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बिहार की राजधानी पटना की हालत ख़राब “दोषी कौन ”

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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बिहार की राजधानी पटना कचरे के ढेर पर

आज दिनांक १६ अक्टूबर के जागरण संस्करण (पटना ) में प्रथम पृष्ठ पर एक खबर छपी है “कचरे के ढेर पर हैं हम सभी : सम्राट (चौधरी )
बिहार के नगर विकास एवं आवास मंत्री हैं सम्राट चौधरी जो पटना के नगरवासियों समेत अपने को भी कचरे के ढेर पर बैठा महसूस कर रहें हैं , गनीमत है राज्य का विकास मंत्री कम से कम यह कबूल तो कर रहा है की राजधानी पटना शहर आज कचरा का ढेर बन कर रह गया है यही नहीं नगर विकास मंत्री ने बिहार के उन तमाम शहरों को भी कचरे का ढेर ही बताया . और साथ साथ उन्होंने अपने को इस बाबत असहाय भी बताया “पटना नगर निगम ” विभाग जिस पर पटना शहर की सफाई का जिम्मा है उसको चौधरी ने उलझा हुवा एवं संकट में बताया . लेकिन यह नहीं बताया की इस उलझन को सुलझाएगा कौन और संकट को दूर कौन करेगा . शायद चौधरी जी को यह नहीं मालूम की नगर निगम ना संकट में हैं ना ही उलझा हुवा है वह विभाग तो नगर निगम के बजाये उसका नया नाम “मगर निगम है ” जिसका मुह मगर जितना बड़ा है और उस मुह में जितना धन नगर निगम के खाते में आता है उसको लील जाता है . शहर एवं गली मुहल्लों की सफाई कागजों पर तो हो जाती है वह चाहे नाले हों या शहर का गली मोहल्ला सबकी सफाई के बिल का भुगतान तो हो जाता है पर जमीनी हकीकत क्या है शहर साफ़ हुवा भी है या नहीं इसका जवाब तो खुद शहरी विकास मंत्री जी ही दे रहें हैं . सबसे पहले नगर निगम ने आवंटित धन को कहाँ खर्च किया इसकी जांच होनी चाहिए और जब सरकार को ऐसा लगता है की नगर निगम शहर के कचरे के प्रबंधन एवं शहर की सफाई करने में नाकामयाब है तो क्यों नहीं इस विभाग को ही अविलम्ब बंद कर दिया जाता . जनता को यह बता दिया जाता की अपने गली मुहल्लों की साफ़ – सफाई का काम अब आम जनता करेगी निगम नहीं . एक बार ऐसा सरकार फरमान लाए तो सही, फिर जनता अपने शहर को साफ़ भी कर लेगी और कचरे का प्रबंधन भी कर लेगी बहुत सारी स्वयं सेवी संस्थाएं तैयार बैठी हैं इस काम को करने के लिए , लेकिन फिर सरकार को फंड उन संस्थाओं को आवंटित करना पड़ेगा . ऐसा प्रयोग किया जा सकता है नगर निगम को एक सप्ताह का नोटिस देकर ऐसा कानून बनाकर की ,किसी निगम को चलाना है या नहीं चलाना है ऐसा निश्चय तो सरकार ही कर सकती है यह सरकार का ही तो काम है जब सरकार देख रही है की निगम अपना काम कर ही नहीं रही है और नगरवासी बदबूदार गंदगी में रहने को मजबूर है फिर ऐसे विभाग को बनाये रखने का क्या लाभ जनता एवं प्रदेश को है ? अभी छठ पर्व को केवल १० दिन ही बाकी रह गए है और शहर की सफाई का यह हाल है सभी जानते हैं बिहार में छठ पर्व की कितनी महानता है और व्रती लोग इसको कितनी शुद्धि से करते हैं ऐसे में जब वे अपने -अपने घरों से गंगा मईया में अरघ देने के लिए पहुचेंगे और व्रत की स्थिति में गंदगी वाले रास्तों ,गली मुहल्लों से होकर गुजरेंगे तो उनके मन पर क्या बीतेगी? कभी इसका ख्याल नगर विकास मंत्री एवं नगर निगम को आया भी है क्या ? अगर यही ख्याल होता तो निगम यूँ हाथ पर हाथ धर के बैठा ना रहता और सरकार यु मूक दर्शक और अपने आप को असहाय नहीं समझती अब जब पर्व सर पर है और ऐसे वख्त में नगर विकास मंत्री का यह कहना की वे सफाई के लिए कोई अलग बंदोबस्त करने वाले हैं यह उनका बयां कहाँ तक तर्कसंगत और जनहित में है क्या इतने कम समय में एक अलग विभाग को खड़ा किया जा सकता है क्या यह संभव है? .मेरे समझ से नहीं अभी तत्काल जरूरत है नगर की साफ़ सफाई प्राथमिकता के आधार पर कैसे सुनिश्चित की जाये . एक ही विकल्प है इस काम को करने का किसी स्वयं सेवी संस्थाओं को सौपना और संसाधनों का जुगाड़ सरकार द्वारा किया जाना अगर नगर विकास मंत्री कोई ऐसा ठोस कदम उठाएंगे तो नगर वासियों एवं छठ व्रतियों को पर्व के दौरान गंदगी से निजात मिल पाएगी वर्ना जैसे जल जमाव की समस्या बारिश खत्म होने के बाद अपने आप समाप्त हो गयी उसी तरह छठ पर्व बीतने के बाद जनता सरकार को कोसती हुयी चुप हो जाएगी सरकार भी चुप चाप सब देखेगी और सरकार का ऐसा ब्यवहार प्रदेश एवं राजधानी पटनवासियों की जनता के साथ बहुत बड़ा अन्याय ही कहा जायेगा . कृपया सरकार में बैठे मुख्य मंत्री शहरी विकास मंत्री , नगर निगम के अधिकारीगण , कर्मचारीगण जनता की तकलीफों एवं छठ पर्व की महानता का ख्याल करते हुए शहर की सफाई अविलम्ब कराएं .

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