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विकल्प के नाम पर तीसरे अथवा चौथे मोर्चे की वकालत

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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दैनिक जागरण के ३ जून के अंक में प्रोफेसर एस. शंकर का “पुराने प्रपंच का नया पन्ना ” शीर्षक का लेख पढ़ा मैं उनके विचारों से शत- प्रतिशत सहमत हूँ . पश्चिम बंगाल के विधान सभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की बेजोड़ नेता श्रीमती ममता बनर्जी की अभूतपूर्व जीत हुयी और पूर्ण बहुमत प्राप्त कर उन्होंने सरकार बनायीं उनके शपथ ग्रहण समारोह में क्षेत्रीय पार्टियों के मुखिया इकठ्ठे हुए और फिर से तीसरे चौथे मोर्चे की बात चली उनके विचार से राष्ट्रिय पार्टियां बी . जे .पी एवं कांग्रेस के अलावा बाकि पार्टी मिलकर एक मोर्चा बनाया जाये और सत्ता में काबिज हुवा जाये लेकिन शायद वे भूल रहे हैं की उनका इकठ्ठा होना ही संभव नहीं है क्यूंकि कोई भी क्षेत्रीय दल हो उसका मुखिया अपने आप को ही बड़ा नेता समझता है और आज कल पार्टी का हाल यह है की ब्यक्ति विषेश के नाम पर ही पार्टी है उदाहरण के लिए तृणमूल मतलब ममता बनर्जी ,जदयू मतलब नितीश कुमार , सपा मतलब मुलायम सिंह यादव आज राजीनीति में येन केन प्रकारेण केंद्र की सत्ता में काबिज होकर देश का धन लूटना है, राजनीती आज समाजसेवा नहीं और जब केवल सत्ता के लिए राजनीती करनी है फिर देश और देश की जनता जाये भांड में चुनावों में धन बल और बाहुबल आज भी हावी है इतना ही नहीं आपराधिक चरित्र का होना नेता बनने की सबसे बड़ी क़ाबलियत है ७० के दशक में लोकनायक जयप्रकाश के नेतृत्व में सम्पूर्ण क्रांति का नारा बुलंद हुवा था , जो इंदिरा गांधी के तानाशाही रवैया के चलते ही हुवा इस लोकतंत्र ने एक समय इमरजेंसी को भी झेला है जो इंदिरा की तानाशाही की ही देन थी जिस परिवर्तन की कल्पना से जे पी ने क्रांति की थी वह तो नेताओं की महत्वकन्क्षा की भेंट चढ़ गयी आज लालू यादव ,नितीश कुमार मुलायम सिंह यादव ये सभी नेता अपनी अपनी दुकान खोल के बैठ गए ये सभी जयप्रकाश नारायण की क़ुरबानी का ही फल आज खा रहें हैं जयप्रकाश का सपना तो तानाशाह विहिन लोकतंत्र की स्थापना करने का था पर इन्होने पार्टी मतलब अपने परिवार की पार्टी और परिवार वाद को ही बढ़ावा दिया सपा एवं राजद ने आज इंदिरा परिवार का ही कांग्रेस में दबदबा है, आलाकमान के दम पर ही कांग्रेस पार्टी चल रही है और इसीका नतीजा है की कांग्रेस पार्टी अब खत्म होने के कगार पर है अगर राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया जैसा की मिडिया में भी खबर छपी है तो सचमुच में खत्म हो जाएगी कांग्रेस क्यूंकि राहुल गांधी की राजनितिक क़ाबलियत इतनी ही है की वे सोनिया के बेटे हैं अनुभव के नाम पर उनके पास कुछ भी नहीं उनमें सबको साथ लेकर चलने की क़ाबलियत तो नहीं के बराबर है. पिछले दिनों असम के एक नेता जो अब कांग्रेस छोड़ कर बी जे पी में शामिल हो गए हैं , टेलीविजन पर कह रहे थे की राहुल गांधी ५ मिनट से ज्यादा बात भी नहीं कर पाते फिर वे कुत्ते से खेलने लगते हैं और सभा में उपस्थित लोगों के चाय पानी के लिए कोई बिस्कीट वगैरह प्लेट में रखा होता है तो उनका