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एक तरफ तो पीएम कह रहें हैं बारहवीं पंचवर्षीय योजना में ग्रामीणों के स्वास्थ्य के लिए बजट में १.४% से बढाकर २.५% किया जायेगा दूसरी तरफ यह भी कह रहें हैं स्वास्थ्य मूल रूप से राज्य का विषय है , लगता है और योजनाओं की तरह यह भी राज्य और केंद्र के झगडे में तब्दील होकर रह जायेगा और पीएम की यह घोषणा भी मात्र चुनावी घोषणा बनकर हीं रह जाएगी क्यूंकि जब से यूपी में चुनाव शुरू हुवा है रोज नयी नयी घोषणायें सरकार कर रही है जो की अपने आप में चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन हीं कहलायेगा अगर सरकार के मन में जरा भी जनता के प्रति दायित्व का अनुभव होता तो अन्ना हजारे जैसे वृद्ध ब्यक्ति को धरना प्रदर्शन नहीं करना पड़ता जब से कांग्रेस सरकार सत्ता में आई है कमर तोड़ महंगाई हुयी है और पेट्रोल का दाम तो कितने बार बढ़ा इसकी गिनती अब लोग भूल गए हैं और पेट्रोल के दाम बढने से सभी जरुरत की चीजों का दाम अपने आप बढ़ जाता है अपने देश में मुनाफा वसूली पर कोई रोक टोक नहीं जो जितना मर्जी मुनाफा कमा सकता है ऐसी बाजार ब्यवस्था हमारे देश की सरकार ने बना रखी है उसमे साधन विहीन लोग ज्यादा संकट का सामना करते हैं और ऐसे लोगों की संख्या अपने देश में ६० से ७० प्रतिशत है अतः सरकार को चाहिए की वितरण प्रणाली को ठीक करे क्यूंकि सारा खेल वितरण प्रणाली में लगे लोगों द्वारा बिगाड़ा जा रहा है और यह स्वास्थ्य सेवा में सुधार भी उसी वितरण प्रणाली की भेंट चढ़ जायेगा दवाएं जो सरकार द्वारा निर्गत होंगी वह जरुरत मंद को मिलेंगी नहीं जब तक सरकार जवाबदेही नहीं तय करेगी कोई भी सुधार का काम इस देश में लागु नहीं किया जा सकता हाँ सिटिजन चार्टर अगर सख्ती से लागु होगा तो जरुर सुधार की उम्मीद की जा सकती है स्वास्थ्य के छेत्र में अभी बहुत कुछ करना बाकी है अभी गाँव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी सभी जगह नहीं उपलब्ध है पहले उसका प्रबंध ज्यादा जरुरी है अगर स्वास्थ्य केंद्र ही नहीं होगा तो दवाएं मुफ्त में किसको दी जाएगी ?
सरकार को इसको प्राथमिकता देना चाहिए दवाओं को मुफ्त बांटने से पहले बांटने वाली जगह यानि स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करने पर विचार करना ज्यादा जरुरी है .
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