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क्या मोदी के बजाय सुषमा प्रधानमंत्री पद के लिए बेहतर उम्मीदवार हैं ?

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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सप्रंग के खिलाफ उनका प्रमुख सहयोगी दल जदयू ही मोर्चा खोले हुए है प्रधानमंत्री के नाम पर सबसे पहले मैं इसका खंडन करता हूँ क्यूंकि चुनाव पूर्व ही प्रधानमंत्री कौन बनेगा यह चर्चा राजनितिक पार्टियों द्वारा करना एन केन प्रकारेन अपने किसी खास को देश पर थोपना ही मैं समझूंगा और पिछले कई महीनो से देश की राजनीती में यही चर्चा हो रही है की कौन प्रधानमंत्री का उम्मीदवार होगा कांग्रेस के युवराज के विषय में तो किसी पार्टी को कोई संदेह नहीं और नहीं उनकी कांग्रेस पार्टी में उनका विरोध प्रत्यक्ष रूप से करता दिखाई दे रहा है . पर जहाँ तक भाजपा के नरेन्द्र मोदी जी का सवाल है उनके नाम पर तो उनकी खुद की पार्टी बीजेपी में ही मतभेद है जिस बात को आज सारा देश जानता है वे गुजरात के एक शक्तिशाली नेता हैं तीसरी बार गुजरात में बहुमत लेकर राज कर रहें हैं अतः वे एक सशक्त नेता हैं और भाजपा में उनसे ज्यादा कद्दावर सशक्त नेता और कोई नहीं अडवाणी जी जरुर सबसे अनुभवी नेता हैं पर वे पार्टी में सर्वमान्य नहीं वैसे तो मोदी भी सर्वमान्य नहीं हैं और यहाँ युवा कांग्रेसी उम्मीदवार राहुल गाँधी से मुकाबला है तो अनुभव के होते हुए भी उनकी उम्मीदवारी को पार्टी स्वीकार नहीं कर रही है और बीजेपी एक चुनाव तो उनको(अडवाणी जी ) पी एम् उम्मीदवार घोषित करके उस चुनाव में हार का सामना कर
भी चुकी है अब चर्चा यह है
क्या मोदी के बजाय सुषमा प्रधानमंत्री पद के लिए बेहतर उम्मीदवार हैं ?
जब नरेन्द्र मोदी की उम्मीदवारी के चलते एन डी ए के सम्बन्ध टूटने के कगार पर हैं और बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार ही मोदी के सख्त विरोधी हैं और वे और उनकी पार्टी जदयू यह अल्टीमेटम दे रही है की भाजपा दिसंबर के पहले पी एम् उम्मीदवार के नाम की घोषणा करे और यह भी साफ है वह नाम नरेन्द्र मोदी नहीं होना चाहिए और बिहार में बीजेपी और जदयू मिलकर सरकार चला रहे हैं और अच्छा काम कर रहे हैं ऐसे में प्रमुख घटक दल होने के नाते बीजेपी को कोई ऐसा उम्मीदवार तो घोषित करना ही होगा जो सर्वमान्य हो जिस पर सांप्रदायिक होने का दाग न लगा हो यूँ तो कांग्रेस पार्टी और उनके सहयोगी दल बीजेपी को साफ़ तौर पर सांप्रदायिक कहते हैं क्या उनकी इस बात में कोई सच्चाई है ? इसको भी समझना होगा मोदी के शासन काल में एक गोधरा काण्ड २००२ में हो गया उस पर मुकदमा चला और जिनको सताया गया उन्होंने वापस मोदी को चुना तो कैसे चुना, इसलिए चुना की वे जानते हैं किसी दंगे में किसी एक पार्टी या दल का हाथ नहीं होता दंगे पहले भी होते रहें हैं जो सामान्य तौर पर गुंडा तत्व करते हैं दंगों के नाम पर लोगों की जान माल से खिलवाड़ करते हैं और इस देश में १९८४ में सिखों के खिलाफ दंगे हुए केवल दिल्ली में हजारों सिख लोग मारे गए और पूरे देश में तो लाखों में सिखों की हत्या हुयी इसको किसने करवाया ? तब कांग्रेस पार्टी ही सत्ता में काबिज थी और सबने अपनी कानों से टेलीविजन पर यह नारा बुलंद करता हुवा किसी को सुना था नाम मुझे याद नहीं और वह नारा था ” खून का बदला