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दैनिक जागरण के १३ जून के अंक में सम्पादकीय पृष्ठ पर “सुशासन का इम्तिहान ” शीर्षक से श्री सुरेन्द्र किशोर का आलेख बिहार में गिरते शिक्षा के स्तर को दर्शाता है , जिस बिहार ने देश का प्रथम राष्ट्रपति दिया दिवंगत डाक्टर राजेंद्र प्रसाद और जिनको अपने क्षात्र जीवन में “परीक्षार्थी परीक्षक से बेहतर है ” का ख़िताब मिला उस बिहार में शिक्षा का स्तर इतना गिर गया की पूरे देश में शिक्षा के स्तर के मामले में बिहार की भयंकर बेइज्जती हो रही है नितीश जी को पिछले विधान सभा चुनाव में जीत उनके सुशासन और काम के चलते मिली और मुख्य मंत्री नितीश कुमार की सरकार बनने के तुरंत बाद हीं हत्या ,अपहरण , रेप जैसी घटनाओं की शुरुआत हो गयी बिहार की जनता जानती थी जब नितीश जी लालू यादव के साथ महागठबंधन किये हैं तो जंगल राज का आगमन होना अवश्यम्भावी है .चुकी इस बार बिहार चुनाव के मैनेजर श्री प्रशांत किशोर थे फिर नितीश लालू की जीत होना तय था .इसमें संदेह नहीं की लोकतंत्र में नेता जनता द्वारा ही चुने जाते हैं पर जनता झूठे बहकावे में फंस जाती है और नतीजा सबके सामने है की अब राज्य की कितनी बदनामी हो रही है .जिस प्रदेश का गार्जियन ही अपने बच्चे को नक़ल करवाता हो वहां शिक्षा का क्या स्तर होगा, इसका नमूना पिछले साल टेलीवजन पर लोगों ने देखा की कैसे चौथी मंजिल पर सीढ़ी लगाकर चोरी की पर्ची क्षात्रों के गार्जियन लोग परीक्षार्थी को पंहुचा रहें है उसको देखने के बाद ऐसा लगा था की इस बार उस बदनामी की पुर्नावृति न हो ,एस इम्तहान में चोरी के खिलाफ शख्त कार्रवाई होगी और कमोबेश शख्ती हुयी भी उसीका परिणाम है की इस बार रिजल्ट ५० % के नीचे ही रहा क्यूंकि चोरी(नक़ल ) करने पर रोक लगी लेकिन रिजल्ट तो ख़राब हुवा ही हैरानी तो तब हुयी जब टॉपर हीं नकली निकला और क्यूंकि परीक्षा समिति के जिस अध्यक्ष पर राज्य सरकार ने भरोसा किया वही शिक्षा माफियाओं का सबसे बड़ा मददगार निकला . अब सोचने की बात यह है की शिक्षा क्षेत्र के इतने बड़े अधिकारी जो शीर्ष पर बैठा है उसने तक यह न सोंचा की ऐसा करने से प्रदेश की कितनी बदनामी होगी और हैरानी की बात है की ऐसी सोंच का ब्यक्ति शिक्षा के शीर्ष पद पर पंहुचा ही कैसे ? परिणाम स्वरूप अब बिहार के क्षात्र दूसरे राज्यों में उच्च शिक्षा के लिए दाखिला लेना चाहते हैं तो उनके द्वारा प्राप्त किये गए अंकों पर भरोसा ही नहीं बनता और बहुत सारे क्षात्र उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं . वैसे तो जो भी मेधावी क्षात्र होते हैं अगर उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक ठाक होती है तो ऐसे क्षात्र सालों से १२ वीं की पढ़ाई बिहार से बाहर (खासकर दिल्ली ) जाकर ही करते हैं और ऐसा पिछले १५ – २० सालों से हो भी रहा है जैसे जैसे विद्यालयों में शिक्षकों की कमी एवं अनुपस्थिति बढ़ती गयी वैसे वैसे प्रदेश के मेधावी क्षात्र बिहार से बहार जाकर शिक्षा ग्रहण करने लगे और एक समय ऐसा था जब प्रशासनिक सेवा ,पुलिस सेवा , आयकर विभाग सबों में बिहार के क्षात्र ही ज्यादा से ज्यादा चुने जाते थे पर अब तो आई ए एस की परीक्षा में दूसरे प्रदेश के क्षात्र ही टॉपर हैं . अगर इक्षा शक्ति हो तो परीक्षाओं में नक़ल पूरी तरह बंद किया जा सकता है बिहार में शिक्षा क्षेत्र में खोया गौरव वापस पाया भी जा सकता है लेकिन ऐसा तब होगा जब शिक्षा माफियाओं और शिक्षाविदों के बीच जो सांठ गाँठ है उसको समाप्त किया जाए शिक्षा माफियाओं द्वारा चलाये जा रहे स्कुल कालेजों को बंद कर उनकी मान्यता रद्द की जाये . सरकार को सभी शिक्षा माफियायों का नाम पता मालुम है पर उनको सरकार का ही समर्थन प्राप्त है आज अगर कोई ईमानदार शिक्षाविद अगर स्कुल या कालेज खोलना चाहे तो सरकारी मंजूरी उसको मिलती ही नहीं और अगर शिक्षा माफिया कालेज ,इंजीनिरिंग कालेज ,मेडिकल कालेज कुछ भी खोलना चाहे आसानी से खोल सकता है जब तक एस पर लगाम नहीं लगेगा तब तक शिक्षा के स्तर में सुधार की कल्पना ही नहीं की जा सकती अब इसको तो प्रदेश के शिक्षा मंत्री एवं शिक्षा क्षेत्र के उच्च अधिकारी ही बता सकते हैं की कानून के राज्य में यह सब कैसे फल फूल रहा है ? कब इन पर लगाम लगेगा ताकि प्रदेश की बदनामी ना हो और प्रदेश के शिक्षा के स्तर में सुधार आये . आये दिन आंकड़े आते हैं विद्यालय है तो शिक्षक नहीं शिक्षक हैं तो भवन नहीं की जहाँ पढ़ाई हो और शिक्षकों के कितने ही खाली पद हैं वे भरे भी नहीं जाते भर्ती की प्रक्रिया भी दोषपूर्ण है और जब शिक्षक की बहाली में ही गड़बड़ी होगी जात पांत के आधार पर शिक्षकों का चुनाव होगा फिर मेधावी लोग क्या करेंगे प्रायवेट कोचिंग सेंटर चलाएंगे बच्चे जिनको पढ़ना है वे केवल इम्तहान देने के लिए ही किसी मान्यता प्राप्त स्कुल से फार्म भरकर इम्तेहान देंगे देखा जाये तो बिहार में शिक्षा के मामले में सरकारी मशीनरी बिलकुल फेल साबित हुयी है .अभी बिहार के मुख्य्मंत्री श्री नितीश कुमार के पास समय है अतः समय रहते शिक्षा के इस गिरते स्तर में त्वरित सुधार लाने के लिए कारगर कदम उठायें तभी उनको कानून की सरकार वाला मुख्य्मंत्री कहा जा सकता है और राज्य को बदनाम होने से भी बचाया जा सकता है .
अशोक कुमार दुबे
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