दूर हो गये थे और फिर बिहार में मुख्यमंत्री पद के लिए अब तक भाजपा का कोई भी दमदार उम्मीदवार नहीं था ये दिल्ली-२ इलेक्शन रिजल्ट हो गया है. अब कुछ सालो मे उत्तर प्रदेश मे भी चुनाव है यहाँ जरूरत है अपनी गलतियो पर थोडा मंथन की.

लघुकालिक असर

जैसा कि देश में असहिष्णुता बढ़ने का हवाला देते हुए अवॉर्ड वापसी का दौर चल रहा है, उस पर बिहार नतीजों का इफेक्ट ये रहेगा कि ऐसी आवाज़ें और मुखर होंगी। ऐसे में कांग्रेस की कोशिश रहेगी कि केंद्र में मोदी सरकार पर दबाव बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाए। ऐसी हर बात को तूल दिया जाएगा जो मोदी विरोधी भावना को लोगों में अधिक से अधिक उभार सकें। केंद्र में सभी विपक्षी पार्टियां संसद के शीतकालीन सत्र में और जोर-शोर से सरकार पर हमले करेंगी। ऐसे मे पूरी संभावना है कि ये सत्र भी मानसून सत्र जैसे पूरी तरह ना धुल जाए। कांग्रेस कुछ मंत्रियों के इस्तीफे की मांग पर एड़ी चोटी का ज़ोर लगाएगी जिससे सरकार असहज होगी। सख्त आर्थिक नीतियों को लेकर सरकार को फूंक फूंक कर कदम उठाना होगा। अगर सरकार सख्त हाथ से सुधारों के एजेंडे को लागू नहीं करती तो इससे पूरी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा।

मध्यकालिक असर

लालू यादव और नीतीश कुमार ने जिस तरह बिहार में अपनी शत्रुता को भुलाकर हाथ मिलाया, वो दूसरी पार्टियों को बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने के लिए प्रेरणा दे सकता है। अब दूसरे राज्यों में भी बीजेपी को रोकने के लिए सेकुलर पार्टियां एक मंच पर आ सकती हैं। अगले चुनाव असम में होने हैं। वहां देखना होगा कि एआईडीयूएफ और कांग्रेस आपस में हाथ मिलाते हैं या नहीं। रणनीति यही रहेगी कि बीजेपी विरोधी वोटों को बंटने नहीं दिया जाए।

दीर्घकालिक असर

बीजेपी के लिए राहत की बात है कि बिहार में करारी हार के बावजूद उसने अपने पारंपरिक वोट बरकरार रखे हैं। बिहार के बाद अब जिन प्रमुख राज्यों में चुनाव होने हैं, वहां बीजेपी का सीधा मुकाबला कांग्रेस से होगा, जो ज़्यादा मज़बूत स्थिति में नहीं है। पीएम मोदी के पास केंद्र में 2019 तक जनादेश है। राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के बावजूद मोदी ऐसा बहुत कुछ कर सकते हैं जिससे उन करोड़ों मतदाताओं में फिर से भरोसा बहाल हो जिन्होंने उनके लिए वोट किया था। ऐसी स्थिति में 2017 में होने वाले उत्तर प्रदेश चुनाव बीजेपी के लिए बहुत अहम हो जाते हैं। बिहार की हार का मोदी सरकार पर दीर्घकालीन असर इस बात पर निर्भर करेगा कि मोदी और उनके सहयोगी इस हार का खुद पर कितना असर होने देते हैं। जहां तक विपक्ष की बात है तो 2019 चुनाव तक ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ की दुहाई देते रहना, उसके लिए सबसे बड़ा हथियार रहेगा.