खून से लेंगे ” क्या आज तक उस आदमी का नाम देश को पता चला ? जबकि इस साम्प्रदायिक नारे को टेलीविजन पर प्रसारित किया गया और उन दिनों केवल दूर दर्शन ही प्रोग्राम प्रसारित करता था आज तक सिखों को इंसाफ नहीं मिला और कांग्रेस पार्टी को किसी ने साम्प्रदायिक नहीं कहा क्यूँ और कैसे ? अतः नरेन्द्र मोदी को केवल इसलिए पी एम् उम्मीदवार के योग्य नहीं समझना की उनकी छबि सांप्रदायिक है मैं नहीं मानता और सुषमा जरुर लोकसभा में बिपक्क्ष की नेता हैं उनकी छबि भी राष्ट्रिय नेता के रूप में मशहूर हैं लेकिन जहाँ तुलना की बात आएगी मैं नरेन्द्र मोदी को ही योग्य उम्मीदवार मानता हूँ और देश की बहुतायत जनता भी नरेन्द्र मोदी की उम्मीदवारी को ज्यादा उपयुक्त कहेगी बेशक जनमत संग्रह कर लिया जाये मिडिया ,ट्विटर ,फेस बुक जितने भी माध्यम है उससे जनता की राय ले ली जाये मेरा दावा है मोदी को लोग ज्यादा पसंद करेंगे हाँ एक नितीश कुमार को छोड़कर क्यूंकि वे खुद को ही पी एम् उम्मीदवार के योग्य समझते हैं पर जाहिर नहीं करते लोगों के जुबान से सुनना चाहते हैं जिसके लिए उनको अभी लम्बा इन्तेजार करना होगा पहले वे बिहार को सम्हाल लें फिर देश को सम्हालने की बात सोंचे और सुषमा जी को बीजेपी सर्वसम्मति से अभी अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है बेशक वे ३० वर्षों से राष्ट्रिय राजनीती में सक्रीय रही हैं लेकिन वे मोदी से बेहतर उम्मीदवार कभी साबीत नहीं हो सकतीं यह मेरी अपनी राय है .
कौन साम्प्रदयिक है और कौन धर्म निरपेक्ष यह एक लम्बी चर्चा का विषय है पर ऐसा देखा गया है मुस्लिमों का समर्थक या यूँ कहिये मुसलमानों के नाम पर वोट मांगनेवाला सेकुलर है और हिन्दुओं का समर्थन और उनसे वोट मांगने वाला सांप्रदायिक कहलाता है अपने देश भारत में और उनको साम्प्रदयिक ये राजीनीतिक पार्टियाँ कहती हैं देश की जनता ऐसा नहीं कहती अपने देश में हिन्दू एवं मुस्लमान बड़े मेल जोल से रहते हैं इसके सैकड़ों उदहारण देखने को हर तीज त्यौहार के मौके पर मिलते रहा है हाँ नेता जरुर वोट की राजनीती के तहत दोनों समुदायों को लडाना चाहते हैं और इस सच्चाई को अब मुसलमान भाई भी समझने लगे हैं इसी बात का तो नेताओं एवं पार्टियों को दुःख है बहुसंख्यक हिन्दू की बात करने वाला इस देश में सांप्रदायिक कहलाता है राजनीती की भाषा में .
अंत में मैं यही कहूँगा की बहुत चर्चा हो चुकी प्रधानमंत्री कौन बनेगा ? अब चर्चा हो महंगाई कौन कम करेगा , भ्रष्टाचार कौन मिटाएगा , विदेशों में अपने देश का जमा काला धन देश को वापस कैसे मिलेगा? लोगों को पीने का साफ पानी कब और कैसे मिलेगा आज महराष्ट्र में भयकर सूखा और जल संकट है इसको ये नेता क्या यु हीं पेशाब करके दूर करेंगे जैसा की अजित पवार ने बयान दिया है अरे, पहले इन नेताओं को अगले १० साल के लिए चुनाव में हिस्सा लेने से बैन करना चाहिए इस पर जागरण चर्चा चलाये तो बेहतर होगा कैसे ये दुष्ट और निरदयी नेता राजनितिक गलियारों से दूर भेजे जा सकते हैं बेनी प्रसाद वर्मा भी वैसे ही नेता हैं जिनको तुरंत हटना चाहिए और भी कई नाम हैं आप पूछेंगे तो मैं बताऊंगा ताकि आने वाले लोकसभा में ऐसे घटिया विचारों वाले नेता चुनाव न लड़ पायें और उनकी पार्टी उनको बैन करे वरना जनता उनको बैन कर देगी

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