कुत्ता प्लेट में से खा लेता है और वही बिस्किट राहुल भी खाने लगते हैं और चाहते हैं की बाकि लोग भी उसी को खाएं इसमें कितनी सच्चाई है यह तो ऐसा कहने वाले नेता जाने मैं तो इसलिए यह लिख रहा हूँ की इस बात से यह पता चलता है की राहुल गांधी अपने नेताओं के प्रति कितने सीरियस हैं और इसमें दो राय नहीं की जिस दिन उनको पार्टी का अध्यक्ष बना दिया गया जो की अब जल्द ही घोषणा होने की उम्मीद है इसके बाद तो उन की पार्टी के कई नेता कांग्रेस छोड़ देंगे कांग्रेस पार्टी जो इस देश की सबसे पुरानी पार्टी है उसका हश्र ऐसा इसलिए हुवा की उनकी पार्टी में अधिनायक शाही है पार्टी के भीतर भी लोकतंत्र उतना ही प्रासंगिक है जितना देश के लिए. हम अपने को विश्व का सबसे महानतम लोकतंत्र होने का दावा करते हैं लेकिन वास्तव में अपने देश के नेता एवं पार्टियां देश में मात्र चुनाव कराने, सरकार बनाने और ५ साल के लिए निश्चिन्त हो जाने के अलावा कुछ भी करता हुवा दिखाई नहीं देतीं , देश की एकता, अखंडता, प्रभुसत्ता कैसे कायम रहे इसके लिए कैसे काम करना है क्या काम करना है ऐसा नहीं दीखता.पार्टियां तो समाज को बांटने, लोगों को आपस में लड़ाने का नाम ही आज राजनीती करना समझे बैठीं है ,निस्संदेह जनता भी अब पहले की तरह मूरख और राजनीती से अनभिज्ञ नहीं रही जनता को अपने अधिकारों का ज्ञान आज बढ़ा है और जनता पहले से ज्यादा जागरूक भी हो गयी है लेकिन जनता के सामने आज सबसे बड़ी समस्या है दो या तिन भ्रष्टों में से किसी एक को चुनना और इसके लिए ही जनता बाध्य है ऐसा माहौल ही पार्टियों एवं नेताओं ने बना रखा हैजरूर वर्तमान मोदी सरकार और ज्यादा काम जनता का कर सकती थी पर ४४ सदस्यों वाले कांग्रेस ने कुछ और दलों का साथ पाकर सांसद को चलने नहीं दिया कितने ही महत्वपूर्ण बिलों को पास नहीं होने दिया .यह समझ के परे है की पूर्ण बहुमत की सरकार भीं देश की जनता का काम नहीं कर सकती अब जरुरत है कुछ ऐसे संविधान को संशोधित करने की जिसमें पूर्ण बहुमत वाली सरकार खुल के काम कर सके नहीं तो २ साल गुजर गए जी एस टी बिल पारित नहीं हो सका जिस बिल को पिछली कांग्रेस की सरकार ने ही लाया था और जिससे भारतीय ब्यापार में कितनी बढ़ोतरी होनी थी लोगों को रोजगार मिलना था पर ऐसे महत्वपूर्ण बिलों एवं मुद्दों को भी हंगामे के भेंट चढ़ा दिया चंद कांग्रेसियों ने आखिर देश की जनता कांग्रेस मुक्त भारत क्यों ना बनाए, अभी पंजाब एवं उत्तरप्रदेश जो दो बड़े राज्य हैं उनमें चुनाव होना है अगर कांग्रेस ने अपना रवईया नहीं बदला तो कांग्रेस का सफाया होने से कोई रोक नहीं सकता और देश को कोई विकल्प भी क्षेत्रीय पार्टियां दे नहीं सकती अतः बेहतर होगा सिद्धांतों और मुद्दों की राजनीती नेता एवं पार्टियां करें देश हित में इकठ्ठे हों केवल सत्ता में आने के चक्कर में ना रहें तभी भारतवर्ष एक उदहारण विश्व में स्थापित कर पाएगा और अनेकता में एकता का सपना पूरा होगा देश का समग्र विकास होगा विश्व में भारतवर्ष का दबदबा चलेगा विश्व में सबसे शक्तिशाली देश बनकर उभरेगा ऐसा कुछ पाने के लिए ही ये नेता काम करें तो यही उनके हित में भी होगा और इसीसे जनता का हित भी होगा.
अशोक कुमार दुबे

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