Menu
blogid : 8115 postid : 873381

किसान की आत्महत्या का टेलीविजन से सीधा प्रसारण

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
  • 166 Posts
  • 493 Comments

कल यानि २२ अप्रेल २०१५ को दिल्ली के ऐतिहासिक स्थल जंतर -मंतर पर आम आदमी पार्टी द्वारा किसान रैली की गयी हजारों की संख्या में “आप ” समर्थकों के आलावा आप के विधायक, मंत्री और देश का टेलीविजन मिडिया समूह सबके सामने दोपहर को एक अजीबोगरीब घटना देखने को मिली जिसको पूरे भारतवर्ष में देखा गया प्रशासन तंत्र जिनके जिम्मे कानून ब्यवस्था का काम था वे भी देखते रहे , आत्महत्या का सीधा प्रसारण टेलीविजन कैमरे करते रहे यहाँ तक की दिल्ली के मुख्य मंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल भी देखते रहे और भाषण भी देते रहे और राजस्थान के गजेन्द्र सिंह ने अपनी बात एक पर्चे पर लिख कर आत्महत्या कर लिए . इस दुखद अमानवीय दुर्घटना पर सभी ने खेद ब्यक्त किया , आज जिस किसान के लिए प्रमुख बिपक्षी दल कांग्रेस भी रैली कर रहा है किसानों से मिल रहा है सरकार भी कह रही है की उनको किसानों का दुःख दर्द पता है और वह हर संभव सहायता देने का प्रयास करेगी , बस देश के किसानों को यह पता नहीं की यह सहायता किसानों को कब मिलेगी? , क्या देश की सरकार तथा देश की अन्य पार्टियों के नेताओं को किसी और आत्महत्या का इन्तेजार है , जब गजेन्द्र ने गले में फांसी का फंदा डाला तो उस दृश्य को टेलीविजन पर दिखाया जा रहा था यह कैसी विडंबना है, कितना संवेदनहीन समाज है कैसे लोगों की जमात उस रैली में आई थी कोई और नहीं तो कम से कम टेलीविजन कैमरा चलानेवाला ब्यक्ति ही बजाय उस बीभत्स दृश्य
को फिल्माने / खीचने के, उस गजेन्द्र को ऐसा करने से रोकने जाता तो क्या चैनल की टी. आर .पी घट जाती क्या पुलिस वहां जो ड्यूटी पर तैनात थी उसका कोई कर्तब्य नहीं था, उस भीड़ में क्या कोई भी संवेदनशील ब्यक्ति नहीं था . यह सब क्या दर्शाता है ? यह एक गंभीर प्रश्न है . आज तक हमलोग गावं में किसान आत्महत्या कर रहा है यह सुनते थे पर कल तो जो हुवा वह बड़ा अमानवीय और असहनीय लगा , दिल ने कहा काश ! मैं वहां उपस्थित होता तो जरूर ऐसा होने ना देता पर अफ़सोस मैं तो दूर पटना बिहार में बैठा हूँ , बेहद अफ़सोस तो यह सुन कर हो रहा है जब कोई आप नेता यह कहता है की क्या अरविन्द केजरीवाल पेड़ पर चढ़कर उसकी जान बचाते शायद वह नेता यह भूल रहें हैं कुछ महीने पहले जब यही अरविन्द केजरीवाल दिल्ली की गलियों में बिजली के खम्भे पर चढ़कर लोगों का बिजली कनेक्शन जोड़ते थे तब क्या थे? यही अरविन्द केजरीवाल ! और अब क्या बन गए हैं? जिन्होंने शपथ ग्रहण के दिन अपने विधायकों से कहा की जीत का अभिमान न करना और आज वही अरविन्द कितने अभिमान में हैं उनके विधायक कितने अभिमान में हैं यह पूरा देश देख रहा है अरविन्द ने देश को वर्तमान गन्दी राजनीती से निजात दिलाने की बात की थी और कर