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श्रद्वा एवं विश्वास का एक धागा है – रक्षाबंधन

सुप्रभात
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आज के दौर में राखी केवल भाई एवं बहन के रिश्तों स्वीकार करना ही नहीं है। बल्कि राखी का अर्थ यह है कि जो यह घागा श्रद्धा व विश्वास के साथ बांधता है। और राखी बंधवाने वाला भी, दोनों एक दूसरे के दायित्वों को स्वीकार करते है, व उस रिश्तें को पूरी निष्ठा से निभाने की कोशिश करते है। वही सही मायने में रक्षाबंधन है।

आज के बदलते इस दौर में इस पर्व की पवित्रता में कोई कमी नहीं आई है। बल्कि इसका महत्व और बढ गया है। आज के सीमित परिवारों में कई परिवार एैसे भी है, जिसमे केवल दो बहने या दो भाई ही होते है। इस स्थिति में वे रक्षा बंधन के त्यौहार पर महसूस करते है कि वे इस पर्व को किस प्रकार मनायेगें। उन्हें कौन राखी बांधेगा , या फिर वे किसे राखी बांधेगी। इस प्रकार कि स्थिति सामान्य रुप से हमारे आसपास देखी जा सकती है।

भारत में स्थान बदलने के साथ ही इस पर्व को मनाने की परम्परा भी बदल जाती है, भारत के राजस्थान राज्य में इस रामराखी और चूडा राखी बांधने की परम्परा है। राम राखी केवल भगवान राम को ही बांधी जाती है, व चूडा राखी केवल भाभियों की चूडियों में ही बांधी जाती है। यहां राखी बांधने से पहले राखी को कच्चे दूध से अभिमंत्रित किया जाता है, और राखी बांधने के बाद भोजन किया जाता हैं।

उतरांचल में इसे श्रावणी नाम से मनाया जाता है भारत के ब्राह्माण वर्ग में इस दिन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। क्योंकि इस दिन यज्ञोपवीत धारण करना शुभ माना जाता है। इस दिन ब्राह्माण वर्ग अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते है। अमरनाथ की प्रसिद्ध धार्मिक यात्रा भी रक्षा बंधन के दिन समाप्त होती है।

यह रेशमी डोर से बनाई जाने वाली राखी – तमिलनाडू, केरल और उडीसा के दक्षिण में इसे अवनि अवितम के रुप में मनाया जाता है। इस पर्व का एक अन्य नाम भी है, इसे हरियाली तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन से पहले तक ठाकुर झूले में दर्शन देते है, परन्तु रक्षा बंधन के दिन से ये दर्शन समाप्त होते है।
भारत त्यौहारों का देश है. दिवाली, होली, दशहरा और रक्षा बंधन यहां के कुछ एक प्रसिद्ध त्यौहार है। इन त्यौहारों में रक्षा बंधन विशेष रुप से प्रसिद्ध है। ग्रंथो एवं इतिहासों में रक्षाबंधन का प्रमाण मिलता चला आया है। हमारे यहां सभी पर्व किसी न किसी कथा या किवदन्ती से जुडे हुए है। रक्षा बंधन का पर्व भी ऐसे ही कुछ कथाओं से संबन्धित है। रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है………?

पुराणों के अनुसार रक्षा बंधन पर्व लक्ष्मी जी का बली को राखी बांधने से जुडा हुआ है। कथा कुछ इस प्रकार है। एक बार की बात है, कि दानवों के राजा बलि ने सौ यज्ञ पूरे करने के बाद चाहा कि उसे स्वर्ग की प्राप्ति हो, राजा बलि कि इस मनोइच्छा की भनक इन्द्रदेव को होने पर, इन्द्रदेव का सिहांसन डोलने लगा।

घबरा कर इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में गयें। भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर, ब्राह्माण वेश धर करके, राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंच गयें। ब्राह्माण बने श्री विष्णु ने भिक्षा में तीन पग भूमि मांग ली। राजा बलि अपने वचन पर अडिग रहते हुए, श्री विष्णु को तीन पग भूमि दान में दे दी। वामन रुप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग ओर दूसरे पग में पृ्थ्वी को नाप लिया। अभी तीसरा पैर रखना शेष था। बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। अगर राजा बलि अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होगा। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के आगे कर ही दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए भगवन। वामन भगवान ने ठीक वैसा ही किया, श्री विष्णु के पैर रखते ही, राजा बलि परलोग पहुंच गया।