एक साथ सबको ख़ुश नहीँ किया जा सकता इसलिए आज जरुरत है कठोर निर्णय लेने की, जिन मुद्दों पर बोलिए सख़्ती से पालन कीजिए आमआदमी ये देखते है, उन्हें डाइरेक्ट क्या फायदा हुआ ? भाषण से उनको कुछ नही मिलता, आपके कार्यकाल मे क्या आर्थिक फायदा हुआ जिसे देख कर आम आदमी वोटिंग करता है. थोड़ा झुकिये, थोड़ा ठहरिये, सोचिये गलतियां स्वीकारिये, जहाँ आवश्यकता हो वहाँ मेन रोल अदा कीजिये, क्या आपके मंत्रालय के कुछ मंत्रियों के कार्य और सांसदों के अपशब्दों से जनता खुश है…..? अगर हिंदुत्व अपनाना है तो सीना तानकर अपनाइये. Stupid secularism और opportunist Hinduism जनता समझने लगी है | हिन्दुओं के मुद्दों को “कड़ी पत्ते” की तरह उपयोग मत कीजिये जिसे तड़का लगाया और खाते समय निकाल कर फेंक दिया. हिंदुत्व को आत्मसात कीजिये, और सेक्युलरिस्म आप पर जंचता नहीं.

मोदी जी के विदेश दौरों से देश को फायदा हुआ है पर ये बात अगर जनता नहीं समझ पा रही है तो ये मोदी जी ही विफलता है. इसलिए इस हार की जिम्मेदारी भी आप ही लीजिये. मोदी जी मन की बात तो करते है पर संवाद कभी करते ही नहीं. क्या आप ये मानते है की आज मोदी जी को अपने perception management पर ध्यान देने की जरुरत है…..?

अब एक बात सोशल मीडिया के लोगों से कहना चाहुँगा, सोशल मीडिया पर बैठे बैठे आप कुछ भी कह सकते हैं क्योंकि आपकी चहेती पार्टी को लोगों ने नकार दिया. दिल्ली चुनाव के बाद दिल्ली की जनता को गाली देते थे, और अब बिहार की जनता को गाली दे रहे हैं. मेरे ख्याल से किसी भी चुनाव के मेंडेट पर वहां की जनता को अपमानित करना ठीक नहीं है. यहाँ किसी एक पार्टी का दरबारी बन जाने से अच्छा होगा की उसे आत्ममंथन करने के लिए इतना दबाव बनाओ की वे अपनी एक  जिम्मेदारी तय कर सकें. यही सोशल मीडिया का आदर्श रूप होना चाहिए. आप निःस्वार्थ भाव से एक विचारधारा के लिए लिखते हैं सोशल मीडिया में होने के कारण आपके पास अपार डेटा और जानकारी होती हैं जिसके कारण आप चीख-चीख कर राष्ट्रवाद की बात करते हैं पर क्या  ये जानकारियां जनता तक पहुँचती हैं…? और परिणामतः ऐसे चकित करने वाले परिणाम देखने को मिलते हैं.

मोहन भागवत ने आरक्षण पर बोला तो बिहार में लालू ने जमकर इसका दुष्प्रचार किया बिहार की जनता लालू के बहकावे में आ गई और सत्ता लालू को सौप दी. बिहार की जनता यह नहीं समझ पाई की रातोंरात कोई भी सरकार आरक्षण जैसे मुद्दे पर फैसला ले ले और आरक्षण समाप्त कर दे यही झूठ लालु को सत्ता में वापस ले आया है. चुनाव के ठीक पहले ही आरक्षण हटाने का बयान भागवत जी ने क्यों और किसलिए दिया, इसकी भी जांच होना चाहिए अगर वे मोदी को मन ही मन हारते देखना चाहते थे ताकि मोदी उनके “शरणम गच्छामि” हो जाये तो “हम करें राष्ट्र आराधन” क्या वे लालू के सहारे करने की सोच रहे थे ?

केजरीवाल के हम सब घोर विरोधी हैं पर कुछ सीख उनसे भी ले सकते हैं. इस्तीफे वाली गलती के लिए केजरीवाल के कार्यकर्ताओं ने घर घर जाकर जनता से माफ़ी माँगी थी, तब जाकर उनको जबरजस्त मेंडेट मिला था. भारतीय जनमानस में विनम्रता बहुत काम करती है भारत की जनता ऐसी है की वह क्रूर इमरजेंसी के बाद भी इंदिरा को माफ़ कर सकती है वैसे ही उन्होंने आज लालू को भी माफ़ किया है…..क्यों किया……? इसका चिंतन मोदी जी को करना होगा.

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