Menu
blogid : 8115 postid : 705758

क्या भारतीय मीडिया को और आजाद होना चाहिए ?

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
  • 166 Posts
  • 493 Comments

एक तरफ तो अपना देश अपने आप को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहने का दावा करता है और इतने विशाल लोकतंत्र में मीडिया ही आजाद ना हो, फिर उसे लोकतंत्र क्यूँ कर कहेंगे ?
क्यूंकी मिडिया द्वारा जनता को अभिब्यक्ति कि स्वतंत्रता मिलती है लोग अपनी बात, अपनी कठिनाई, अपनी समस्यायों को मिडिया के माध्यम से ही सरकारों और नेताओं तक पहुँचाते हैं और मिडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तभ भी कहा गया है , ऐसे में वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स २०१४ के ताजे सर्वे में भारतीय मिडिया को १४०वे पायदान पर दिखाया जाना-क्या दर्शाता है ? हमारे देश कि मिडिया कितनी आजाद है और इस देश कि जनता को अभिब्यक्ति कि कितनी सवतंत्रता इस देश का कानून ,इस देश का संविधान जनता को दे रहा है .पिछले दिनों जब सत्ता में काबिज कांग्रेस पार्टी के नेताओं के भ्रष्टाचार के किस्से मिडिया में दिखाए जाने लगे और जनता द्वारा प्रतिक्रिया सवरूप नेताओं के खिलाफ लिखा जाने लगा तो सरकार भी सोशल मिडिया पर ही पाबंदी लगाने कि सोचने लगी और कुछ पाबंदियां लगायीं भी गयीं मुझ जैसे ब्लागर लिखने में डरने लगे विभिन्न प्रकार कि तकनिकी गड़बड़ियां मिडिया में होने लगीं और हमारा लिखना कम हो गया .अतः निस्संदेह अपने देश में मिडिया स्वतन्त्र भी नहीं है और निस्पक्ष भी नहीं. नेता अपनी बड़ाई मिडिया के लोगों को ढेर सारा धन उपलब्ध कराकर भी कराते हैं बयानों को तोड़ मरोड़कर भी दिखाते हैं जिसका खंडन भी नेता करते दिखाई देते हैं जो बात उनकी नेता गिरी को चमकाती है वह बात ही केवल उनको अच्छी लगती है बाकी बातें उनको बकवास लगती है और नेता अपने ही बयानों से मुकर जाते हैं ठीकरा मिडिया पर फोड़ते हैं जबकी वो सारी बातें सरे बयान भी उन्हीं कि कही बातें होती है
यूँ तो आजकल कई तरह के सर्वे आते रहते हैं और कभी कभी उनकी विश्वसनीयता पर संदेह भी होता है ,उसी प्रकार वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के सर्वे कि भी बात पूरी तरह कबूल नहीं कर लेनी चाहिये बल्कि ऐसे सर्वे अपने देश में ही निस्पक्षता से कराये जाने चाहिए और मिडिया को भी जनता को सच्चई ही बतानी चाहिए सच कड़वा होता है पर मिडिया को सच का ही साथ देना चाहिए आज मिडिया में भी कही न कही सच्चाई में कमी झलकती है सभी टेलीविजन चैनल और सभी अखबार अपने आप को सबसे ज्यादा दिखाई देनेवाला या सबसे ज्यादा पढ़ा जानेवाला और लोकप्रिय कहते हैं लेकिन हर बार यह सच नहीं होता माना आज विज्ञापन का जमाना है ,जो ज्यादा लोगों को भाता है वही ज्यादा बिकता है चटपटी और रोमांचक ख़बरें लोगों को ज्यादा आकर्षित करती हैं खासकर युवा वर्ग को और सच्चाई इसमें कहीं दबी रह जाती है अतः मीडया को स्वतन्त्र होने से पहले सच्चा और निष्पक्ष होना पड़ेगा यह भी सही है आजकल गला काट प्रतिस्पर्धा है पर प्रतिस्पर्धा में जनता सच्चई जानने से न वंचित हो जाए? इसका ध्यान जरूर रखा जाना चाहिए अख़बारों और टेलीविजन को विज्ञापनों से ढेर सारा पैसा भी मिलता है फिर उनको उत्तेजक ख़बरों के जरिये ही और ज्यादा पैसे कमाने कि जरूरत नहीं पड़नी चाहिये .क्यूंकि स्वतन्त्र और निष्पक्ष मिडिया ही स्वस्थ लोकतंत्र बना पायेगा लोगों को अधिकार दिला पायेगा और सही मायनों में तभी मिडिया भी देश में अपना उचित स्थान बना पायेगा आज अपने देश में मिडिया की आदर्श स्थिति जैसी होनी चाहिए, वैसी नहीं. मिडिया को और स्वतन्त्र बनाने कि जरूरत है . सत्ता पक्ष को मिडिया पर अनावश्यक दवाब बनाने का कोई हक़ नहीं क्यूंकि सरकार के किसी ऐसे दवाब को लोकतंत्र के लिए न्यायसंगत करार नहीं दिया जा सकता अपने देश का संविधान भी इसकी इजाजत नहीं देता .देश का संविधान सर्वोपरी है ऐसा नेता और मंत्री भी मानते हैं फिर आये दिन सरकार के सूचना मंत्री तरह तरह के तोहमत क्यूँ लगते हैं यह सरासर नाइंसाफी है मिडिया के साथ
मेरी राय में येलो जर्नलिज्म को रोकने के लिए कोई कानूनी प्रावधान भले लाया जाए पर येलो जर्नलिज्म के नाम पर जर्नलिज्म पर ही पाबंदी ना लगाई जाए हर कीमत पर मडिया कि सवतंत्रता का भी ध्यान रखा जाए तभी मिडिया अपना सही और न्यायोचित पहचान पा सकेगा .और देश कि जनता देश के पत्रकार भी अपनी अभिब्यक्ति सवतंत्रता पूर्वक करते हुए समाज की सेवा कर सकेंगे .

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply