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बच्चों पर अश्लीलता का बोल-बोला

सुप्रभात
सुप्रभात
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’’बच्चे मन के सच्चे होते है उन्हे जिस सांचे में ढालो,ढल जाते हैं। अश्लीलता का सांचा, जिसकी तरफ बच्चे बहुत तेजी से आर्कषित होते नजर आ रहे है। इस समस्या के लिये जिम्मेदार है तो समाज मे प्रचलित आधुनिक परंपराऐ, एवं आस – पास का माहौल, दोस्तो की संगति, और माता -पिता के आचार – विचार बेहद जरूरी है।

बच्चो पर निगाह रखना बहुत आवश्यक है खासतौर पर बचपन से किशोरवस्था में कदम रखने वाले बच्चे न तो बहुत ज्यादा छोटे है और ना ही बहुत बड़े यदि वो अपने उद्ेश्य से भटक गये तो बीच की यह अवस्था उन्हें उनके विचारों को गंदा करने के लिये पर्याप्त है। जो हमें स्कूलों से लेकर शहर समाज में जगह – जगह देखने को मिल रही है।

अश्लीलता समाज का एक भयंकर अभिशाप है और जितना ही इस पर लगाम लगाया जा रहा है, उतना ही यह बढ़ता जा रहा है, जब से मोबाईल आया है युवाओं की जेब में अश्लीलता एक पर्सनल प्रापर्टी बन गया है।
आज कल लोग अपने मोबाईल पर अश्लील क्लििपिंग डाउन लोड करके रखते है।
तनहाई के समय मौका पाकर क्लिपिंग के सहारे अपना टाइम पास करने के लिये जाने अनजाने यह भनक बच्चों को लग जाये तो वो भी चुपके से इसे देखना चाहते है। यदि बच्चा ज्यादा होशियार है तो मोबाईल में ’सेव’ की हुयी उस अश्लील क्लिपिंग तक पहुॅंचना उसके लिये बॉए हॉथ का खेल है।

सबसे बड़ा अश्लीलता का माध्यम तो अब इंटरनेट हो गया है प्रायः स्कूली बच्चे दोपहर में स्कूल से आने के बाद ’’सायबर केफे’’ में उनकी भीड़ देखी जा सकती है जिसमें कई तो स्कूल प्रोजेक्ट बनाने के बहाने इन अश्लील वेबसाईट खोल कर देखते है, और तो और अब घर में भी वेबसाईट खोलकर देखने लगते है।

इससे भी बड़ा अश्लीलता,वेबकॉक आ गया है, घरों मेे इंटरनेट कनेक्शन तो है ही साथ में वेबकॉंम है तो लड़के लड़कियॉं मे लाईव अंगप्रदर्शन भी होने लगे हैं, और अब इससे भी आगें की तकनीक आ गई है 3 जी इसके लॉंच होते ही अश्लीलता अब हर युवा की जेब में होगी, वे जब चाहे तब अपनी मनमानी पर ऊतारू हो जाऐगे।

हर चीज के दो पहलू होते है एक अच्छा एक बुरा यही बात इंटरनेट के लिये भी लागू होती है यदि इसका उपयोग अपना ज्ञान बढ़ाने के लिये किया जाये तो ज्यादा अच्छा साबित होगा यदि गलत इस्तेमाल किया जाय तो अच्छे से अच्छा इंसान को बिगाड़ने के लिये इतना मटेरियल काफी है। जिन घरों में कम्प्यूटर के साथ इंटरनेट कनेक्शन है उन घरों में बच्चों पर ज्यादा निगाह रखने की जरूरत है
दीवारों,चौराहो पर लगे हुये होडिग्स टी.वी. अखबारों में छपने वाले अश्लील विज्ञापन भी बच्चों की मानसिकता को प्रभावित करते है। अपने समान की बिक्रीके लिये आजकल विज्ञापनों को अश्लील बनाकर प्रस्तुत किया जाता है जिसका असर बच्चों के मन मस्तिक पर पड़ता है।

बच्चे अक्सर अपनों से बड़े की नकल करते है अधिकांश बच्चे उम्र से पहिले खुद को बड़ा समझने लगे है उन्हे दूसरों की नकल करना ज्यादा पसंद होता है पहले ये बात बड़ो की सिगरेट,गुटखे और शराब जैसी समस्याओं तक सीमित था लेकिन अब इस स्तर से आगें बढ़ते हुये बच्चों ने अश्लीलता तक कदम पहुॅंचा दिया जिसका सीधा असर उनके व्यक्तित्व और बौद्विक विकाश पर पड़ता है।

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