क्या रहें? हैं यह उनको भी पता होगा इसको सारा देश भी देख रहा है कल की घटना पर उनके नेताओं के घटिया बयानों को लोगों ने सुना है अरविन्द केजरीवाल पहले भी किसी कानून ब्यवस्था की समस्या के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेवार ठहराते रहें हैं और यही बयान देते रहें हैं की पुलिस उनके अधीन नहीं ,अतः दिल्ली की कानून ब्यवस्था के लिए केंद्र सरकार ही जिम्मेवार है, कुछ हद तक उनकी बात भी सही लगती है. कानून ब्यवस्था को सही रूप से चलाने के लिए पुलिस बल तो सरकार के पास होनी ही चाहिए . कहीं ऐसा तो नहीं की केजरीवाल और उनके साथ बैठे आप के दीगर नेता कल की दुर्घटना को इसलिए होते रहने दिए की इसका ठीकरा दिल्ली की पुलिस और केंद्र सरकार पर फूटेगा और केंद्र सरकार यह निर्णय लेने के लिए बाध्य होगी की दिल्ली के मुख्य मंत्री के अधीन दिल्ली पुलिस भी हो लेकिन क्या यह सब करने के बाद मरनेवाला किसान की जिंदगी वापस मिल सकती है ? और तो और मिडिया वाले उस गावं में भी गए जहाँ का गजेन्द्र रहनेवाला था पर कोई नेता उस परिवार को सांत्वना देने या कोई आर्थिक मदद देने अब तक नहीं पंहुचा . पिछले दिनों असमय बारिश और ओला गिरने से कृषि की फसल का नुकसान हुवा उस विषय पर आंदोलन और रैली तो देश की सभी पार्टियां कर रहीं हैं क्या कोई पार्टी अपने पार्टी फंड से ही किसी किसान की मदद किया, चुनाव में तो यही नेता करोड़ों खर्च करते हैं क्या वे उसका दसवां हिस्सा भी गरीब लोगों की मदद के लिए नहीं कर सकते क्या उनके कर्तब्यों की इसीसे इतिश्री हो जाती है के देश में उनकी नहीं मोदी की सरकार है अतः इस सब के लिए केवल केंद्र सरकार जवाबदेह है जब सारा काम सरकार ने ही करना है तब तो अगले चुनाव तक भी किसानों की दशा में कोई सुधार नहीं होना है ,
आज खबर यह भी छपी है की सांसदों को सालाना मिलने वाले फंड को ५ करोड़ से बढाकर २५ करोड़ कर दिया जाए क्या सरकार यह आंकड़ा देश के समक्ष रखेगी , की अब तक जो फंड मिला उससे कितने गावं का भला इन सांसदों ने किया . नेताओं सावधान हो जाओ वर्तमान स्थिति को बदलना होगा राजनीती को लोकनीति बनाना होगा तभी इस देश में लोकतंत्र बचा रहेगा वर्ना तुम भी सुरक्षित नहीं रह सकोगे देश में नक्सलवाद ,उग्रवाद ही बढ़ेगा मजबूर लोग हथियार उठा लेंगे और देश की सेना तथा अर्धसैनिक बल यूँ ही भेड़- बकरियों की तरह मारे जाते रहेंगें सरकारें आएगी जाएँगी पर समाज से संवेदनशीलता नहीं खत्म होनी चाहिए आज वही हो रहा है केवल कोरे बयानों से, सभाओं से रैलियों से किसान का भला नहीं होनेवाला . अच्छा होता इस गंभीर विषय पर बहस होती और कुछ किसानों के प्रति न्याय होता दिखाई देता. नेता आरोप प्रत्यारोप से दूर कोई अच्छी पहल करते दिखाई देते तो इस देश का किसान भी एक दिन समृद्ध होता दिखाई देता आशा है वह दिन भी जरूर आएगा क्यूंकि उम्मीद पर ही दुनिया कायम है .

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply