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फूलो का खिलना इन्सान का मुस्कुराना ही जीवन है

सुप्रभात
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एक बार किसी गुरू ने अपने शिष्य को उपदेश देते हुऐ कहा – बेटा एक गुलाब का फूल लो उसे पंसारी की दुकान पर ले जाओ और उसे घी पर रखो, गुड़ पर रखो किसी भी चीज पर रखो आखिर कार उसे सूॅघों तो वह कैसी – कैसी खुश्बू देगा……..? शिष्य ने कहा गुरूजी – गुलाब को सूॅघोगे तो वह अपने चरित्र को नहीं छोड़ेगा। वह तो अपनी ही खुश्बू देगा, गुरू ने कहा एैसा बनकर ही संसार में रहना चाहिऐ, आप मिलेगें तो सबसे, पुत्र से, पुत्री, पति, माता- पिता सबसे मिलेंगे, पर ब्यौहार एैसा रखिऐ कि अपने परम लक्ष्य को न भूलें, दुनिया में आऐ है तों दुनियादारी में तो रहना ही पड़ेगा। परंतु जिएं तो जिएं इस तरह कि ‘‘गुलाब होकर तेरी महक जमाना चाहे‘‘।

उस गुरू ने शिष्य को अध्यात्मिक उन्नति के लिये गुलाब की भॉति सुन्दर जीवन के लिये राजमार्ग बताया था, परंतु यह शिक्षा तो आपको हमारे सामाजिक जीवन के लिये भी उतनी ही आवश्यक है। आज के इस तनाव भरे जीवन में बीमारियॉ, समाजिक अपराध और राजनीतिक अपराध बढ़ना स्वाभाविक है। क्योकि आज मनुष्य ने स्वयं ही अपना जीवन इतना भारी बना दिया है कि वह समझता है कि बस दुनिया में मुझसे ज्यादा दुःखी कोई नहीं है।

इसीलिए कहा भी गया है कि आदमी जैसा सोचता है वैसा बन भी जाता है। इसलिये हमेशा अपने मन में संुदर विचार लाने का प्रयास करें। यदि अपना जीवन भी सुंदर सजीला, हल्का और स्वभाविक बनाना है, तो इन फूलों से शिक्षा लीजिऐ, फूल हमेशा कॉटों के बीच होते है। वे कॉटो के बीच रहते हुऐ भी खिलते है। किन्तु आप और हम जरा सी कोई समस्या आई नहीं कि चेहरे को जाने अनजाने में मुरझा जाने देते है। हमे यह बात हमेशा ध्यान रखना चाहिए जो लोग गुलाब की तरह सुंदर और भाग्यशाली बनना चाहते है। उनको चाहिए कि वे कॉटों की जिन्दगी में मुस्कुराना सीखें। यदि आप ये समझते है, कि आप अति गंभीर या क्रोधी स्वभाव के होने पर समाज में अपनी धाक जमाएंगे वो यह धारणा निरर्थक है।

हम जीवन में असफलता के दुःख के साथ यदि सफलता की सुखानुभूति को लगाए रख सकें, तो संभवतः दुःख हमारे जीवन में आए ही नहीं। असफलता के क्षणों में यदि हम हॉथ पर हॉथ धरे बैठे रहते है तो हमें समझ लेना चाहिए कि हमने फूलो से कुछ नहीं सीखा है क्योकि फूल का तो संदेश है, हर घड़ी मुस्कुराते रहना।

डाली पर स्थित फूल वादियों में मकरंद लुटाता है, और डाली से अलग होकर भी वह अपने स्वभाव का त्याग नहीं करता है। उसको मसलकर चाहे आप इत्र बनाए अथवा मुरब्बा। तब भी वह अपनी सुगंध के माध्यम से आपको आर्कषित ही करेगा। फूलो का जीवन प्रायः सौहाद्र एवं सोमनस्य बनाऐ रखने वाला जीवन है।

कुछ लोग समाज में अपने को महान सिद्व करने के लिये गली – गली कहते फिरते है कि ‘‘हम तो सच बोलते है चाहे किसी को भला लगे या बुरा‘‘। सच बोलना तो अच्छी बात है ये तो सभी धर्मो के शास्त्रों में भी बताया गया है। किन्तु सत्य की आड़ में वे हमेशा कटु बोल कर दूसरों को आहत करके चले जाते है एैसे सत्यवचन शास्त्री प्रायः समाज में देखने को मिलते ही रहते है।

रविन्द्रनाथ टैगौर ने एक स्थान पर लिखा है ‘‘फूल की पंखुड़ियों को तोड़कर तुम उसका सौन्दर्य ग्रहण नहीं कर सक्ते‘‘ किसी का दिल तोड़ कर क्या हम उसकी सद्भावना के अधिकारी हो सक्ते है। फूलो के गुण धर्म को लोक ब्यौहार का यह सूत्र, यदि समाज अपनाता है तो मेरा विश्वास है कि समाज में ब्याप्त आंधियॉ ब्याधियॉ, हिंसात्मक गतिविधियॉ, हत्याए स्वयं ही रूक जाऐगें । जब सब लोग प्रसंन्न रहने का प्रयास करेगे तो क्रोध, लड़ाई झगड़े का प्रश्न ही नहीं उठता। कितना अच्छा हो मनुष्य का जीवन फूल के अनुरूप ढल जाऐ । इससे हम खुश रहेंगे तो हमारे सम्पर्क में आने वाला भी खुश रहेगा। इसलिये स्वयं समाज को खुश देखना है तो दुःखों को दबाकर भी सदा, फूलों की तरह खिलते रहिए।

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