बलि के द्वारा वचन का पालन करने पर, भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न्द हुए, उन्होंने आग्रह किया कि राजा बलि उनसे कुछ मांग लें। इसके बदले में बलि ने रात दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांग लिया। श्री विष्णु जी भी अपने वचन का पालन करते हुए, राजा बलि को अपना द्वारपाल बनना पडा। इस समस्या के समाधान के लिये लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय सुझाया। लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे राखी बांध कर उसे अपना भाई बनाया और उपहार स्वरुप अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आई। जिस दिन का यह प्रसंग है, उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। बस उस दिन से ही रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाने लगा।

राखी से जुडा हुआ एक प्रसंग महाभारत में भी पाया जाता है। प्रंसग इस प्रकार है। शिशुपाल का वध करते समय कृ्ष्ण जी की तर्जनी अंगूली में चोट लग गई, जिसके फलस्वरुप अंगूली से खून बहने लगा। खून को रोकने के लिये द्रौपदी ने अपनी साडी की किनारी फाडकर, श्री कृ्ष्ण की अंगूली पर बांध दी थी। इसी ऋण को चुकाने के लिये श्री कृ्ष्ण ने चीर हरण के समय द्वौपदी की लाज बचाकर इस ऋण को चुकाया था। जिस दिन की यह घटना है उस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा थी।

ठीक इसी अवसर पर वर्तमान में भी एक सामाजिक लड़ाई लड़ने का मौका पुनः आया है। वह है देश को भ्रष्टाचार जैसी समस्या से मुक्ति दिलाने के लिये हमारा नेता अन्ना हजारे की कलाई मे भी एक एैसा ही धागा बॉधा जाना चाहिऐ। और समाज व देश की लाज बचाने वाले इस सामाजिक नेता का ऋण हम इसी प्रकार चुका सक्ते है।

यह पर्व सांप्रदायिकता और जाति – वर्ग की दिवार को गिराने में भी मुख्य भूमिका निभा सकता है। जरुरत है तो सिर्फ एक कोशिश की। मुगल शासक ने भी रक्षाबंधन को स्वीकार किया था। बात उस समय की है, जब राजपूतों और मुगलों की लडाई चल रही थी। उस समय चितौड के महाराजा की की विधवा रानी कर्णवती ने अपने राज्य की रक्षा के लिये हुमायूं को राखी भेजी थी। हुमायूं ने भी उस राखी की लाज रखी और स्नेह दिखाते हुए, उसने तुरन्त अपनी सेना वापस बुला लिया था। इस एतिहासिक घटना ने भी भाई बहन के प्यार को मजबूती प्रदान किया था।

कलाई मे रक्षासूत्र का बंधन एक दूसरे के करीब लाता है। उनके आपसी मतभेद को मिटाता है। आधुनिक युग में समय की कमी ने रिश्तों में एक अलग तरह की दूरी बना दी है। जिसमें एक दूसरे के लिये समय नहीं होता, इसी कारण परिवार के सदस्य भी आपस में बातचीत नहीं कर पाते है। संप्रेषण की कमी, मतभेदों को जन्म देती है, और बात – बात में गलतफहमियों को स्थान मिलता जाता है।

वर्तमान समाज में हम सब के सामने जो सामाजिक कुरीतियां सामने आ रही है. उन्हें दूर करने में रक्षा बंधन का पर्व सहयोगी हो सकता है। आज जब हम बुजुर्ग माता – पिता को सहारा ढूंढते हुए उन्हें वृ्द्ध आश्रम की तरफ जाते हुए देखते है, तो अपने विकास और उन्नति पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ पाते है। इस समस्या के समाधन स्वरूप राखी पर माता-पिता को राखी बांधना, पुत्र-पुत्री के द्वारा माता पिता की जीवन भर, हर प्रकार के दायित्वों को निभाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले कर , इस प्रकार समाज की इस अहंम समस्या का सामाधान किया जा सकता है।

इस प्रकार रक्षा बंधन को केवल भाई बहन का पर्व न मानते हुए हम सभी को अपने विचारों के दायरे को बढ़ातेे हुए, विभिन्न क्षेत्रों में इसके महत्व को समझना होगा। एक तरीके से देखा जाए तो, सभी के बीच अपनापन लिये स्वयं को एक रिश्ते के बंधन मे बॉधने का ये एक पर्व है। और बंधन के इस तरीके के कारण ही हमारी भारतीय संस्कृति दुनिया की अन्य संस्कृतियों मे सबसे अलग पहचान बनाती है।

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